नारियल फोडकर उद्‌घाटन क्‍यों किया जाता है ?

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सारणी

१. उद्‌घाटन
२. संतोंके कर-कमलोंद्वारा उद्‌घाटन व दीपप्रज्वलन करवानेका महत्त्व
३. पश्चिमी संस्कृतिके अनुसार फीता काटकर उद्‌घाटन क्यों न करें ?
४. दीपप्रज्वलनके लिए प्रयुक्त दीपस्तंभमें घीकी अपेक्षा तेल डालना अधिक योग्य क्यों है ?
५. दीपप्रज्वलन मोमबत्तीसे नहीं, अपितु तेलके दीप (सकर्ण दीप) से क्यों करें ?


 

१. उद्‌घाटन

`उद्’ अर्थात् प्रकट करना । देवतातरंगोंको प्रकट करना अथवा कार्यस्थलपर उन्हें स्थान ग्रहण करने हेतु प्रार्थना कर कार्यारंभ करना अर्थात् उद्‌घाटन करना । हिंदू धर्ममें प्रत्येक कृति अध्यात्मशास्त्रपर आधारित है । किसी भी समारोह अथवा कार्यको पूर्ण करनेके लिए देवताके आशीर्वाद आवश्यक हैं । शास्त्रीय पद्धति अनुसार उद्‌घाटन करनेसे दैविक तरंगोंका कार्यस्थलपर आगमन सुरक्षाकवचकी निर्मितिमें सहायक होता है । इससे वहांकी कष्टदायक स्पंदनोंके संचारपर अंकुश लगता है । इसलिए उद्‌घाटन विधिवत्, अर्थात् अध्यात्मशास्त्रपर आधारित विधियोंके अनुसार ही करना चाहिए ।

 

उद्‌घाटनकी पद्धतियां

अ. व्यासपीठके कार्यक्रमोंका उद्‌घाटन

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परिसंवाद, साहित्य सम्मेलन, संगीत महोत्सव इत्यादिका उद्‌घाटन दीपप्रज्वलनसे किया जाता है । व्यासपीठकी स्थापनासे पूर्व नारियल फोडें और उद्‌घाटनके समय दीप प्रज्वलित करें । नारियल फोडनेके पीछे प्रमुख उद्देश्य है, कार्यस्थलकी शुद्धि । व्यासपीठ ज्ञानदानके कार्यसे संबंधित है, अर्थात् वह ज्ञानपीठ है । इसलिए वहां दीपकका महत्त्व है ।

आ. दुकान, प्रतिष्ठान इत्यादिका उद्‌घाटन

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दुकान, प्रतिष्ठान इत्यादि अधिकांशत: व्यावहारिक कर्मसे संबंधित होते हैं । इसलिए उनके उद्‌घाटन अंतर्गत दीपप्रज्वलनकी आवश्यकता नहीं होती । इसलिए केवल नारियल फोडें ।

 

२. संतोंके कर-कमलोंद्वारा उद्‌घाटन
व दीपप्रज्वलन करवानेका महत्त्व

संतोंके अस्तित्वमात्रसे ब्रह्मांडसे आवश्यक देवताकी सूक्ष्मतर तरंगें कार्यस्थलकी ओर आकृष्ट व कार्यरत होती हैं । इससे वातावरण चैतन्यमय व शुद्ध बनता है और कार्यस्थलके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति होती है व जीवोंकी सूक्ष्मदेहकी शुद्धिमें सहायता मिलती है । इसलिए संतोंके करकमलोंद्वारा उद्‌घाटन अंतर्गत नारियल फोडनेकी आवश्यकता नहीं होती । (उद्‌घाटनके लिए संतोंको आमंत्रित करनेका महत्त्व इससे ज्ञात होता है । दुर्भाग्यकी बात यह है कि आजकल राज्यकर्ताओं, चित्रपट-अभिनेताओं, क्रिकेटके खिलाडियोंको उद्‌घाटनके लिए आमंत्रित किया जाता है ।)

 

३. पश्चिमी संस्कृतिके अनुसार
फीता काटकर उद्‌घाटन क्यों न करें ?

