रक्षाबंधन (Rakshabandhan 2023)

रक्षाबंधन अर्थात राखी का त्यौहार । यह भाई-बहन का त्यौहार है । रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । इस दिन बहन अपने भाई को प्रेम के प्रतीक के रूप में राखी बांधती है । इसलिए इस दिन को राखी पूर्णिमा भी कहा जाता है । राखी बांधने का उद्देश्य होता है, ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन की रक्षा करे ।’ राखी बांधने पर भाई अपनी बहन को उपहार देकर आशीर्वाद देता है । सहस्रों वर्षों से चले आ रहे इस रक्षाबंधन त्यौहार का इतिहास, शास्त्र, राखी सिद्ध करने की पद्धति और इस त्यौहार का महत्त्व आगे इस लेख में दिया है ।

३०.८.२०२३ को रक्षाबंधन के दिन भद्रापुच्‍छ का समय सायं ५.१८ से ६.३० है । अत: इस समय में रक्षाबंधन मनाएं ‍।

रक्षाबंधन ऐसे मनाएं !

ये करें !

  • भाई अपनी बहन के घर जाएं ।
  • बहन भाई का औक्षण कर उसे निःस्वार्थ भाव से राखी बांधें ।
  • बहन भाई को नमस्कार कर उसका आशीर्वाद लें ।
  • यदि भाई अपनी बहन को स्वेच्छा से कुछ देना चाहे, तो सात्त्विक उपहार दें ।
  • दोनों ने प्रार्थना करनी चाहिए ।

ये ना करें !

  • भाई को देवताओं के चित्रवाली राखियां बांधकर देवताओं का अनादर ना करें ।
  • बहन ने भाई को राखी बांधते समय कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए ।
  • भद्राकाल में राखी ना बांधें ।

रक्षाबंधन के दिन ये करें !

  • भाई अपनी बहन के घर जाएं ।
    राखी बांधने हेतु भाईके बैठनेके लिए पीढा रखिए । इस पीढेके सर्व ओर रंगोली बनाइए । अब भाई एवं बहन दोनों एक-दूसरे की रक्षा के लिए देवताओंसे प्रार्थना करें ।
  • बहन भाई का औक्षण कर उसे निःस्वार्थ भाव से राखी बांधें ।
    बहन भाई को कुमकुम का तिलक करें । बहन भाई की दाई कलाई पर राखी बांधे । राखी बांधने के उपरांत बहन भाई का औक्षण करें | इसमें प्रथम सोनेकी अंगूठी एवं सुपारीसे अर्धगोलाकार पद्धतिसे औक्षण करे एवं उसके उपरांत घीके निरांजनसे भाईकी अर्धगोलाकार पद्धतिसे ३ बार आरती उतारे ।
  • बहन भाई को नमस्कार कर उसका आशीर्वाद लें ।
    यह दिन बहन-भाई के बीच का लेन-देन कम करने के लिए है । बहन ने अपने भाई को निःस्वार्थभाव से राखी बांधकर उसका आशीर्वाद लेने पर बहन-भाई का लेन-देन न्यून होने में सहायता होती है ।
  • यदि भाई अपनी बहन को स्वेच्छा से कुछ देना चाहे, तो सात्त्विक उपहार दें ।
    रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को शगुन के रूप में भेंट देता है । भेंट देने से एक-दूसरे की याद रहती है । बहन का भाई के प्रति जो प्रेम होता है, उसका मोल भाई कर नहीं सकता; किन्तु बहन को प्रेम देकर वह इसे कुछ मात्रा में अल्प करने का प्रयास करता है । भाई उपहार जैसे स्थूल माध्यम द्वारा बहन के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करता है । उपहार देते समय भाई के मन में ईश्वर के प्रति भाव होना चाहिए । इससे बहन को अधिक लाभ होता है ।
    बहन ने भाई को उपहार मांगना नहीं चाहिए । यदि भाई स्वेच्छा से उपहार दे, तो बहन ने उपहार स्विकार कर अपने भाई का सम्मान करना चाहिए; अन्यथा वह लेने का टालना अधिक उचित होता है ।
    सात्त्विक वस्तुओं का किसी जीव पर सांसारिक परिणाम नहीं होता । सात्त्विक वस्तु उपहार स्वरूप देने पर जीव को २० प्रतिशत तथा लेनेवाले जीव को १८ प्रतिशत लाभ होता है । सात्त्विक कृति करने पर लेन-देन अल्प होकर उससे नया लेन-देन उत्पन्न नहीं होता है ।
  • दोनों ने प्रार्थना करनी चाहिए ।
    येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
    तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
    अर्थ : महाबली एवं दानवेंद्र बलि राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षा से मैं तुम्हें भी बांधती हूं । हे राखी, तुम अडिग रहना ।

