वसंत ऋतु के आरोग्यसूत्र

सृष्टिरचना के समय साक्षात ईश्वर ने ही आयुर्वेद का निर्माण किया; इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांत विश्व के आरंभ से आजतक अबाधित हैं । युगों-युगों से प्रतिवर्ष वही ऋतु आते हैं और आयुर्वेद द्वारा बताई गई ऋतुचर्या भी वही है ।

शीतकालीन ऋतुचर्या

शीतकाल ऋतु में जठराग्नि अच्छा होने से किसी भी प्रकार के अन्न का सरलता से पाचन होता है । उसके कारण इस ऋतु में खाने-पीने में बहुत बडा बंधन नहीं होता ।

बक्सों से प्रत्यक्ष उपचार करने की विविध पद्धतियां

बक्सों से उपचार करते समय आगे दी जिन उपचार-पद्धतियों से शरीर के कुंडलिनीचक्र, विकारग्रस्त अवयव अथवा नवद्वारों पर उपचार करने के लिए बताया हो, वहां इन तीन स्थानों में से प्रधानता से कुंडलिनीचक्रों पर बक्सों से उपचार करें ।

बक्सों से प्रत्यक्ष सोते समय उपचार करने की विविध पद्धतियां

रात में अनिष्ट शक्तियां अधिक कष्ट देती हैं । इसलिए विकारग्रस्त व्यक्ति के लिए दिन के साथ-साथ रात में सोते समय भी बक्सों से उपचार करना आवश्यक होता है । विकाररहित व्यक्ति भी रात में सोते समय अपने लिए सुरक्षा-कवच बनाने हेतु बक्सों का उपयोग करेंगे, तो अच्छा रहेगा ।

‘घरेलु औषधि’ सेवन की पद्धतियां !

विशेषज्ञ वैद्य ही ऐसी चिकित्सा कर सकते हैं । विशेषज्ञ वैद्य के अभाव में न्यूनतम रोगी को आराम मिले, इसके लिए परंपरागत घरैलु औषधियों की बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध की गई है ।

शारदीय ऋतुचर्या : शरद ऋतु में स्वस्थ्य रहने हेतु आयुर्वेदीय चिकित्सा !

वर्षाऋतु समाप्त होते-होते सूर्य की प्रखर किरणें धरती पर पडने लगती हैं । तब शरद ऋतु का आरंभ होता है ।

बक्सों से उपचारों के संदर्भ में संयुक्त सूचना

विकार-निर्मूलन हेतु बक्सों से उपचार सामान्यत प्रतिदिन १ से २ घंटे करें । कुछ दिन प्रतिदिन १ से २ घंटे बक्सों से उपचार करने पर भी विकार घट न रहे हों अथवा नियंत्रित न हो रहे हों, तो उपचारों में वृद्धि करें ।

बक्से के उपचार करने हेतु शरीर के स्थान

ब्रह्मांड में विद्यमान प्राणशक्ति (चेतना) कुंडलिनीचक्रों द्वारा मनुष्य के शरीर में ग्रहण की जाती है आैर उस चक्रविशेष द्वारा वह शरीर की संबंधित इंद्रिय तक पहुंचाई जाती है । इंद्रिय में प्राणशक्ति के (चेतना के) प्रवाह में बाधा आने पर विकार उत्पन्न होते हैं ।