किसी वस्तुको काटना विध्वंसक वृत्तिका दर्शक है । फीता काटनेकी तामसी कृतिद्वारा उद्‌घाटन करनेसे वास्तुकी कष्टदायी स्पंदनोंपर कोई प्रभाव नहीं पडता । जिस कृतिसे कष्टदायी तरंगोंकी निर्मिति होती है, वह हिंदू धर्ममें त्याज्य (त्यागने योग्य) है; इसलिए फीता काटकर उद्‌घाटन न करें ।

 

अ. नारियल फोडना

व्यासपीठकी स्थापनासे पूर्व भूमिपूजनके समय नारियल फोडा जाता है । जिस भूभागपर व्यासपीठकी स्थापना करनी होती है, उसके शुद्धिकरणसे वहांकी कष्टदायी स्पंदनोंका निराकरण किया जाता है । जहां व्यासपीठ पहले ही स्थापित हो, वहां उसके सामने धरतीपर एक पत्थर रखकर, स्थानदेवतासे प्रार्थना कर नारियल फोडें । व्यासपीठपर किसी भी समारोहकी तैयारी आरंभ करनेसे पूर्व स्थानकी शुद्धि आवश्यक है, अन्यथा अनिष्ट शक्तियोंकी बाधासे कार्यक्रमका आरंभ निर्धारित समयपर न हो पाना, कार्यक्रम-स्थलपर अस्वस्थता, तैयारी करनेमें थकान इत्यादि कष्टोंकी आशंका रहती है । प्रार्थनाद्वारा स्थानदेवताके आवाहनसे उनकी कृपास्वरूप नारियल-जलके माध्यमसे स्थानदेवताकी तरंगें सर्व दिशाओंमें फैलती हैं । इससे कार्यस्थलमें प्रवेश करनेवाली कष्टदायी स्पंदनोंकी गतिपर अंकुश लगाना संभव होता है । उस परिसरमें स्थान-देवताकी सूक्ष्म-तरंगोंका मंडल तैयार होता है और समारोह निर्विघ्न संपन्न होता है ।

 

आ. नारियल फोडनेके पश्चात् दीपप्रज्वलन

नारियल फोडना अर्थात् अनिष्ट शक्तियोंके संचारपर अंकुश लगाना व दीपप्रज्वलन अर्थात् ज्ञानपीठपर कार्यरत दैवी तरंगोंका स्वागत कर, उन्हें प्रसन्न करना । इसलिए प्रथम नारियल फोडकर स्थानदेवताका आवाहन कर वहांकी स्थानीय अनिष्ट शक्तियोंको नियंत्रित करने हेतु उनसे प्रार्थना की जाती है; तदुपरांत दीप प्रज्वलित कर दीपद्वारा प्रक्षेपित तरंगोंके कारण वरिष्ठ (अधिक क्षमतावाली) अनिष्ट शक्तियोंके संचारपर अंकुश लगाकर व्यासपीठसे ज्ञानदानका कार्य किया जाता है ।

 

इ. दीपप्रज्वलनका महत्त्व

१. ईश्वरीय संकल्पशक्तिका कार्यरत होना एवं मनोवांछित कार्य सिद्ध होना |

२. कार्यस्थलके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति |

 

४. दीपप्रज्वलनके लिए प्रयुक्त दीपस्तंभमें
घीकी अपेक्षा तेल डालना अधिक योग्य क्यों है ?

दीपप्रज्वलनके लिए प्रयुक्त दीपस्तंभमें तेलका प्रयोग करें । तेल रजोगुणी तरंगोंके तथा घी सात्त्विक तरंगोंके प्रक्षेपणका प्रतीक है । किसी भी कार्यको गति प्रदान करने हेतु रजोगुणी क्रियातरंगें आवश्यक होती हैं । तेलकी ज्योति ब्रह्मांडमें विद्यमान देवताओंकी क्रियातरंगोंको जागृत कर उन्हें कार्यरत रखती है; इसलिए दीपप्रज्वलन हेतु प्रयुक्त दीपस्तंभमें तेलका प्रयोग श्रेयस्कर है ।

 

५. दीपप्रज्वलन मोमबत्तीसे नहीं,
अपितु तेलके दीप (सकर्ण दीप) से क्यों करें ?

मोमबत्तीद्वारा प्रक्षेपित तरंगें तम-रजयुक्त होती हैं । इन तरंगोंके कारण वातावरण तामसी बनता है व सात्त्विकता नष्ट हो जाती है । मोमबत्तीद्वारा दीप प्रज्वलित करनेपर दीपस्तंभके चारों ओर तमकणोंका मंडल तैयार होता है । इस कारण दीपस्तंभकी ज्योतिकी ओर आकृष्ट ब्रह्मांडमें विद्यमान देवताकी क्रियातरंगें बाधित होती हैं । इसके विपरीत, तेल रजोगुणका प्रतीक है । तेलकी ज्योति ब्रह्मांडमें विद्यमान देवताओंकी क्रियातरंगोंको जागृत कर कार्यरत करनेमें सहायक होती है; इसलिए दीपप्रज्वलन हेतु प्रयुक्त तेलके दीप (सकर्ण दीप) का प्रयोग श्रेयस्कर है ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘पारिवारीक धार्मिक व सामाजिक कृतियोंका आधारभूत शास्त्र

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