    रक्षाबंधन के दिन प्रत्येक भाई ईश्वर से प्रार्थना करे, ‘मेरी बहन की रक्षा के साथ-साथ मुझसे समाज, राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए प्रयत्न हों’ । बहन भाई के कल्याण हेतु तथा यह प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए ।’

रक्षाबंधन के दिन ये ना करें !

  • ​भाई को देवताओं की चित्रवाली राखियां ना बांधें ।
    ​राखी के माध्यम से होनेवाला देवताओं का अनादर रोकिए ! आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के चित्र होते हैं । राखी का उपयोग होने के उपरांत वह यहां-वहां बिखरी दिखाई देती हैं । यह एक प्रकार से देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससे पाप लगता है । इससे बचने के लिए राखी उतारने पर उसे जल में विसर्जित करनी चाहिए !
  • बहन ने भाई को राखी बांधते समय कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए ।
    आजकल बहनें अपने भाई को पहले ही उन्हें रक्षाबंधन के दिन क्या भेंट चाहिए यह बताकर रखती है, तथा वह मिलने के लिए हठ भी करती हैं । इस प्रकार मन में इच्छा अथवा अपेक्षा रखने पर बहनें उस दिन मिलनेवाले आध्यात्मिक लाभ से वंचित होती है । क्योंकि रक्षाबंधन मनाने का उद्देश तो बहन-भाई के बीच का लेन-देन अल्प करना है । अपेक्षा रखकर भाई से वस्तु की प्राप्ति करने पर लेन-देन ३ गुना बढता है तथा आध्यात्मिक दृष्टि से १२ प्रतिशत हानि होती है । अपेक्षा के कारण उस दिन वातावरण में जो प्रेम तथा आनंद की तरंगें होती है, उसका लाभ नहीं मिल सकता है ।
  • भद्राकाल में राखी ना बांधें ।
    भद्राकाल में राखी ना बांधें । (संदर्भ : धर्मसिंधु)
    जिस प्रकार शनि की क्रूर दृष्टि हानिकारक होती है, उसी प्रकार शनि की बहन भद्रा का प्रभाव भी हानिकारक होता है । ऐसा कहा जाता है कि रावण ने भद्राकाल में शूर्पणखा से राखी बंधवाई थी, और उसी वर्ष उसका संपूर्ण कुल सहित नाश हुआ था । भद्रा की कुदृष्टि के कारण कुल की हानि होने की संभावना होती है ।

ये करें !

