वात्सल्यभाव, सेवाभाव तथा गुुरुदेवजी के प्रति अपार भाव व्याप्त सनातन की ७०वीं संत पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रनजी की गुणविशेषताएं

१. श्री. आर्. जयकुमार

१. कोई भी प्रश्‍न पूछनेपर अचूक उत्तर दिया जाना तथा शांत और स्थिर होना

पू. (श्रीमती) उमाक्का चेन्नई में हैं, यह हमारा सौभाग्य है । मुझे उनके साथ प्रवचन करने की सेवा में सहभागी होने का अवसर मिला था । पू. उमाक्का को कोई भी आध्यात्मिक अथवा व्यावहारिक प्रश्‍न पूछे जानेपर उनसे उसका अचूक उत्तर अथवा मार्गदर्शन मिलता है । उनके पास अद्यत् तथा बहुत अच्छी जानकारी होती है । ऐसा होते हुए भी वे शांत तथा स्थिरचित्त हैं ।

१ आ. पति के शस्त्रकर्म के समय भी उनके मुखमंडलपर किसी भी प्रकार की चिंता, प्रतिक्रिया अथवा भावना का लवलेश भी न होना तथा पति के शस्त्रकर्म के समय चिकित्सालय में प्राप्त अनुभूतियों को पढने के पश्‍चात उनके द्वारा अपना सर्वस्व ही श्रीकृष्णजी तथा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में समर्पित किए जाने का प्रतीत होना

उनके शरणागत भाव को दर्शानेवाली यह घटना है । एक बार पू. उमाक्का के पति श्री. रवी का शस्त्रकर्म किया जानेवाला था । उस समय उनके लिए रक्तदान करने का अवसर मुझे मिला था । मैं उस दिन उनके साथ चिकित्सालय में ही था । पू. उमाक्का मैं और अन्य २ साधकों से बात कर रही थीं, तब उनके मुखमंडलपर पति के शस्त्रकर्म के प्रति किसी भी प्रकार की चिंता, प्रतिक्रिया अथवा भावना का लवलेश भी नहीं था । चिकित्सालय में शस्त्रकर्म की सिद्धता चल रही थी तथा आधे घंटे में श्री. रवी को शस्त्रकर्म के लिए ले जाना था । उस समय पू. उमाक्का के भ्रमणभाषपर कॉल आ गया । उस समय भ्रमणभाषपर बात करने हुए उन्होंने कहा, मैं आधे घंटे के पश्‍चात संगणकपर लॉग-ऑन रहूंगी । किसी स्त्री के पति का शस्त्रकर्म होनेवाला हो, वह स्त्री संगणकीय प्रणाली से कैसे जुड सकती है ?, इसका मुझे आश्‍चर्य हुआ; परंतु पू. उमाक्का इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं ।

कुछ समय पश्‍चात उन्होंने उनके पति के शस्त्रकर्म के समय चिकित्सालय में उन्हें प्राप्त अनुभूतियां साधकों को भेजा था । उन्हें पढने के पश्‍चात पू. उमाक्का ने श्रीकृष्णजी तथा परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में अपना सर्वस्व ही समर्पित किया था, इसका मुझे भान हुआ । उनमें ईश्‍वर के प्रति संपूर्ण शरणागत भाव है ।

१ इ. श्रीकृष्णजी ही सबकुछ करते हैं; इसलिए हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, पू. उमाक्का द्वारा किए गए इस मार्गदर्शन की प्रचीती जीवन की अनेक घटनाआें में होना

मेरा मार्गदर्शन करते हुए पू. उमाक्का ने कई बार कहा है, श्रीकृष्ण ही सबकुछ करते हैं; इसलिए हमें चिंता करने की क्या आवश्यकता है ? पू. उमाक्का द्वारा किए गए इस मार्गदर्शन का लाभ मुझे मेरे जीन में अनेक घटनाआें में स्थिति को समझ लेते समय हुआ है । इसके लिए मैं पू. उमाक्का के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।

 

