परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कृतज्ञताभाव को दर्शानेवाली अद्वितीय तथा आदर्शवत् कृतियां !

अपने गुुरुदेवजी के प्रति प्रतीत शब्दातीत तथा भावमय कृतज्ञता !

प.पू. भक्तराज महाराज द्वारा किए जा रहे मार्गदर्शन को लिखकर लेते हुए परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी

१. दिन का प्रारंभ प्रार्थना तथा कृतज्ञता से करना

प.पू. डॉक्टरजी के दिन का प्रारंभ प.पू. भक्तराज महाराज के (प.पू. बाबा के) चरणों में कृतज्ञता तथा प्रार्थना से होता है ।

२. पहले प.पू. भक्तराज महाराज द्वारा बिना बताए
उनके सामने न बैठना, तथा अपनी दृष्टि उनके चरणों में रखना

प.पू. डॉक्टरजी प.पू. बाबा के पास सेवा के लिए जानेपर जबतक प.पू. बाबा बैठने के लिए नहीं कहते थे, तबतक नहीं बैठते थे । वे बाबाजी के सामने यदि बैठ भी गए, तो भी घुटने की पीडा होते हुए भी वे भूमिपर ही बैठते थे तथा उनकी दृष्टि सदैव उनके चरणों की ओर होती थी । केवल कोई प्रश्‍न पूछने के समय ही वे प.पू. बाबा की ओर देखते थे ।

अ. उन्होंने प.पू. भक्तराज महाराज के प्रत्येक शब्द को अपने संग्रह में रखा है । प.पू. बाबाजी का बोलना तथा भजनों का ध्वनिमुद्रण, ध्वनिचित्रीकरण, साथ ही उनके छायाचित्रों को समष्टि के लिए संजोकर रखा है ।

आ. यह आश्रम प.पू. भक्तराज महाराज का है, इस प्रकार से प.पू. डॉक्टरजी में सनातन के आश्रमों के प्रति भाव होता है । नित्य जीवन में भी मैं प.पू. बाबाजी का शिष्य हूं, यही उनका विचार होता है और उसके अनुसार ही प.पू. डॉक्टरजी की बातें तथा आचरण भी होता है ।

३. प.पू. बाबाजी के वाहन के प्रति कृतज्ञता

प.पू. बाबाजी द्वारा उपयोग की गई गाडी का आश्रम में आगमन होनेपर उनमें मानो प.पू. बाबाजी ही आश्रम में आए हैं, इस प्रकार का आनंद था । उनकी गाडी को देखकर मैं साक्षात् प.पू. बाबाजी से मिल रहा हूं, इस विचार से उनकी भावजागृति हुई ।

 

सुंदर प्रकृति को बनानेवाले ईश्‍वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना

१. पानी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाना

एक बार प्राणशक्ति अल्प होने से प.पू. डॉक्टरजी का गला सूख रहा था । उसके लिए बार-बार पानी पीने लगने से उन्होंने कहा, अच्छा हुआ न, कि ईश्‍वर ने हमें पानी दिया है ! पानी नहीं होता, तो हमारा क्या होता ?

२. वृक्ष को बांधकर रखनेवाले भूमि में विद्यमान जडों की भांति ईश्‍वर द्वारा भी हमें बांधकर रखे जाने की बात कही जाना
एक बार उन्होंने कहा, हमें वृक्ष तो दिखाई देता है; परंतु उस वृक्ष को बांधकर रखनेवाली जडें नहीं दिखाई देतीं । हमें भी ईश्‍वर ने ऐसे ही बांधकर रखा है ।

३. प.पू. डॉक्टरजी में विद्यमान कृतज्ञताभाव का प्रकृति द्वारा प्राप्त प्रत्युत्तर

गुरुमाता की प्रकृति के प्रति इस कृतज्ञता का मानो सारी प्रकृति ही अनुभव कर रही है तथा उसमें प्रकृति को भी कृतज्ञता प्रतीत हो रही है, ऐसा प्रतीत होता है । उनके कक्ष के परिसर के वृक्ष मानो उनके चरणों में नतमस्तक होने की भांति उनकी कक्ष की दिशा में झुके हुए दिखाई देते हैं, तो रंगीन पक्षी और सुंदर तितलियां हल्के-हल्के उस कक्ष के परिसर में विहार करते हैं । कभी कोयल अपने सुंदर और मधुर ध्वनि में हम साधकों को आवाज देकर ये सब बताने का प्रयास करता है ।

 

साधकों के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करनेवाले महान परात्पर गुरु !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

१. पूर्णकालिन बने साधकों के प्रति कृतज्ञता

जो साधक आश्रम के न होते हुए भी बिना किसी व्यावहारिक विचार से पूर्णकालीन साधक बन गए, उन साधकों के प्रति गुरुमाता को कृतज्ञता प्रतीत होती है तथा वह उनकी बातों से व्यक्त भी होती है ।