  • भाई अपनी बहन के घर जाएं ।
    राखी बांधने हेतु भाईके बैठनेके लिए पीढा रखिए । इस पीढेके सर्व ओर रंगोली बनाइए । अब भाई एवं बहन दोनों एक-दूसरे की रक्षा के लिए देवताओंसे प्रार्थना करें ।
  • बहन भाई का औक्षण कर उसे निःस्वार्थ भाव से राखी बांधें ।
    बहन भाई को कुमकुम का तिलक करें । बहन भाई की दाई कलाई पर राखी बांधे । राखी बांधने के उपरांत बहन भाई का औक्षण करें | इसमें प्रथम सोनेकी अंगूठी एवं सुपारीसे अर्धगोलाकार पद्धतिसे औक्षण करे एवं उसके उपरांत घीके निरांजनसे भाईकी अर्धगोलाकार पद्धतिसे ३ बार आरती उतारे ।
  • बहन भाई को नमस्कार कर उसका आशीर्वाद लें ।
    यह दिन बहन-भाई के बीच का लेन-देन कम करने के लिए है । बहन ने अपने भाई को निःस्वार्थभाव से राखी बांधकर उसका आशीर्वाद लेने पर बहन-भाई का लेन-देन न्यून होने में सहायता होती है ।
  • यदि भाई अपनी बहन को स्वेच्छा से कुछ देना चाहे, तो सात्त्विक उपहार दें ।
    रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को शगुन के रूप में भेंट देता है । भेंट देने से एक-दूसरे की याद रहती है । बहन का भाई के प्रति जो प्रेम होता है, उसका मोल भाई कर नहीं सकता; किन्तु बहन को प्रेम देकर वह इसे कुछ मात्रा में अल्प करने का प्रयास करता है । भाई उपहार जैसे स्थूल माध्यम द्वारा बहन के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करता है । उपहार देते समय भाई के मन में ईश्वर के प्रति भाव होना चाहिए । इससे बहन को अधिक लाभ होता है ।
    बहन ने भाई को उपहार मांगना नहीं चाहिए । यदि भाई स्वेच्छा से उपहार दे, तो बहन ने उपहार स्विकार कर अपने भाई का सम्मान करना चाहिए; अन्यथा वह लेने का टालना अधिक उचित होता है ।
    सात्त्विक वस्तुओं का किसी जीव पर सांसारिक परिणाम नहीं होता । सात्त्विक वस्तु उपहार स्वरूप देने पर जीव को २० प्रतिशत तथा लेनेवाले जीव को १८ प्रतिशत लाभ होता है । सात्त्विक कृति करने पर लेन-देन अल्प होकर उससे नया लेन-देन उत्पन्न नहीं होता है ।
  • दोनों ने प्रार्थना करनी चाहिए ।
    येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
    तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
    अर्थ : महाबली एवं दानवेंद्र बलि राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षा से मैं तुम्हें भी बांधती हूं । हे राखी, तुम अडिग रहना ।

    रक्षाबंधन के दिन प्रत्येक भाई ईश्वर से प्रार्थना करे, ‘मेरी बहन की रक्षा के साथ-साथ मुझसे समाज, राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए प्रयत्न हों’ । बहन भाई के कल्याण हेतु तथा यह प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए ।’

ये ना करें !

  • ​भाई को देवताओं की चित्रवाली राखियां ना बांधें ।
    ​राखी के माध्यम से होनेवाला देवताओं का अनादर रोकिए ! आजकल राखी पर ‘ॐ’ अथवा देवताओं के चित्र होते हैं । राखी का उपयोग होने के उपरांत वह यहां-वहां बिखरी दिखाई देती हैं । यह एक प्रकार से देवता एवं धर्मप्रतीकों का अपमान है, जिससे पाप लगता है । इससे बचने के लिए राखी उतारने पर उसे जल में विसर्जित करनी चाहिए !
  • बहन ने भाई को राखी बांधते समय कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए ।
    आजकल बहनें अपने भाई को पहले ही उन्हें रक्षाबंधन के दिन क्या भेंट चाहिए यह बताकर रखती है, तथा वह मिलने के लिए हठ भी करती हैं । इस प्रकार मन में इच्छा अथवा अपेक्षा रखने पर बहनें उस दिन मिलनेवाले आध्यात्मिक लाभ से वंचित होती है । क्योंकि रक्षाबंधन मनाने का उद्देश तो बहन-भाई के बीच का लेन-देन अल्प करना है । अपेक्षा रखकर भाई से वस्तु की प्राप्ति करने पर लेन-देन ३ गुना बढता है तथा आध्यात्मिक दृष्टि से १२ प्रतिशत हानि होती है । अपेक्षा के कारण उस दिन वातावरण में जो प्रेम तथा आनंद की तरंगें होती है, उसका लाभ नहीं मिल सकता है ।
  • भद्राकाल में राखी ना बांधें ।
    भद्राकाल में राखी ना बांधें । (संदर्भ : धर्मसिंधु)
    जिस प्रकार शनि की क्रूर दृष्टि हानिकारक होती है, उसी प्रकार शनि की बहन भद्रा का प्रभाव भी हानिकारक होता है । ऐसा कहा जाता है कि रावण ने भद्राकाल में शूर्पणखा से राखी बंधवाई थी, और उसी वर्ष उसका संपूर्ण कुल सहित नाश हुआ था । भद्रा की कुदृष्टि के कारण कुल की हानि होने की संभावना होती है ।