२. श्रीमती गीतालक्ष्मी

२ अ. साधिका द्वारा उसकी समस्या संदिग्ध पद्धति से बता
कर भी पू. उमाक्का द्वारा उसके मन की बात पहचनानर उसका योग्य मार्गदर्शन
किया जाना तथा उसके कारण स्थिति की ओर देखने के दृष्टिकोण में परिवर्तन आना

एक बार एक सत्संग में साधकों को आनेवाली समस्याएं बताने के लिए कहा गया था, जिससे कि उन्हें आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिलकर उन समस्याआें का समाधान संभव था । मुझे भी मेरी एक समस्या बताने का अवसर मिला था; परंतु वह समस्या कुछ व्यक्तिगत स्तर की होने से मैने उसे स्पष्टरूप से न कहकर कुछ संदिग्ध पद्धति से बताई; परंतु पू. उमाक्का ने मेरे मन की बात को पहचानकर मेरा उचित मार्गदर्शन किया । उसके कारण उस स्थिति की ओर देखने के दृष्टिकोण में ही परिवर्तन आया । उस दिन से पू. उमाक्का द्वारा बताई जानेवाली प्रत्येक बात मेरे मन में बैठ जाती है ।

२ आ. सेवाभाव

एक बार एक मंदिर में प्रवचन का आयोजन किया गया था । उस समय सनातन के सात्त्विक उत्पाद तथा ग्रंथों की प्रदर्शनी भी लगाई जानेवाली थी । पू. उमाक्का के प्रवचन के समय मुझे ग्रंथप्रदर्शनी के कक्षपर रुकना संभव हो; इसलिए पू. उमाक्का ने क्या आप मेरे साथ आ सकती हैं ?, ऐसा पूछा । मुझे वह स्थान ज्ञात न होने से पू. उमाक्का ही मुझे वहां लेकर गई तथा उन्होंने मुझे वापस भी छोडा । मुझे सेवा का अवसर देकर तथा वहां ले जाकर वापस घर छोडने के कारण मैने उनका धन्यवाद करनेपर वे कहने लगीं, मुझे किसी साधक को सेवा के लिए ले जाने का अवसर देने के कारण वास्तव में मुझे ही आपका धन्यवाद करना चाहिए । छोटी से छोटी सेवा में भी उनके सेवाभाव को देखकर मैं चकित रह गई ।

२. पू. उमाक्का का वात्सल्यभाव !

उस दिन मंदिर में ग्रंथप्रदर्शनी की सेवा समाप्त होने में बहुत समय लगा था, उस समय पू. उमाक्का ने मुझे क्या आपको भूख लगी है ?, ऐसा पूछा । तब मैने कहा, अब रहने दीजिए अक्का (दीदी), हम निकलते हैं । तो उन्होंने कहा, खाली पेट बहुत समयतक नहीं रहना चाहिए । महाप्रसाद के स्थानपर जाकर आप महाप्रसाद ग्रहण करें । तबतक मैं प्रदर्शनीकक्षपर रुकती हूं । वास्तव में उन्हें भी विलंब लगा था; परंतु उन्होंने मुझे घर पहुंचाकर ही वे अपने घर गई । इस घटना से उनका प्रेमभाव मेरे ध्यान में आया । उसके पश्‍चात वे केवल मेरी ही नहीं, अपितु मेरे बच्चों की मातृवत भाव से चिंता करती थीं तथा उनका हाल पूछती थीं । उनमें एक उत्कृष्ट माता के गुण हैं । हमें पू. उमाक्का देने के लिए श्रीकृष्णजी तथा गुुरदेवजी के चरणों में कृतज्ञता ! हम सभी साधकों के लिए वे आशीर्वाद ही हैं ।

 

३. श्रीमती सुधा गोपालकृष्णन्

३ अ. प्रेमभाव

मुझ में पहले से ही पू. उमाक्का के विषय में लेखन करने की बहुत इच्छा थी; परंतु वह मेरे लिए कभी संभव नहीं हुआ । आज मैं गुरुकृपा से यह लिख रही हैं तथा उसका मुझे बहुत आनंद है ।

