आठवां संस्कार : चौलकर्म ( चूडाकर्म, चोटी रखना )

व्याख्या

चूडा अर्थात पुरुष की शिखा (चोटी) । यह शिखा सिर पर सहस्रारचक्र के स्थान पर रखी जाती है । इस स्थान पर स्थित केश छोडकर शेष केश कटवाने की क्रिया को चौलकर्म अथवा चूडाकर्म कहते हैं । उपनयन तथा प्रत्येक धार्मिक विधि में शिखा का महत्त्व है ।

– परात्पर गुरु परशराम पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

 

उद्देश्य

१. आयु, बल एवं तेज की वृद्धि हेतु यह चौलकर्म (चोटी रखना) संस्कार किया जाता है । चोटी के कारण विश्‍व की सत्त्व लहरियों को ब्रह्मरंध्र द्वारा भीतर प्रवेश करने में सहायता मिलती है । दूरदर्शन का ऐंटेना जिस प्रकार कार्य करता है, उसी प्रकार चोटी कार्य करती है ।

२. मेधा शक्ति जागृत होने पर वह शिखा के स्थान पर स्थिर रहे (हमारा विवेक नित्य जागृत रहे), यह चौलकर्म करने का उद्देश्य है । इसी से गांठ बांधना एवं शिखा को गांठ मारना कहा जाता है । – परात्पर गुरु पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

 

मुहूर्त

यह संस्कार तीसरे, चौथे अथवा पांचवेें वर्ष में (पाठभेद – पहले, दूसरे, तीसरे अथवा पांचवेें वर्ष में) शुभघटिका (शुभघडी) देखकर करने की प्रथा है । आजकल बहुधा जनेऊ के समय यह विधि करते हैं ।

 

संकल्प

बीज और गर्भ द्वारा उत्पन्न इस बालक के पातकों का नाश होकर बल, आयु तथा ओज की वृद्धि हो, एतदर्थ श्री परमेश्‍वर की प्रीति हेतु चौल नामक (चोटी रखने का) संस्कार करता हूं । इसके पूर्व उसके अंगभूत श्री गणपतिपूजन, पुण्याहवाचन, मातृकापूजन और नांदीश्राद्ध करता हूं ।

 

चूडाकर्म से संबंधित एक कृत्य – झंडूला (प्रथम मुंडन प्रथम केशखंडन)

शास्त्रानुसार लडके का मुंडन जन्म से ६, ८, १० इत्यादि सम मास में, तो लडकी का मुंडन १, ३, ५ इत्यादि विषम मास में करना चाहिए । रूढि अनुसार बालक के एक वर्ष के हो जाने पर प्रथमकेश का मुंडन करते हैं । इस समय सिर के आगे के भाग के कुछ केश शेष रहने देते हैं । कुछ केश रखने का महत्त्व सूत्र उद्देश्य से स्पष्ट होगा । एक वर्ष के भीतर सिर के जन्मजात लोम मुंडवाने चाहिए, अन्यथा आगे तीन वर्ष तक नहीं कटवा सकते, ऐसी अनेक लोगों की मान्यता है; परंतु यह बात शास्त्राधारित नहीं है । तीन वर्ष तक कभी भी सममास में उचित दिन देखकर सिर के जन्मजात लोम मुंडवाएं । लोम मुंडवाना चौलकर्म नहीं है । (लोम मुंडवाते समय शिखा नहीं रखते ।)

वेद में अनेक स्थानों पर शिखा रखने का विधान मिलता है, देखिए –

१. शिखिभ्यः स्वाहा (अथर्ववेद १९-२२-१५)

अर्थ : चोटी धारण करनेवालों का कल्याण हो ।

२. यशसेश्रियै शिखा । (यजुर्वेद १९-९२)

अर्थ : यश और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सिर पर शिखा धारण करें ।

३. याज्ञिकैंगौर्दांणि मार्जनि गोक्षुर्वच्च शिखा। (यजुर्वेदीय कठशाखा)

अर्थात , सिर पर यज्ञाधिकार प्राप्त को गौ के खुर के बराबर (गाय के जन्मे बछडे के खुर के बराबर) स्थान में चोटी रखनी चाहिए ।

४. केशानां शेष करणं शिखास्थापनं । केश शेष करणम् इति मंगल हेतोः ॥ (पारस्कर गृह्यसूत्र)

अर्थ : मुण्डन संस्कार के उपरांत जब भी सिर के केश कटवाएं, तो चोटी (शिखा)के केश छोडकर शेष केश कटवाएं यह मंगलकारक होता है ।

हम हिन्दुओं को शिखा रखने में लज्जा आती है; पर विदेशी मूल के विद्वानों ने शिखा रखने का जो महत्त्व बताया है, उसेे देखेंगे ।

