आत्महत्या करना महापाप होने से साधना करना ही सभी समस्याओं का समाधान !

मित्रों, आप देश की भावी पीढी हैं । इसलिए आपको साहसी बनना होगा । छोटी-छोटी बातों से हमें दुर्बल नहीं होना है । ‘मेरी शिक्षा, मेरी पढाई, मेरा भविष्य’ केवल इतना ही अपना जीवन नहीं है, अपितु हमारे राष्ट्र एवं धर्म के प्रति कुछ तो कर्तव्य हैं’, इसका सदैव भान रहे । हमें सतत प्रयत्नरत ही रहना है । जहां प्रयत्न होते हैं, वहां सफलता-असफलता होती ही है ।

आत्महत्या रोकने के लिए शिक्षाप्रणाली में धर्मशिक्षा, धर्माचरण एवं साधना का समावेश अत्यावश्यक !

अध्यात्मशास्त्र कहता है, ‘प्रतिदिन होनेवाली आत्महत्याएं, ये जीवन की निराशा, संकट, कसौटी के क्षण, तनाव के प्रसंगों का सामना करने के लिए आवश्यक आत्मबल देने के लिए वर्तमान की शिक्षाप्रणाली, समाजरचना एवं संस्कार असफल होने के द्योतक हैं । ‘जीवन के ८० प्रतिशत दुःखों का मूल कारण भी आध्यात्मिक होने से उन पर केवल आध्यात्मिक उपायों से अर्थात साधना द्वारा मात कर सकते हैं ।’

आत्महत्या करना निंदनीय ! – संत तुकाराम महाराज

अमूल्य एवं दुर्लभ मनुष्यजन्म का महत्त्व ध्यान में न लेते हुए छुटपुट कारणवश जीव (प्राण) दे रहे हैं । यह अत्यंत निंदनीय है । उसके समान पाप कर्म नहीं । ब्रह्महत्या को महापातक कहा गया है । इससे लोगों को परावृत्त करने के लिए तुकाराम महाराज कहते हैं, ‘अरे, प्राण क्यों देते हो ? मृत्यु तो निश्चित है, फिर जानबूझकर उसे क्यों गले लगाते हो ?

‘भाषसु मुख्या मधुरा दिव्या गिर्वाणभारती । ’

ऐसा कहा जाता है कि तंजावुर में विश्‍व का सबसे बडा शिलालेख इसप्रकार लिखा गया है कि सीधे पढने पर रामायण और उलटा पढने पर महाभारत !

विदेशियों को संस्कृत भाषा का महत्त्व समझ में आता है, किंतु भारतीयों द्वारा इस भाषा की उपेक्षा !

भारतवासियों पर अंग्रेजी भाषा का बढता प्रभाव और उसका परिणाम चिंता का विषय है । प्रस्तुत लेख से यह ध्यान में आता है कि विदेशी नागरिकों को संस्कृत भाषा का महत्त्व समझ में आया; किंतु स्वभाषा के अमूल्य एवं अलौकिक ज्ञान से भारतीय कितने अनभिज्ञ हैं ।

मानव-निर्मित कीटनाशक मानव का मित्र अथवा शत्रु ?

‘विषैले रासायनिक कीटनाशकों ने कृषि को नष्ट करनेवाले कीटों के साथ-साथ मच्छरों की संख्या कम करने में सहायता की, परंतु इन विषैले रसायनों के कारण अनेक उपयुक्त और हानिरहित प्राणियों और कीटों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है ।

पत्ते तोडे जाने पर वृक्ष वेदना में जोर से चिल्लाते हैं ! – शोधकर्ताओं के निष्कर्ष

शोध से पता चला है कि जब पेड-पौधों से पत्तियां तोडी जाती हैं, तो उन्हें वेदना होती है और वे चिल्लाते हैं । तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह शोध किया है ।

संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से स्मरणशक्ति बढती है !

वैदिक संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से स्मरणशक्ति बढती है, अमेरिका के एक समाचार-पत्र ने ऐसा दावा किया है । इस समाचार के अनुसार डॉ. जेम्स हार्टजेल नामक न्यूरो शोधकर्ता ने अमेरिका की एक मासिक पत्रिका में अपना यह शोध प्रकाशित किया है ।

संस्कृत भाषा धर्म जितनी ही समृद्ध है !

माध्यमिक पाठशालाओं के स्तर पर संस्कृत की शिक्षा विशेष विषय के रूप में स्वीकारना अनिवार्य है । इससे विद्यार्थियों में देश की प्राचीन संस्कृति तथा अपने पूर्वजों के साहित्य के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होगी । उनके मन और चरित्र पर सकारात्मक परिणाम होकर उनके शुद्ध ज्ञान में बढोतरी होगी ।