वर्ष २०१२ में चेन्नई के विनयगार (विनायक) मंदिर से लेकर पेरुमल मंदिरतक आयोजित नामफेरी में मुझे पू. उमाक्का के साथ सहभागी होने का सौभाग्य मिला । उस समय पू. उमाक्का के साथ सेवा करते हुए मुझे बहुत भाव प्रतीत हो रहा था । उनमें साधकों के प्रति भाव मुझे आज भी उनमें प्रतीत होता है ।

३ आ. अल्प अहं

वैसे देखा जाए, तो मुझे पू. उमाक्का से बहुत सिखने मिलने से मुझे उसका लाभ मिला था; परंतु जब वे अमेरिका जा रही थीं, तब मुझे कहने लगीं, मेरे अमेरिका में होनेपर जब संगणकीय प्रणालीपर सत्संग होता है, तब मुझे आप जोडना न भूलें । उनमें मुझे तनिक भी अहं प्रतीत नहीं हुआ ।

 

४. श्रीमती कल्पना बालाजी

४ अ. सभी प्रकार की सेवा भावपूर्ण पद्धति से करना

मैने सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना आरंभ की । तबसे लेकर आजतक पू. उमाक्का मेरे लिए प्रेरणास्रोत रही हैं । पू. उमाक्का सेवा में कभी भेदभाव नहीं करतीं । किसी स्थानपर उनका प्रवचन हो, तब भी वे वहां के व्यासपीठ की स्वच्छता करना अथवा अन्य कोई भी सेवा उतनी ही भावपूर्ण पद्धति से करती हैं ।

४ आ. पू. उमाक्का की रहने-बोलने में भावना का लवलेश भी न होना तथा
उनमें प.पू. गुुरुदेवजी तथा श्रीकृष्णजी के प्रति संपूर्ण शरणागत भाव दिखाई देना

पू. उमाक्का कभी भी अपनी पारिवारिक स्थिति के विषय में कभी नहीं बतातीं । विशेषरूप से उनके पति श्री. रवी की शारीरिक अस्वस्थता के विषय में हमें बहुत विलंब से ज्ञात हुआ । (श्री. रवी का यकृत का शस्त्रकर्म हुआ था ।) पू. उमाक्का के आचरण में भावना का लवलेश भी नहीं दिखाई नहीं देता, इसके विपरीत उनमें प.पू. गुरुदेवजी तथा श्रीकृष्णजी के प्रति संपूर्ण शरणागत भाव दिखाई देता है । एक महिला के रूप में मैं पू. उमाक्का से साधना तथा पारिवारिक दायित्त्व में संतुलन कैसे बनाना होता है ?, यह सीख रही हूं ।

 

५. श्री. के. बालाजी

५ अ. सभी साधकों के प्रति समान प्रेम तथा अपनापन

पू. उमाक्का की बेटी के विवाह के समय वे वधू की मां के रूप में बहुत व्यस्त थीं; परंतु विवाह की भीड में भी मुझे देखकर उन्होंने मुझसे बात की और पूछा कि आप की पत्नी आपके साथ क्यों नहीं आईं ? उस समय मैं साधना में नया-नया था । साधक नया हो अथवा पुराना; परंतु पू. उमाक्का के व्यवहार के कारण मेरे मन में सनातन संस्था के प्रति आस्था और बढ गई ।

५ आ. प्रत्येक व्यक्ति में श्रीकृष्णजी को देखनेवाली पू. उमाक्का !

