पशु-पक्षियों का सहजता से सद्गुरु की ओर आकर्षित होना, उनमें विद्यमान चैतन्य का द्योतक !

हम सभी ने कहीं न कहीं पढा ही होगा कि पूर्व के काल में ऋषि-मुनियों के आश्रम में पशु-पक्षी निर्भयता से विचरते थे । ऋषि-मुनियों की तपस्या की सात्त्विकता पशु-पक्षियों को भी ध्यान में आती है । प्रकृति भी उस सात्त्विकता को प्रतिसाद देती है, इसीलिए ऋषि-मुनियों के आश्रम में भी बहार आ जाती थी ।

सनातन की साधिका स्व. (श्रीमती) प्रमिला रामदास केसरकरजी ने प्राप्त किया सनातन का १२१ वां संतपद एवं स्व. (श्रीमती) शालिनी प्रकाश मराठेजी ने १२२ वां संतपद !

‘मूल ठाणे के दंपति अधिवक्ता रामदास केसरकर एवं श्रीमती प्रमिला केसरकर २७ वर्ष पूर्व सनातन संस्था के संपर्क में आए और उन्होंने साधना आरंभ की । वर्ष २००८ में वे दोनों रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में साधना के लिए आए ।

समष्टि कार्य की लगन रखनेवाले पू. नीलेश सिंगबाळजी (आयु ५५ वर्ष) सद्गुरु पद पर विराजमान !

गुरुकृपायोगानुसार साधना कर पू. नीलेश सिंगबाळजी ने सद्गुरु पद प्राप्त किया । इस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी और सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी की पत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने उनका सम्मान किया ।

अपने कार्य और आचरण से सबके सामने आदर्श रखनेवाली सद्गुरु (कु.) स्वाती खाडये !

सनातनकी संत सदगुरु (कुमारी) स्वातीजी महाराष्ट्र के विविध जनपदों में प्रसारकार्य के लिए जाती हैं । सदगुरु (कुमारी) स्वातीजी के साथ से जो कुछ सीखा है, उसे यहां प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है ।

भोलापन, प्रीति और उत्कट राष्ट्र तथा धर्म प्रेम से युक्त फोंडा, गोवा के सनातन के संत पू. लक्ष्मणजी गोरेजी के सम्मान समारोह के प्रमुख सूत्र

६ दिसंबर २०२१ के दिन भोलापन, प्रीति और उत्कट राष्ट्र तथा धर्म प्रेम से युक्त फोंडा, गोवा के सनातन के ८० वर्षीय साधक श्री. लक्ष्मण गोरे सनातन के ११४ वें व्यष्टि संतपद पर विराजमान हुए । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने पू. गोरेजी के संतत्व के विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संदेश पढकर सुनाया ।

कर्करोग जैसी दुःसाध्य बीमारी में भी गुरुदेवजी के प्रति दृढ श्रद्धा के कारण आनंदित रहकर बीमारी का सामना करनेवाले पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी !

‘१०.११.२०१९ को अधिक मात्रा में सेवा व शारीरिक परिश्रम होने के कारण मेरी कमर में पीडा होने लगी । मैंने इस संदर्भ में डॉक्टर से संपर्क किया; परंतु उनके ध्यान में कुछ नहीं आ रहा था अथवा वे मेरी इस बीमारी का अनुमान लगाने में रुचि नहीं ले रहे थे । वे प्रत्येक बार औषधियां दे रहे थे । अधिक मात्रा में पीडाहारी औषधियां लेने से मुझे पेट का भी बहुत कष्ट होने लगा ।

साधकसंख्या अल्प होते हुए भी भावपूर्वक एवं लगन से गुरुकार्य करनेवाले अयोध्या के पू. डॉ. नंदकिशोर वेद !

डॉ. नंदकिशोर वेद से हमारा लगभग १७ वर्षाें से निकट का संबंध था । हम सभी प्रेम से उन्हें ‘नंदकिशोर काका’ कहते थे । मैं उत्तर भारत में सेवा हेतु आया, तब से अयोध्या केंद्र का दायित्व उन्हीं के पास था ।

कठिन प्रसंग में भी कृतज्ञभाव में रहनेवाले और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति अपार भाव रखनेवाले कल्याण (ठाणे) के स्व. माधव साठे (आयु ७५ वर्ष) संतपद पर विराजमान !

कल्याण यहां के श्री. माधव साठे वर्ष १९९८ से सनातन के मार्गदर्शन में साधना कर रहे थे । परात्पर गुरु डॉक्टरजी पर उनकी अपार श्रद्धा थी । साधना की तीव्र लगन के कारण उन्होंने मन लगाकर व्यष्टि और समष्टि साधना की । वर्ष २०१२ में उनका आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत घोषित किया गया था ।

साधना की तीव्र लगन और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रख असाध्य रोग में भी भावपूर्ण साधना कर ‘सनातन के १०७ वें (समष्टि) संतपद’ पर आरूढ हुए अयोध्या के पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) !

सनातन आश्रम में निवास करनेवाले डॉ. नंदकिशोर वेदजी (आयु ६८ वर्ष) का दीर्घकालीन रोग के कारण ११ मई २०२१ की संध्या को निधन हुआ । वे मूलत: अयोध्या (उत्तर प्रदेश) निवासी थे । २२ मई २०२१ को डॉ. नंदकिशोर वेद को देहत्याग किए १२ दिन पूर्ण हुए । इस दिन साधना की तीव्र लगन और ईश्वर पर दृढ श्रद्धा रख, असाध्य रोग में भी भावपूर्ण साधना कर वे सनातन के १०७ वें (समष्टि) संतपद पर आसीन हुए ।

श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का परिचय

‘हम कितना भी चिंतन करें, तब भी सद़्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी (सद़्गुरु बिंदाजी) के सूक्ष्म आध्यात्मिक कार्य की व्याप्ति नहीं निकाल पाएंगे ! उनका सूक्ष्म कार्य अपार है; क्योंकि वह मानव बुद्धि से परे है ।