२. कृतज्ञता के कारण ही साधकों ! आप जीते, मैं हारा !, यह कविता लिखी जाना

साधक कितने कष्ट होेनेपर भी साधना कर रहे हैं, इस विचार से गुुरुमाता को कृतज्ञता प्रतीत हो रही थी । एक बार उनकी बातों से वह व्यक्त भी हुई । उसके लिए उन्होंने साधकों ! आप जीते, मैं हारा !, यह कविता लिखी ।

३. सनातन के साधकों का संकट दूर हुआ; इसलिए कृतज्ञता से आंसू आना

सनातन के ६ साधकों को बिना किसी कारण एक प्रकरण में फंसाकर कारागृह में रखा गया था । न्यायालय से उनको निर्दोष मुक्त किए जानेपर उनकी स्वागतफेरी निकाली गई थी । जब यह फेरी आश्रम आ रही थी, तब ईश्‍वर ने हमारे लिए इतना कुछ किया, इस कृतज्ञताभाव से प.पू. डॉक्टरजी की आंखों से आंसू आ गए ।

 

संतों के प्रति प.पू. डॉक्टरजी में अपार कृतज्ञता !

अनुष्ठान के समय प.पू. दादाजी वैशंपायनजी के साथ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मुख से सदैव अनेक संत मेरे लिए अनुष्ठान करते हैं; इसलिए मैं आज जीवित हूं ।, यह कृतज्ञता व्यक्त होती है ।

२. संत अनुष्ठान कर जो प्रसाद देते हैं, वह प्रसाद प.पू. डॉक्टर पहले उन साधकों को देते हैं, जिन साधकों को आध्यात्मिक कष्ट होते हैं और उन्हें प्रसाद देते समय उन्हें संतों ने अनुष्ठान कर भेजा हुआ प्रसाद है, ऐसा बताकर देते हैं । उन संतों के प्रति प.पू. डॉक्टरजी में कृतज्ञता होती है और उसी कृतज्ञता से वे साधकों को प्रसाद देते हैं ।

३. सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए तथा उसकी विश्‍व में प्रस्थापना के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा आरंभ किए गए कार्य में ईश्‍वर की कृपा से अनेक संतों ने अपना योगदान दिया और उसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने समय-समयपर मार्गदर्शन किया । अबतक विविध संतों ने सप्तपातालों में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों द्वारा दिए जा रहे कष्टों के निवारण हेतु बहुत सहायता की है । सहायता करनेवाले सभी संतों के प्रति प.पू. डॉक्टरजी में कृतज्ञता का भाव है ।

४. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने स्वयं विविध संतों द्वारा उनकी की गई सहायता, साथ ही उनका विविध संतों के साथ आत्मीयता के संबंध कृतज्ञताभाव से संग्रहित कर रखा था । उसके कारण उस संबंध के ग्रंथों का प्रकाशन करना भी सहजता से संभव हो सका ।

 

प्रत्येक वस्तु ईश्‍वर के कारण मिल रही
है, इस कृतज्ञताभाव के साथ उसका उपयोग करना

१. प.पू. डॉक्टरजी दरवाजा खोलते समय तथा बंद करते समय उसे हल्के से स्पर्श करते हैं । उनकी यही बात जब वे कक्ष का बिजली का बटन चालूू-बंद करते समय भी ध्यान में आती है ।

२. औषधि गोलियों का पैकेट खोलते समय वह पैकेट खराब न हो तथा उस औषधि की अंतिम तिथिवाला भाग फट न जाए, इस प्रकार से उसे काटते हैं ।

३. प.पू. डॉक्टरजी के भाव के कारण उनकी वस्तुआें में
जीवंतपन आना तथा उनके पुराने होनेपर भी उन वस्तुआें का सुंदर दिखना

प.पू. डॉक्टरजी प्रत्येक वस्तु ईश्‍वर द्वारा ही दी गई है, इस कृतज्ञताभाव से प्रेमपूर्वक उसका उपयोग करते हैं । वे प्रत्येक वस्तु का अंततक उपयोग करते हैं । उनके इस कृतज्ञताभाव से उस वस्तुआें में जीवंतपन आता है । सामान्यतः बहुत वर्षोंतक उपयोग की गई कोई वस्तु खराब दिखती है; परंतु गुरुमाता द्वारा उपयोग की गई वस्तुएं और अधिक सुंदर दिखने लगती हैं । उसका एक उदाहरण है कि प.पू. डॉक्टरजी ने एक ईजार का १५ वर्षोंतक उपयोग किया है; परंतु वह ईजार पुरानी हो गई है, ऐसा नहीं लगता । उनके द्वारा उपयोग सफेद चौबंदियां, तो इतनी मुलायम बन गई हैं कि उनका स्पर्श अच्छा लगता है, उन्हें हाथ से नीचे रखें, ऐसा नहीं लगता ।

– एक साधिका, सनातन आश्रम, गोवा

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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