वात्सल्यभाव, सेवाभाव तथा गुुरुदेवजी के प्रति अपार भाव व्याप्त सनातन की ७०वीं संत पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रनजी की गुणविशेषताएं

पू. (श्रीमती) उमाक्का चेन्नई में हैं, यह हमारा सौभाग्य है । मुझे उनके साथ प्रवचन करने की सेवा में सहभागी होने का अवसर मिला था । पू. उमाक्का को कोई भी आध्यात्मिक अथवा व्यावहारिक प्रश्‍न पूछे जानेपर उनसे उसका अचूक उत्तर अथवा मार्गदर्शन मिलता है ।

निरपेक्ष प्रेम के कारण सदैव दूसरों का विचार करनेवाले तथा प्रत्येक कृत्य सुंदर तथा आदर्श पद्धति से करनेवाले सनातन के ११वें संत पू. संदीप आळशीजी

फरवरी से जून २०१७ की अवधि में कु. गौरी मुदगल (आयु १७ वर्ष) पू. संदीप आळशीजी के लिए काढा बनाने की सेवा करती थी । इस कालावधि में उसे पू. संदीपभैय्या से सिखने मिले सूत्र तथा सेवा करते समय प्राप्त अनुभूतियां यहां दे रहे हैं ।

समाज के उत्थान हेतु ‘साधना’ विषय पर प्रवचनों की ध्वनिफीतियों की निर्मिति के माध्यम से यज्ञ करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने सनातन संस्था के माध्यम से अध्यात्मप्रसार का कार्य आरंभ किया । इस कार्य-स्वरूप वर्ष १९९० से १९९६ की कालावधि में कुछ जनपद, तहसील तथा शहरों में प.पू. डॉक्टरजी अभ्यासवर्ग लेते थे ।

अनुसंधान में विद्यमान पू. श्रीकृष्ण आगवेकरजी !

मैं जब आगवेकरकाकाजी के घर गई, तब उन्होंने हंसकर विनम्रता से मुझे बैठने के लिए कहा । उनकी ओर देखते समय ‘मुझे चैतन्य मिल रहा है’, ऐसा प्रतीत होकर मेरी बहुत भावजागृति हुई ।

वैज्ञानिक तथा यज्ञ के विषय में अध्ययन करनेवाले अभ्यासी, साथ ही इस विषय की शिक्षा लेनेवाले छात्रों को वैज्ञानिक दृष्टि से अनुसंधान के लिए विनम्र अनुरोध !

प.पू. रामभाऊस्वामीजी यज्ञकुंडपर अग्नि के प्रज्वलित होने के समय उसमें स्वयं को समर्पित करते हैं । इस संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करनेवाले यदि हमारी सहायता करते हैं, तो हम उनके प्रति कृतज्ञ रहेंगे ।

वैज्ञानिक परीक्षण : प.पू. रामभाऊस्वामीजी द्वारा गोवा के सनातन आश्रम में किए गए उच्छिष्ट गणपति यज्ञ का वैज्ञानिक परीक्षण !

यज्ञसंस्कृति की रक्षा हेतु प्रयासशील तंजावूर, तमिलनाडू के महान योगी प.पू. रामभाऊस्वामीजी अपने विशेषतापूर्ण यज्ञों द्वारा समाज को भौतिक तथा आध्यात्मिक स्तर का लाभ पहुंचाने का दैवीय कार्य कर रहे हैं । उन्होंने १५.१.२०१६ को गोवा के सनातन आश्रम में उच्छिष्ट गणपति यज्ञ का आरंभ किया । इस यज्ञ का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन ।

अत्यंत उच्च तापमानवाले यज्ञकुंड में समर्पित होकर स्वयं के शरीर के तापमान को सर्वसामान्य रखनेवाले तंजावूर (तमिलनाडू) के महान योगी प.पू. रामभाऊस्वामीजी !

परीक्षण के समय यज्ञकुंड का तापमान १४६.५ अंश सेल्सियस था । उस समय यज्ञकुंड में समर्पित प.पू. रामभाऊस्वामीजी के शरीरपर ओढी हुई शॉल का तापमान ३९.५ अंश सेल्यियस था |

यूनिवर्सल ऑरा स्कॅनर (UAS)

यू.टी.एस उपकरण का परिचय :इस उपकरण को ऑरा स्कैनर भी कहते हैं । इससे घटकों (वस्तु,भवन,प्राणी और मनुष्य)की ऊर्जा और उनका प्रभामंडल मापा जा सकता है ।

शिष्यभाव का महत्त्व

साधना में साधक के लिए शिष्यभाव में रहना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । वह जब शिष्य बनता है, तब उसकी आगे की प्रगति गुरुकृपा से ही होती है । शिष्य बनने पर ही, गुरु साधक का पूरा दायित्व लेते हैं ।

स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया करने से साधकों पर हुए परिणामों का वैज्ञानिक परीक्षण

सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का प्रभामण्डल लगभग १ मीटर होता है । प्रक्रिया आरम्भ करने से पहले साधक और साधिका का प्रभामण्डल क्रमशः १.५२ मीटर एवं १.५० मीटर था । प्रक्रिया १ मास करने पर उनका प्रभामण्डल क्रमशः १.७४ मीटर तथा १.६० मीटर हो गया, अर्थात दोनों का प्रभामण्डल क्रमशः २२ सें.मी. एवं १० सें.मी. बढ गया ।