एक बार चंद्रग्रहण के समय साधकों के लिए पालन करने आवश्यक नियमों के संदर्भ में रामनाथी आश्रम से कुछ सूचनाएं मिली थीं । एक साधक ने उनसे पूछा कि ये नियम केवल साधकों के लिए ही सीमित हैं अथवा हम उन्हें अन्य परिजनों को भी बता सकते हैं ? उसपर उन्होंने तुरंत कहा, हम ये नियम अन्य परिजनों को भी बता सकते हैं; क्यों कि वे भी हमारे भावी साधक ही होंगे ! उनके इस उत्तर से मुझे पू. उमाक्का संपूर्ण समाज की ओर गुुरु की (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) दृष्टि से देखती हैं ।, यह ध्यान में आया । इन ५ वर्षों की कालावधि में किए गए निरीक्षण से पू. उमाक्का प्रत्येक व्यक्ति में श्रीकृष्णजी को देखती हैं ।, यह मेरे ध्यान में आया । मुझ में उनसे और बहुत सीखन में इच्छा है और गुरुदेवजी की कृपा से वैसा होने ही वाला है ।

 

६. श्रीमती सुगंधी जयकुमार

६ अ. सादगीयुक्त जीवनपद्धति

गुरुपूर्णिमा के दिन पू. उमाक्का के लिए साडी का चुनाव करते समय वे २-३ साडियां ही दिखाती थीं । चाहे सनातन का सत्संग हो अथवा कोई विवाह समारोह, उनकी वेशभूषा एक ही प्रकार की होती है । इससे उनकी सादगीयुक्त जीवनपद्धति दिखाई देती है ।

६ आ. दिन में किसी भी क्षण मैं उनसे बात करती हूं, तब वे उसी उत्साह में होती हैं ।
६ इ. हमें कोई सेवा देनी हो, तो वे इतनी विनम्रता से, प्रेम के साथ तथा अपेक्षारहित पद्धति से हम से पूछती हैं कि उनकी बात कोई अस्वीकार नहीं कर सकता ।

६ ई. प्रत्येक व्यक्ति के साथ प्रेम से बात करना

चाहे उनकी मां हो अथवा सासूजी, पू. उमाक्का का व्यवहार उनके साथ समानता का होता है । सामने की व्यक्ति चाहे कोई भी हो; परंतु वे उनके साथ प्रेम से ही बातें करती हैं । मैने उनके घर जानेपर तथा उनकी बेटी के विवाह के समय इसका कई बार अनुभव किया है ।

६ उ. साधकों की प्रशंसा कर उनको प्रयास करने के लिए प्रेरित करना : हमने कोई छोटी सी सेवा की, तब भी पू. उमाक्का हंसते हुए हमारी पीठ थपथपाती हैं । वास्तव में वे अनेक सेवाएं करती हैं; परंतु वे प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का सम्मान भी करती हैं । उनकी उत्साह बढानेवाली बातों से हमें अधिक प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है ।

६ ऊ. पू. (श्रीमती) उमाक्का से व्यक्तिगत जीवन के स्थिति
को संभालने की प्राकृतिक पद्धति सिखने के लिए मिलना

पू. उमाक्का हम चेन्नई के सभी साधकों की प्रेरणास्रोत हैं । उनसे हमें केवल सत्संग अथवा मार्गदर्शन ही नहीं मिलता, अपितु हमारे व्यक्तिगत जीवन में आनेवाली स्थिति का सामना करने की प्राकृतिक पद्धति सीखने के लिए मिलती है अथवा उसका अनुसरण करने मिलता है ।

६ ए. अनेक साधकों को आत्मनिर्भर बनाना

पू. उमाक्का के प्रभाव के कारण अनेक साधक आत्मनिर्भर बन गए हैं, उदा. दोपहिया अथवा चारपहिया वाहन चलाना सिखनी, कपडे डालने की पद्धति सिखना, चित्रकला के माध्यम से भाववृद्धि करना, सत्संग लेना, स्थिति को संभालना इत्यादि

६ ऐ. पू. उमाक्का द्वारा उत्साह बढानेवाला मार्गदर्शन मिलने से
भावनावशता से शीघ्र बाहर निकलना ससंभव होकर उत्साह तथा आनंद प्रतीत होना

