आश्विन पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) को खंडग्रास चंद्रग्रहण, ग्रहण में किए जानेवाले कर्म और ग्रहण की राशिनुसार मिलनेवाला फल !

‘यह चंद्रग्रहण भारत के साथ संपूर्ण एशिया खंड, ऑस्ट्रेलिया, रूस, संपूर्ण यूरोप और अफ्रीका खंड के प्रदेशों में दिखाई देगा ।

व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर ज्योतिषशास्त्र की उपयुक्तता

ज्योतिषशास्त्र, यह कालज्ञान का शास्त्र है । ‘कालमापन’ एवं ‘कालवर्णन’, उसके २ अंग हैं । कालमापन के अंतर्गत काल नापने के लिए आवश्यक घटक एवं गणित की जानकारी होती है । कालवर्णन के अंतर्गत काल का स्वरूप जानने के लिए आवश्यक घटकों की जानकारी होती है । कालवर्णन के दृष्टिकोण से ज्योतिषशास्त्र की व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर उपयुक्तता इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

ज्योतिषशास्त्र : काल की अनुकूलता एवं प्रतिकूलता बतानेवाला शास्त्र !

ज्योतिषशास्त्र अर्थात ‘भविष्य बतानेवाला शास्त्र’ ऐसी अनेकों की समझ होती है और इसलिए उन्हें लगता है कि ज्योतिषी हमारा भविष्य विस्तार से बताए । क्या वास्तव में ज्योतिष भविष्य बतानेवाला शास्त्र है, यह इस लेख द्वारा हम समझ लेंगे । उससे पूर्व ज्योतिषशास्त्र का प्रयोजन समझ लेंगे ।

फल-ज्योतिषशास्त्र के मूलभूत घटक : ग्रह, राशि एवं कुंडली के स्थान

फल-ज्योतिषशास्त्र ग्रह, राशि एवं कुंडली के स्थान, इन ३ मूलभूत घटकों पर आधारित है । इन ३ घटकों के कारण भविष्य दिग्दर्शन करना संभव होता है । इन ३ घटकों को संक्षेप में इस लेख द्वारा समझ लेते हैं ।

नैसर्गिक कालविभाग : वर्ष, अयन, ऋतु, मास एवं पक्ष

सूर्य एवं चंद्र, कालपुरुष के नेत्र समझे जाते हैं । सूर्य एवं चंद्र के भ्रमण के कारण हम कालमापन कर सकते हैं और उसका व्यवहार में उपयोग भी कर सकते हैं । ‘वर्ष, अयन, ऋतु, मास एवं पक्ष’ इन प्राकृतिक कालविभागों की जानकारी इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

चंद्रोदय कब होता है ?

‘सामान्यतः बोली भाषा में हम ऐसा कहते हैं ‘सूर्य का उदय सवेरे एवं चंद्र का रात में होता है ।’ सूर्य के संदर्भ में यह योग्य हो, तब भी  चंद्र के संदर्भ में ऐसा नहीं हाेता है । चंद्रोदय प्रतिदिन भिन्न-भिन्न समय होता है । उस विषय की जानकारी इस लेख द्वारा समझ लेते हैं ।

नवग्रहों की उपासना करने का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व !

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहदोषों के निवारण के लिए ग्रहदेवता की उपासना करने के लिए बताया जाता है । इस उपासना करने के पीछे का उद्देश्य एवं उसका महत्त्व इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

ज्योतिषशास्त्रानुसार रत्न धारण करने का महत्त्व

भारत में रत्नाें का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है । प्राचीन ऋषि, ज्योतिषी, वैद्याचार्य आदि ने उनके ग्रंथाें में ‘रत्नाें के गुणधर्म एवं उपयोग’ संबंधी विवेचन किया है । ज्योतिषशास्त्र में ग्रहदोषोें के निवारण के लिए रत्नों का उपयोग किया जाता है । रत्न धारण करने के पीछे का उद्देश्य एवं उनका उपयोग इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।

शनि ग्रह की ‘साडेसाती’ अर्थात आध्यात्मिक जीवन को गति देनेवाली पर्वणी !

‘शनि ग्रह की ‘साडेसाती’ कहते ही सामान्यतः हमें भय लगता है । ‘मेरा बुरा समय आरंभ होगा, संकटों की श्रृंखला आरंभ होगी’, इत्यादि विचार मन में आते हैं; परंतु साडेसाती सर्वथा अनिष्ट नहीं होती । इस लेख द्वारा ‘साडेसाती क्या है और  साडेसाती के होते हुए हमें क्या लाभ हो सकता है’, इस विषय में समझ लेंगे ।

ज्योतिषशास्त्रानुसार भविष्य बताने की पद्धति एवं प्रारब्ध पर मात करने हेतु साधना एवं क्रियमाणकर्म का महत्त्व

गत जन्मों की साधना के कारण व्यक्ति को जन्म से ही ज्योतिष विद्या का ज्ञान होता है । ज्योतिषशास्त्र से संक्षिप्त परिचय होने पर भी   व्यक्ति को उसकी सभी बारीकियों का अपनेआप बोध होने लगता है ।