३० अगस्त २०२३ को रक्षाबंधन मनाने का मुहूर्त

‘धर्मशास्‍त्र में बताया गया है कि, ‘सूर्योदय से ६ घटिकाएं (१४४ मिनिट से) अधिक और भद्रा (टीप) रहित श्रावण पौर्णिमा के दिन अपराण्‍हकाल अथवा प्रदोषकाल में रक्षाबंधन मनाएं ।’

टीप – ‘विष्‍टि’ नामक करण को भद्रा कहते हैं । करण अर्थात तिथि का आधा भाग। भद्रा करण को अशुभ माना गया है।

अ. ३१.८.२०२३ को पूर्णिमा तिथि सुबह ७.०६  समाप्त होगी । यह काल सूर्योदय से ६ घटिकाएं (१४४ मिनिट से) अधिक नही है; इसलिए ३१.८.२०२३ को रक्षाबंधन मनाया नहीं जा सकता ।

आ. ३०.८.२०२३ को सुबह १०.५९ पर पूर्णिमा आरंभ हो रही है । इस दिन सुबह १०.५९ से रात्रि ९.०२ तक भद्राकाल होने से इस काल में भी रक्षाबंधन मनाया नहीं जा सकता।

इ. ऐसी स्थिति में भद्राकाल के  ‘भद्रापुच्‍छ’ मुहूर्त द्वारा यह समस्या सुलझ सकती है । मुहूर्त ग्रंथो में लिखा है ‘भद्राकाल के भद्रापुच्‍छ काल को विशेष प्रसंगों में शुभ समझें। ‘

ई. ३०.८.२०२३ को भद्रापुच्‍छ का समय सायं ५.१८ से ६.३० है । अत:  इस समय में रक्षाबंधन मनाएं ‍।’

– श्री. राज कर्वे (ज्‍योतिष विशारद), महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (२८.८.२०२३)

देवताओं के चित्रवाली राखियाें का उपयोग न करें !

वर्तमान स्थितिमें हाटमें अर्थात मार्केटमें रक्षाबंधनके लिए विभिन्न प्रकारकी राखियां मिलती हैं । परंतु उनमेंसे अधिकांश राखियां दिखावटी होती हैं । वे सात्त्विक नहीं होतीं । दिखावटी राखी लेनेकी अपेक्षा, ऐसी राखी लेनी चाहिए, जो सात्त्विक हो एवं जिसमें ईश्वरीय तत्त्व आकृष्ट करनेकी क्षमता हो । सात्त्विक राखीके कारण सत्त्वगुणमें भी वृद्धि होती है ।

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन में प्रेम की वृद्धि करने के साथ ही उनमें लेन-देन हिसाब राखी के माध्यम से अल्प करने में भी सहायता करता है । वैसे ही अन्य त्यौहारों का शास्त्र समझकर मनाने से हमें अधिक लाभ होता है । इसलिए इस प्रकार की महत्त्वपूर्ण जानकारी जानने के लिए…

सनातन संस्था के ऑनलाइन सत्संग से जुडें !

रक्षाबंधन : इतिहास

१. ‘पाताल के बलिराजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।’

२. ‘बारह वर्ष इंद्र और दैत्यों में युद्ध चला । अपने १२ वर्ष अर्थात उनके १२ दिन । इंद्र थक गए थे और दैत्य भारी पड रहे थे । इंद्र इस युद्ध में स्वयं के प्राण बचाकर भाग जाने की सिद्धता में थे । इंद्र की यह व्यथा सुनकर इंद्राणी गुरु की शरण में पहुंची । गुरु बृहस्पति ध्यान लगाकर इंद्राणी से बोले, ‘‘यदि तुम अपने पतिव्रता बल का उपयोग कर यह संकल्प करो कि मेरे पतिदेव सुरक्षित रहें और इंद्र की दांयी कलाई पर एक धागा बांधो, तो इंद्र युद्ध में विजयी होंगे ।’’ इंद्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हो गया ।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।

अर्थ : ‘जो बारीक रक्षासूत्र महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बांधा था, वही मैं आपको बांध रही हूं । आपकी रक्षा हो । यह धागा न टूटे और सदैव आपकी रक्षा हो ।’

३. भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था । अब यह त्यौहार सभी लोग मनाते हैं ।

४. प्राचीन काल की राखी

चावल, स्वर्ण एवं श्वेत सरसों को छोटी पोटली में एकत्रित बांधने से रक्षा अर्थात राखी बनती है । वह रेशमी धागे से बांधी जाती है ।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।


