मनुष्य के विविध कुकर्म और तदनुसार उसे होनेवाली नरकयातना (श्रीमद्भागवत्)

मनुष्य के त्रिगुणों के कारण होनेवाले कृत्यों का फल
शुकदेव गोस्वामी महाराज परिक्षित से कहते हैं, यह जग ३ प्रकार के कृत्यों से भरा है । सत्त्वगुण (भलाई के उद्देश्य से किए जानेवाले कृत्य), रजोगुण (वासना के अधीन होकर होनेवाले कृत्य) और तमोगुण (अज्ञान के कारण होनेवाले कृत्य) । इसलिए उन्हें ३ विविध प्रकार के परिणाम भोगने पडते हैं ।

प्रारब्ध 

‘अध्यात्म विषयक बोधप्रद ज्ञानामृत’ लेखमाला से भक्त, संत तथा ईश्‍वर, अध्यात्म एवं अध्यात्मशास्त्र तथा चार पुरुषार्थ ऐसे विविध विषयों पर प्रश्‍नोत्तर के माध्यम से पू. अनंत आठवलेजी ने सरल भाषा में उजागर किया हुआ ज्ञान यहां दे रहे हैं । इस से पाठकों को अध्यात्म के तात्त्विक विषयों का ज्ञान होकर उनकी शंकाओं का निर्मूलन होगा तथा वे साधना करने के लिए प्रवृत्त होंगे ।

कर्मस्थान – मनुष्यजन्म को सार्थक बनानेवाला कुंडली में निहित अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान !

मनुष्य का जीवन कर्ममय है । कर्मफल अटल होते हैं । अच्छे कर्माें के फलस्वरूप पुण्य तथा बुरे कर्माें के फलस्वरूप पाप लगता है । परमेश्वर प्रत्येक जीव के साथ उसके कर्माें के अनुसार न्याय करते हैं । इसलिए मनुष्य द्वारा होनेवाले प्रत्येक अपराध का उसे दंड मिलता है और इस दंड को उसे भोगकर ही समाप्त करना पडता है ।

पाप एवं समष्टि पाप

उचित कर्म कर प्रारब्ध पर मात करने की एवं अपने साथ ही संपूर्ण सृष्टि को सुखी करने की क्षमता ईश्‍वर ने केवल मनुष्य को दी है । ऐसा होते हुए भी इस क्षमता का उपयोग अपना स्वार्थ साधने, निष्पाप जीवों पर अन्याय करने, अन्यों पर अधिकार जमाने इत्यादि अधर्माचरण करने से समाज का प्रारब्ध दूषित होता है ।

कुछ अटल चूकें और उनके लिए विविध प्रायश्‍चित

अधिकांशत: सदैव होनेवाली भूल के लिए प्रायश्‍चित कर्म है नित्यनैमित्तिक कर्म अर्थात दैनिक पूजा-अर्चना, स्नान-संध्या, व्रत इत्यादि । (इन कर्मों के सन्दर्भ में विस्तृत विवरण सनातन के ग्रंथ कर्म का महत्त्व, विशेषताएं व प्रकार में दिया है ।

पाप-पुण्य लगने के नियम

कौनसा कर्म पाप अथवा पुण्य निर्माण करता है, यह बताने का अधिकार मात्र धर्मशास्त्र का है; क्योंकि कौनसा कर्म अच्छा है अथवा बुरा, यह निर्धारित करने के लिए अपनी बुद्धि अल्प सिद्ध होती है ।

साधना कर पुण्य बढाने का महत्त्व

व्यक्तिने अपने पूर्वजन्मों में जो कुछ अच्छे कर्म, परोपकार एवं दानधर्म किए होंगे, उसका फल पुण्य के रूप में एकत्र होता है और वह आपको अगले जन्म में सुख के रूप में मिलता है ।

कर्मयोग के संदर्भ में शंकानिरसन

चाकरी में (नौकरी में) घूस लेना पडता है । न लेने पर ऊपर के एवं नीचे के लोग (वरिष्ठ एवं कनिष्ठ श्रेणी के लोग) बहुत कष्ट देते हैं । ऐसे में मन को बहुत कष्ट होता है । इसके लिए क्या करें ?