पू. उमाक्का का सत्संग मिलना ईश्‍वर की ही कृपा है तथा हमारे लिए बडे सौभाग्य की बात है । मुझसे गुुरुदेवजी की अपेक्षा के अनुरूप न होने से कभी-कभी मुझे निराशा होती थी । ऐसी स्थिति में पूू. उमाक्का का मार्गदर्शन मिलने के कारण मैं उस भावनावश स्थिति से तुरंत बाहर आती थी तथा मुझे वर्तमान में रहना संभव होकर मुझे उत्साहित तथा आनंदित लगता था ।

सभी साधक रामनाथी आश्रम में नहीं रह सकते; परंतु हमें गुुरुदेवजी की कृपा से पू. उमाक्का के सत्संग में रहने का सौभाग्य मिला है । उसके लिए हम सभी कृतज्ञ हैं ।

 

७. श्री. पी. प्रभाकरन्

७ अ. निरंतर सत् में रहना तथा पारिवारिक
दायित्व का भी उतनी ही गंभीरता से निर्वहन करना

१० वर्ष से अधिक समय से मैं पू. उमाक्का के संपर्क में हूं । इस संपूर्ण कालावधि में मैने उन्हें किसी बात का आलस करते हुए अथवा किसी मनोरंजनात्मक बातों में लिप्त होते हुए कभी नहीं देखा है । वे गप्पे मारने में समय व्यर्थ न करते हुए निरंतर आध्यात्मिक उपक्रमों में व्यस्त रहती हैं । साथ ही वे एक गृहिणी के रूप में अपना पारिवारिक दायित्व भी उतनी ही गंभीरता से पूर्ण करती हैं ।

७ आ. कोई व्यक्ति उनके साथ दुर्व्यवहार कर रही हो, तो भी वे शांत और विनम्र रहती हैं ।
७ इ. पू. उमाक्का उनके संपर्क मेें आनेवाले लोगोंपर असीम प्रेम करती हैं तथा मैने ऐसी अनेक घटनाएं देखी हैं ।

७ ई. सेवा के लक्ष्य सुनिश्‍चित कर अविरत प्रयासों से उसे साध्य करना

पू. उमाक्का सदैव तमिल भाषा के ग्रंथों के भाषांतर का लक्ष्य निर्धारित कर तथा उसके लिए अथक परिश्रम कर उस लक्ष्य को पूर्ण करती हैं । तमिल भाषा के सनातन पंचांग के लिए वे प्रतिवर्ष प्रायोजक ढूंढती हैं तथा उसके पश्‍चात उनका वितरण करना, इसका लक्ष्य निर्धारित कर अविरत प्रयासों से उसे पूर्ण करती हैं ।

 

८. श्रीमती प्रफुल्ला रामचंद्रन्

८ अ. सकारात्मकता

मैं विगत ७ वर्षों से पू. उमाक्का को पहचानती हूं । अबतक मैने उन्हें किसी सेवा के लिए नहीं अथवा यह संभव नहीं है, ऐसा कहते हुए नहीं देखा है । वे निरंतर सकारात्मक स्थिति में होती हैं ।

८ आ. दूसरों की सेवा अच्छी होने के लिए स्वयं की सेवा में समझौता करना

दूसरे साधकों की सेवा अच्छे प्रकार से हो, इसके लिए वे स्वयं की सेवा में समझौता करती हैं । एक बार मैं भाषांतर की सेवा कर रही थी । वह सेवा नियोजित समय में पूर्ण हो, इसके लिए उन्होंने मेरे बेटे के लिए भोजन बनाकर दिया ।

८ इ. पू. उमाक्का निरंतर साक्षीभाव में होती हैं ।

 

९. श्रीमती रागिणी प्रेमनाथ

ईश्‍वर की कृपा से मुझे पू. उमाक्का के साथ तमिल भाषा के सनातन के ग्रंथ तथा पंचांग से संबंधित सेवा का अवसर मिला । उस समय मुझे उनमें व्याप्त अनेक गुण सिखना संभव हुआ ।