अर्थ : महाबली एवं दानवेंद्र बलि राजा जिससे बद्ध हुआ, उस रक्षा से मैं तुम्हें भी बांधती हूं । हे राखी, तुम अडिग रहना ।

राखी बांधने का शास्त्र

भाई – बहन के बीच का लेन-देन घटता है

बहन एवं भाई का एक-दूसरे के साथ साधारणत: ३० प्रतिशत लेन-देन का हिसाब होता है । लेन-देन का हिसाब राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारों के माध्यम से घटता है अर्थात वह स्थूल से एक-दूसरे के बंधन में अटकते हैं; परंतु सूक्ष्म-रूप से आपसी लेन-देन के हिसाब को समाप्त करते हैं ।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण : पुरुषों में कार्यरत हानिकारक यम-तरंगें रोकना

राखी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन वातावरण में यमतंरगों की मात्रा अधिक होती है । यमतरंगे पुरुषों की देह में अधिक मात्रा में गतिमान होती हैं । पुरुषों की देह में यमतरंगों का प्रवाह प्रारंभ होने पर उनकी सूर्यनाडी जागृत होती है । सूर्यनाडी जागृत होने के कारण देह में रज-तम की प्रबलता बढती है । यमतरंगें संपूर्ण शरीर में प्रवेश करती हैं । इन यमतरंगों की मात्रा ३० प्रतिशत से अधिक बढने पर जीव के प्राणों को धोखा होने की संभावना होती है; इसलिए प्रत्यक्ष शक्तिबीजरूपीय बहन द्वारा प्रवाहित होनेवाली यमतरंगों को तथा सूर्यनाडी को राखी का बंधन बांधकर शांत किया जाता है । इससे पुरुषों में विद्यमान शिव-तत्त्व को जागृत होकर सुषुम्नानाडी अंशतः जागृत होती है ।’ – एक ज्ञानी (श्री. निषाद देशमुख के माध्यम से, ३०.७.२००६, दिन १.४५)

भावनिक दृष्टिकोण : भाई-बहन के निर्मल प्रेम से काम-क्रोध को निष्प्रभावी करना

‘रक्षाबंधन यह विकारों में अटकनेवाले युवा-युवतियों के लिए एक व्रत है । भाई को राखी बांधने से अधिक महत्त्वपूर्ण है किसी युवती / स्त्री द्वारा किसी युवक / पुरुष को राखी बांधना । इससे विशेषतः युवकों एवं पुरुषों का युवती अथवा स्त्री की ओर देखने के दृष्टिकोण परिवर्तित होने में सहायता होती है ।

रक्षाबंधन के विषय में प्राप्त सूक्ष्म ज्ञान

‘चावल सर्वसमावेशकता का प्रतीक है । अर्थात वे सभी को अपने में समा लेनेवाले तथा सर्व तरंगों का उत्तम आदान-प्रदान करनेवाला है । चावल का समुच्चय श्वेत वस्त्र में बांधकर वह रेशम मे धागे से शिवरूपी जीव के दांए हाथ पर बांधना अर्थात एक प्रकार से सात्त्विक रेशमी बंधन सिद्ध करना । रेशमी धागा सात्त्विक तरंगों का गतिमान वहन करने में अग्रणी है । कृति के स्तर पर प्रत्यक्ष कर्म होने हेतु यह रेशमी बंधन प्रत्यक्ष सिद्ध किया जाता है । राखी बांधनेवाले जीव में विद्यमान शक्तितरंगें चावल के माध्यम से शिवरूपी जीव की ओर संक्रमित होने से उसकी सूर्यनाडी कार्यरत होती है तथा उसमें विद्यमान शिवतत्त्व जागृत होता है । चावल के कणों के माध्यम से शिव की क्रियाशक्ति कार्यरत होती है एवं वायुमंडल में कार्यतरंगों का गतिमान प्रक्षेपण करती हैं, जिससे वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है । इस प्रकार रक्षाबंधन का मूल उद्देश्य शिव और शक्ति के संयोग से इस दिन का लाभ प्राप्त करना है । यह मानवजाति की दृष्टि से अधिक इष्ट होता है ।’

– सूक्ष्म जगत के ‘एक विद्वान’ (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से १८.८.२००५, दिन १२.३६)