१. अंग्रेज डॉ. विक्टर ई क्रोमर ने अपनी पुस्तक ‘विरिलकल्पक’ में लिखा है, जिसका भावार्थ है :- ध्यान करते समय ओज शक्ति प्रकट होती है । किसी वस्तु पर चिंतन शक्ति एकाग्र करने से ओज शक्ति उसकी ओर आने लगती है । यदि ईश्‍वर पर ध्यान एकाग्र किया जाए, तो मस्तिष्क के ऊपर शिखा के मार्ग से शक्ति प्रवेश करती है । परमात्मा की शक्ति इसी मार्ग से मनुष्य के भीतर आती है । सूक्ष्म दृष्टि सम्पन्न योगी इन दोनों शक्तियों के असाधारण सुंदर रंग भी देख लेते हैं ।

२. डॉ. क्लार्क ने लिखा है :- मुझे विश्‍वास हो गया है कि सनातन धर्म का हर एक नियम विज्ञान से भरा हुआ है । चोटी रखना हिन्दुओं का धार्मिक चिन्ह ही नहीं बल्कि सुषुम्ना की रक्षा के लिए ऋषियों की खोज का एक विलक्षण चमत्कार है । शिखा गुच्छेदार रखने एवं उसमें गांठ बांधने के कारण प्राचीन सनातनियों में तेज, बुद्धि, दीर्घायु तथा बल की विलक्षणता मिलती थी । जब से अंग्रेजी कुशिक्षा के प्रभाव में भारतवासियों ने शिखा एवं सूत्र का त्याग किया है, उनमें निरंतर इन शीर्षस्थ गुणों का ह्रास होता जा रहा है । पागलपन, अंधापन तथा मस्तिष्क के रोग शिखाधारियों को नहीं होते थे, वे शिखाहीनों में बहुत देखे जा सकते हैं ।

३. डॉ. हाय्वमन कहते है – ‘मैंने अनेक वर्ष भारत में रहकर भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया है, यहां के निवासी प्राचीन काल से चोटी रखते हैं, जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता है । दक्षिण में तो आधे सिर पर ‘गोखुर’ के समान चोटी रखते हैं । उनकी विलक्षण बुद्धि देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हूं । निश्‍चय ही सिर पर चोटी रखना बहुत लाभदायक है । मेरा तो हिन्दू धर्म में अगाध विश्‍वास है और मैं चोटी रखने का समर्थक हो गया हूं ।’

शरीर के मर्म स्थान के रक्षण में चोटी रखने का महत्त्व

वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया है, कि वह बडे से बडे आघात को भी सहन करके रह जाता है परंतु मानव शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं, जिन पर आघात होने से तत्काल मृत्यु हो सकती है । इन्हें मर्म-स्थान कहा जाता है । शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता है, जिसके लिए सुश्रुताचार्य ने लिखा है –

मस्तकाभ्यन्तरो परिष्टात् शिरा सन्धि सन्निपातों ।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सधो मरण्म् ।

भावार्थ : मस्तक के भीतर ऊपर जहां केश का आवर्त (भंवर) होता हैं, वहां संपूर्ण नाडियों एवं संधियों का मेल है, उसे ‘अधिपतिमर्म’ कहा जाता है । यहां चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है । (सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : 6.28)

इस कारण चोटी रखने से इस मर्मस्थान का रक्षण होता है ।

ऐसे कहा जाता है, कि प्राचीन काल में शिखा काटना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था; क्या यह सत्य है ?

‘हरिवंशपुराण’ में एक कथा आती है । हैहय एवं तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहु का राज्य छीन लिया । राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चले गए । वहां राजा की मृत्यु हो गई । महर्षियों नेे उनकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आए । वहां उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । राजा सगर ने महर्षि से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं । समय पाकर राजा सगर ने हैहयों को मार डाला तथा शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्‍चय किया । ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गए । महर्षि वसिष्ठ ने कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारें । राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं तोड सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे । अत: उन्होंने शिखा सहित उन राजाओं के सिर मुंडवाकर उनको छोड दिया ।

प्राचीन काल में किसी की शिखा काटना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था । बडे दुख की बात है कि आज हिन्दू अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे हैं । यह गुलामी की पहचान है, शिखा हिन्दुत्व की पहचान है । यह आपके धर्म और संस्कृति का रक्षक है । शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिए पर शिखा नहीं कटवाई ।

स्त्रियों को चोटी रखने के संदर्भ में शास्त्रों में क्या कहा गया है ?

स्त्रियों के सिर पर लंबे केश होना उनके शरीर की बनावट तथा उनके शरीरगत विद्युत के अनुकूल रहने से उनको अलग से चोटी नहीं रखनी चाहिए । साथ ही स्त्रियों को केश नहीं कटवाने चाहिए ।

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ सोलह संस्कार

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