१. स्थापना और उद्देश्य

१.८.१९९१ को प.पू. भक्तराज महाराजजी की कृपा से सनातन भारतीय संस्कृति संस्था की स्थापना हुई । तत्पश्‍चात प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिए अभ्यासवर्ग, गुरुपूर्णिमा महोत्सव तथा वर्ष १९९६ से वर्ष १९९८ की कालावधि में ली सैकडों सभाआें से सहस्त्रों जिज्ञासु और साधक संस्था से जुड गए । तत्पश्‍चात अध्यात्मप्रसार की व्याप्ति बढने पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २३ मार्च १९९९ को सनातन संस्था की स्थापना की । प.पू. भक्तराज महाराजजी के सदैव आशीर्वाद प्राप्त इस संस्था के कार्य का विस्तार आज अनेक गुना बढ गया है और सहस्रो साधक सनातन के मार्गदर्शनमें तथा प.पू. गुरुदेव डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधनारत हैं । उनके मार्गदर्शन से अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना हेतु संगठित एवं क्रियाशील हो रहे हैं ।

२. सनातन के कार्य का उद्देश्य

भक्तियोग, ज्ञानयोग, ध्यानयोग आदि विविध योगमार्गों के साधकों को व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन करना, सनातन के कार्य का केंद्रबिंदु है । हिन्दू धर्मांतर्गत अध्यात्मशास्त्र का वैज्ञानिक परिभाषा में प्रसार करना, सनातन संस्था की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य है । देश के संविधान में भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो, इस हेतु जागृति होने की दृष्टि से सनातन संस्था समविचारी संस्थाआें के साथ हिन्दूसंगठन और सांप्रदायिक एकता के लिए प्रयत्न करती है ।
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३. उद्देश्य

अ. जिज्ञासुओं को अध्यात्म का शास्त्रीय परिभाषा में परिचय कराना तथा धर्मशिक्षा देना ।

आ. साधकें को व्यक्तिगत साधना के विषय में मार्गदर्शन कर ईश्‍वरप्राप्ति का मार्ग दिखाना ।

इ. आध्यात्मिक शोधकार्य करना तथा उनसे प्राप्त निष्कर्षों द्वारा अध्यात्म का महत्त्व प्रमाणित करना ।

ई. अध्यात्म में विद्यमान तात्त्विक (थेयरी) एवं प्रायोगिक भाग (प्रैक्टिकल) सिखाना ।

उ. समाजसहायता, राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति के द्वारा सभी दृष्टि से आदर्श धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु कार्य करना ।

४. विशेषताएं

१. विविध पंथियों को उनके पंथ के अनुसार मार्गदर्शन !

२. संकीर्ण सांप्रदायिकता नहीं, अपितु हिन्दू धर्म के व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार शिक्षा !

३. जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां और उतने ही साधनामार्ग तत्त्व के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के उसकी आवश्यकता एवं क्षमता के अनुसार साधना का दिशादर्शन !

४. शीघ्र ईश्‍वरप्राप्ति हेतु सभी योगमार्गों को समा लेनेवाले गुरुकृपायोग योगमार्ग के अनुसार साधना !

५. व्यक्तिगत साधना के साथ-साथ समाज की उन्नति हेतु करनी आवश्यक साधना की शिक्षा !

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सनातन संस्था ऋषि-मुनी तथा संत महंतों द्वारा धर्मशास्त्र को आधारभूत मानकर समाज, राष्ट्र तथा धर्म की उन्नति हेतु जो मार्ग दिखाया, उसके अनुसार कार्य करनेवाली अग्रणी संस्था है । सनातन संस्था का दृष्टिकोण केवल व्यक्ति की पारमार्थिक उन्नति होनेतक सीमित नहीं है । सनातन द्वारा व्यक्ति के साथ- साथ समाज, राष्ट्र तथा धर्म के उत्कर्ष को प्रधानता दी गई है । उसके लिए संस्था अध्यात्मप्रसार करने के साथ-साथ राष्ट्ररक्षा तथा धर्मजागृति के विषय में विविध उपक्रम चलाती है ।

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