९ अ. समर्पणभाव

पू. उमाक्का कोई भी सेवा समर्पणभाव से करती हैं । वे उस दिन के किसी भी समय सेवा करने अथवा साधकों की सहायता करने के लिए उत्साह के साथ सिद्ध होती हैं । मैने उनको अब मैं थक गई हूं, ऐसा कहते हुए अथवा कोई नकारात्मक बातें करते हुए कभी भी नहीं देखा है । वे सदैव सकारात्मक होती हैं तथा वे कभी भी व्यावहारिक बातों में अपना समय व्यर्थ नहीं गंवातीं ।

९ आ. चूक का स्वीकार कर उसे सुधारने के लिए प्रयास करना

पू. उमाक्का को उनकी भाषांतर की किसी चूक का भान करा देनेपर वे उस चूक का तुरंत स्वीकार करती हैं तथा आगे जाकर वह चूक पुनः न हो; उसके लिए प्रयास करती हैं ।

९ इ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति शरणागत भाव

पू. उमाक्का परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में संपूर्णरूप से शरणागत हैं । साधकों के मार्गदर्शन के समय अन्य साधकों का भाव जागृत हो; इसलिए वे परात्पर गुुरु डॉक्टरजी का स्मरणपूर्वक उल्लेख करती हैं । उनके जीवन में होनेवाली प्रत्येक घटना, चाहे वह सुखद हो अथवा दुखद; वे उसका परात्पर गुुरु डॉक्टरजी के प्रसाद के रूप में स्वीकार करती हैं ।

९ ई. अनुभव किए हुए परिवर्तन

उनकी आध्यात्मिक उन्नति होने के साथ ही भाषांतर की सेवा में उनसे होनेवाली चूकें भी अब घट गई हैं । अब वे परिपूर्णता की ओर जा रही हैं, ऐसा मुझे लगता है ।

 

१०. श्री. एस्. प्रेमनाथ

१० अ. दृढसंकल्प तथा एकाग्रता के बलपर संतपद को प्राप्त करनेवाली पू. उमाक्का !

पू. (श्रीमती) उमा रविचंद्रन को बनाने के लिए प.पू. गुरुदेवजी के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञता ! दृढसंकल्प तथा एकाग्रता के बलपर साधना के मार्ग में उत्पन्न बाधाआेंपर विजय प्राप्त करने से पू. उमाक्का को अब उसके मीठे फल चखने मिले हैं । केवल चेन्नई के ही नहीं, अपितु विश्‍वभर के साधकों के लिए यह एक सीख है । चेन्नई के ऐसे पहले संतजी को मेरा विनम्र अभिवादन !

१० आ. सर्वगुणसंपन्नता

पू. उमाक्का ने गायन, नृत्य, वीणावादन तथा चित्रकला में कुशलता प्राप्त की है । संघनेतृत्व, ध्येय सुनिश्‍चित करनेवाली, प्रवचन देनेवाली, शिक्षिका, हितचिंतक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक, परिवार संभालनेवाली, माता, पत्नी तथा अब संत, ये उनकी अन्य विशेषताएं हैं । पू. उमाक्का के मार्गदर्शन में मुझे धर्माभिमानियों को फेसबुक समाचारपत्रिका भेजना (मेल करना) जैसी संगणकीय सेवाआें का अवसर मिला । उस समय उनमें स्थित संयम तथा साधकों के प्रति प्रेमभाव इसके अतिरिक्त उनमें व्याप्त सकारात्मकता, सेवा के प्रति उनकी निष्ठा, बिना किसी प्रतिक्रिया के स्थिति को संभालने की पद्धति, श्रीकृष्णजी तथा परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति शरणागत भाव, इन सबका अनुभव हुआ । मुझे हमारी लाडली पू. उमाक्का के विषय में लिखकर देने का अवसर देने के लिए मैं प.पू. गुरुदेवजी के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं ।

इस अंक में प्रकाशित अनुभूति जहां भाव वहां ईश्‍वर, इस वचन के अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वे कुल मिलाकर सभी को ही मिलेगी, ऐसा नहीं है ! – संपादक

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