तेज-तत्त्व में वृद्धि होना : राखी बांधते समय भाई की आरती उतारने पर निरांजन की ज्योति से तेज-तत्त्व की तरंगें भाई की ओर प्रक्षेपित होती हैं । ये तरंगें भाई में विद्यमान तेज-तत्त्व की वृद्धि में सहायता करती हैं ।

भाई को शक्ति-तत्त्व का लाभ होना : रक्षाबंधन के दिन राखी बांधनेवाली स्त्री में विद्यमान शक्ति-तत्त्व जागृत होते हैं । भाई को राखी के माध्यम से इस शक्ति-तत्त्व के लाभ होते हैं ।

स्थूल कृत्यमहत्त्व (प्रतिशत)किस बात के दर्शक ?
१. भाई का बहन के घर जाना१०प्रत्यक्ष आवाहनदर्शक कृत्य : यह कृत्य अर्थात पुरुषत्व द्वारा (शिवत्व द्वारा) स्त्रीत्व को (शक्ति को) प्रत्यक्ष कार्य की जागृति के लिए ब्रह्मस्थिति में आवाहन करना
२. बहनद्वारा भाई का औक्षण करना२०प्रत्यक्ष जागृतित्मक आवाहनदर्शक कृत्य : यह कृत्य अर्थात शिवत्व को प्रत्यक्ष क्रियातरंगों द्वारा  स्वस्वरूप को ब्रह्मस्थिति की क्रिया में जागृत होने के लिए आवाहन करना
३. बहन ने राखी बांधना३०प्रत्यक्ष जागृति के लिए क्रियाप्रदत्तदर्शक कृति : प्रत्यक्ष जागृति आने के लिए स्वयं की क्रियातरंगें सगुण स्वरूप में शिवतत्त्व को देना और इस माध्यम से शिवत्व को प्रत्यक्ष कार्य करने के लिए अस्तित्वदर्शक क्रिया प्रदान करना
४. बहन ने नमस्कार करना२०प्रत्यक्ष द्वैतदर्शक कृत्य : पुरुषत्व में जागृत हुए कार्यरूपी शिव को प्रत्यक्ष कार्य करने के लिए शक्तिस्वरूप से नमन कर उसे प्रत्यक्ष चालना देना
५. भाई को भोजन परोसना अथवा भाई ने भेंट देना इत्यादि२०प्रत्यक्ष क्रिया के स्तर पर रहनेवाला प्रेमदर्शक कृत्य : द्वैतस्तर का अस्तित्व निर्माण होने के कारण द्वैत की क्रिया अर्थात सगुण स्वरूप का प्रेमदर्शक कृत्य
कुल१००    
– एक ज्ञानी (श्री. निषाद देशमुख के माध्यम से, ३०.७.२००६, दिन २.४०)

बहन के भक्तिभाव के अनुसार भाई को लाभ होता है ।

अ. इस दिन श्री गणेश तथा श्री सरस्वती देवी का तत्त्व पृथ्वीतल पर अधिक मात्रा में आता है तथा उसका दोनों भाई एवं बहन को अधिक मात्रा मेें लाभ होता है ।

आ. राखी बांधते समय स्त्री जीव के शक्ति तत्त्व प्रगट होकर पुरुष जीव को हाथ के माध्यम से प्राप्त होता है । इसका भाई को ५ घंटे तक २ प्रतिशत लाभ होता है ।

इ. बहन का भक्तिभाव, उसकी ईश्वर के प्रति लगन तथा उसपर गुरुकृपा जितनी अधिक, उतना उसने भाई के लिए ईश्वर को पुकारने पर परिणाम हाेकर भाई की प्रगति अधिक होती है ।

संदर्भ ग्रंथ

उपरोक्त जानकारी सनातन के ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’ से ली गई है । रक्षाबंधन समान अन्य त्यौहारों के विषय में जानने के लिए यह ग्रंथ अवश्य पढें ।

बहन को अनमोल ग्रंथ भेंट दें !

व्यक्तित्व विकास

स्वसूचनाओंद्वारा स्वभावदोष निर्मूलन

संस्कार

अध्ययन कैसे करें ?

अध्यात्म

आनन्दप्राप्ति हेतु अध्यात्म

रक्षाबंधन संबंधी वीडियो देखें !