धूमपान : श्‍वसनतंत्र के विकारों पर प्रतिबंधजन्य आयुर्वेदीय चिकित्सा !

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धूम का अर्थ धुआं और पान का अर्थ पीना ! औषधीय धुआं नाक-मुंह से अंदर लेकर उसे बाहर छोडने को धूमपान कहते हैं । श्‍वसनतंत्र से संबंधित वात एवं कफ के विकार, उदा. सरदी, खांसी और दमा न हो और हो जाए, तो शीघ्र स्वस्थ हों; इसके लिए धूमपान (औषधीय धुआं लेना) की चिकित्सा बताई गई है ।

 

१. धूमपान (औषधीय धुआं लेना) की पद्धति

सवेरे जागकर दांत मांजने के तुरंत पश्‍चात, साथ ही रात को सोने से पूर्व औषधीय धुआं नाक-मुंह से अंदर लें और उसे मुंह से बाहर निकाल दें । धुएं को नाक से बाहर छोडना आंखें और नाक के लिए बाधक होने से उसे नाक से बाहर न छोडकर मुंह से ही बाहर छोडें । धुआं अंदर लेकर बाहर छोडने की क्रिया एक समय केवल ३ बार ही करें । कभी-कभी श्‍वसनमार्ग में अधिक कफ जमा हो, तो यह क्रिया ५ – ६ बार की जा सकती है; परंतु एक ही समय उससे अधिक बार धुआं लेना टालें ।

 

२. धूमपान हेतु आवश्यक सतर्कता

गर्मियों में, साथ ही शरद ऋतु में (अक्टूबर मास में) दोपहर के समय धूमपान न करें ।

 

३. धूमपान के प्रकार, उसके लिए उपयोग की जानेवाली औषधियां तथा उसकी पद्धति

३ अ. स्निग्ध (सौम्य) धूमपान

इसमें घी और सौम्य औषधियों के धुएं का उपयोग किया जाता है । प्रतिबंधजन्य उपाय के रूप में इस पद्धति का नित्य उपयोग किया जा सकता है । इसके लिए निम्नांकित पद्धतियों में से कोई भी एक पद्धति अपनाएं –

१. गैस पर गहरे चम्मच को थोडा सा गरम करें और उसके गरम होने पर उसमें कपूर के टुकडे डालकर उससे निकलनेवाली भांप को सूंघें । (कपूर ज्वलनशील होने से गैस चालू रखकर कपूर न डालें ।)

२. गैस पर छोटी कडाही को अच्छे से गरम कर गैस बंद करें और उसमें घी डालकर निकलनेवाला धुआं सूंघें ।

३. मुलेठी को घी लगाकर उसे जलाएं और जलने पर बुझाएं । ऐसा करने पर जो धुआं निकलता है, उसे सूंघें ।

३ आ. तीक्ष्ण (तीव्र) धूमपान

श्‍वसनमार्ग में अधिक कफ जम गया हो, तो उसे बाहर निकालने के लिए इसका उपयोग होता है । इसके लिए निम्नांकित पद्धतियों में से कोई भी एक पद्धति अपनाएं –

१. हलदी की गांठ में घी लगाएं और उसे जलाकर उसका धुआं लें अथवा कडाही में घी गरम कर उसमें हलदी की गांठ डालकर उसका धुआं लें ।

२. स्वच्छ श्‍वेत कागज के लपेटे में अजवाइन का चूर्ण भरकर उसकी बीडी बनाएं और उसे जलाकर उसका धुआं लें ।

३. मान्स प्रॉडक्ट्स प्रतिष्ठान द्वारा उत्पादित निर्दोष धूमपान नामक आयुर्वेदीय सिगरेट मिलती है । यह सिगरेट आयुर्वेदीय औषधियों की दुकानों में, साथ ही अधिकांश औषधालयों में (मेडिकल स्टोर्स में) मिलती है । इस तंबाकू विरहित सिगरेट में तुलसी, मुलेठी, हलदी जैसे औषधीय घटक होते हैं । हम उसका भी उपयोग कर सकते हैं ।

 

विषाणुओं के कारण सरदी, खांसी जैसी बीमारी की संभावना हो, तो प्रतिदिन धूमपान
करने के साथ ही घर के वातावरण की शुद्धि के लिए धूप के धुएं से भी वातावरण की शुद्धि करें !

धूनीपात्र विषाणुओं के कारण सरदी, खांसी जैसी बीमारी की संभावना हो, तो प्रतिबंधजन्य उपाय के रूप में, साथ ही ऐसी बीमारी हुई, तो वह शीघ्र ठीक हो; इसके लिए इस लेख में दिए अनुसार प्रतिदिन धूमपान करें । प्रतिबंधजन्य उपाय के रूप में स्निग्ध (सौम्य) धूमपान, तथा सरदी अथवा खांसी हो, तो तीक्ष्ण (तीव्र) धूमपान करें । इसके साथ ही घर के वातावरण की शुद्धि के लिए सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय में धूपपात्र में (अर्थात धूप करने हेतु चिनगारियां रखते हैं, उस पात्र में, जो मिट्टी अथवा धातु का बना होता है ।) उपले जलाकर उस पर धूप, नीम के पत्ते, प्याज के छिलके, अजवाइन, दालचीनी, तुलसी के पत्ते, पुदीना में से कोई भी पदार्थ डालकर धुआं बनाएं और उसे संपूर्ण घर में घुमाएं । देसी गाय के गोबर के उपले जलाकर उसमें धूप डालने से भी वातावरण की शुद्धि होती है । धुएं से वातावरण की शुद्धि करने की क्रिया को आयुर्वेद में धूपन कहा गया है ।

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१५.५.२०२०)

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