‘वस्त्र (पोषाक) आरामदायी है’, ऐसा ऊपरी-ऊपर विचार कर तमोगुण बढानेवाला जीन्स पैंट परिधान करने के स्थान पर सात्त्विकता बढानेवाली वेशभूषा परिधान करना सर्व दृष्टि से अधिक लाभदायी !

‘जैसा देश वैसा वेश’ ऐसी कहावत है । आज अपना पहनावा ‘फैशन’पर आधारित होता है । कभी-कभार परिवर्तन के लिए किया जानेवाला ‘फैशन’ही यदि प्रतिदिन की पसंद बन जाए, तो स्वास्थ्य समास्याएं कितनी भीषण हो जाती हैं, इसका उदाहरण है जीन्स

पाश्‍चात्त्य संस्कृति अपनाने से व्यसनाधीन बने भारतीय !

व्यसनी व्यक्ति तथा अपने परिवार और समाज में अपना स्थान-सम्मान गंवाता है । उससे उसे सामाजिक संपर्क अच्छा नहीं लगता । अकेलापन और समाज से विभाजित होना उसे अधिक तनावपूर्ण बनाता है ।

Rest in peace (RIP) का वास्तविक अर्थ जान लें !

REST IN PEACE का अर्थ ‘शांति से लेटिए !’ ‘हे मृतात्मा, हमने तुम्हारे शरीर को भूमि में दफनाया है । अब कयामत के दिन उपरवाला तुम्हारे साथ न्याय करेगा; इसलिए अब तुम इस भूमि में शांति से लेटकर कयामत के दिन की प्रतिक्षा करो !’’

‘टैटू’ की पाश्‍चात्त्य विकृति को दूर रखिए !

टैटू के कारण घातक संक्रमरकारी रोग फैलते हैं । दूसरों की अपेक्षा अलग दिखने तथा सुंदरता बढाने हेतु शरीरपर टैटू गोद लेने का अर्थ स्शवयं में विद्यमान अहं का पोषण करना है ।

डे’ ज और शुभकामनाएं !

अभिभावकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु क्या विदेशी पृष्ठभूमिवाले डेज की आवश्यकता है ? ऐसे एक दिवसीय प्रेम व्यक्त कर क्या हाथ लगेगा ? कितने बच्चे अपने अभिभावकों को प्रतिदिन झुककर नमस्कार करते हैं ?

मंडप की पवित्रता बनाए रखना महत्त्वपूर्ण !

मुंबई के प्रसिद्ध अंधेरी का राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल ने जीन्स, स्कर्ट परिधान कर आनेवाली महिलाआें एवं छोटी पैंट पहनकर आनेवाले पुरुषों के लिए गणेशजी के दर्शन करने पर प्रतिबंध लगाया है ।

जिम, पार्लर, फैशन तथा मॉडेलिंग के मायाजाल में फंसकर खो रहे हैं बालक अपना बचपन !

एक अंतराष्ट्रीय षड्यंत्र के माध्यम से भारत की भावी पीढी को योजनाबद्ध ढंग से पतित बनाकर उसका तेज नष्ट किया जा रहा है । समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो भारत के राजधानीवाले नगरों में बढनेवाली इस कुप्रवृत्ति को ग्रामीण भागों में फैलने में समय नहीं लगेगा ।

हिन्दुओ, पश्‍चिमी संस्कृति का अंधानुकरण न करें, धर्माचरण से कर्महिन्दू बनकर आनंदमय बनें !

वर्तमान में प्रत्येक क्षेत्र में, पश्‍चिमी संस्कृति ने अपना स्थान बना लिया है । वेशभूषा, आहार अथवा शिक्षा, सभी पर पाश्‍चात्य संस्कृति का प्रभाव दिखाई दे रहा है ।

१ अप्रैल अर्थात अप्रैल फूल की पश्‍चिमी प्रथा का इतिहास !

साहित्य में १ अप्रैल का उल्लेख सर्वप्रथम वर्ष १९३२ में कँटरबरी टेल्स नामक पुस्तक में हुआ ऐसा कहा जाता है ।