सर्दी-खांसीपर उपयुक्त होमियोपैथी और बाराक्षार औषधियां

सर्दियों में सामान्यरूप से अधिकांश लोगों को सरदी-खांसी होती है । उसके लिए यहां लक्षणों के आधारपर उपयुक्त होमियोपैथी और बाराक्षार औषधियों की सूची दे रहे हैं –

 

१. सर्दी (Allergic Rhinitis) के लिए उपयुक्त होमियोपैथी औषधियां

१ अ. लक्षण : सर्दी की प्राथमिक स्थिति  में

१ अ १. औषधि :  ‘एकोनाईट’ ३०

१ आ. लक्षण : नाक से बडी मात्रा में जलनसहित स्राव बहना, आंखों से ठंडा पानी आना, निरंतर छींके आना, साथ ही गर्म कक्ष में कष्ट बढना और खुली हवा में अच्छा लगना

१ आ १. औषधि : ‘एलियम सेपा’ ३० अथवा २००

१ इ. लक्षण : नाक से ठंडा स्राव बहना, आंखों से जलन के साथ पानी आना, रात में लेटे रहने पर अच्छा लगना और दिन में (खुली) खांसी आना

१ इ १. औषधि : ‘युफ्रेशिया’ ६ अथवा ३०

१ ई. लक्षण : सर्दियों में और खुली हवा में कष्ट होना, नाक से पानी जैसा पतला और जलन के साथ स्राव बहना और उसके साथ ही अल्प मात्रा में सिरदर्द होना और थोडे-थोडे समय में पानी पीना ।

१ ई १. औषधि : ‘अर्सेनिक आल्ब’ ३० अथवा २००

१. उ. लक्षण : ठंडी और नम हवा में जाने से सर्दी लगना, रात में और खुली हवा में नाक बंद हो जाना, दिन में और बंद (गरम)कक्ष में नाक बहना, बहुत ठंड लगना और जीभ स्वच्छ रहना ।

१ उ १. औषधि : ‘नक्सवोमिका’ ३० अथवा २००

१ ऊ. लक्षण : ठंडी हवा में जाने से सर्दी लगना, बुखार आना; परंतु प्यास न लगना; अत्यंत थकान, लेटे रहने का मन होना; नाक से जलनयुक्त स्राव बहना, सिर भारी होना, जीभ पर पीला स्तर (कोटिंग) आना और रात में कष्ट बढना

१ ऊ १. औषधि : ‘जल्सेमियम’ ३० अथवा २००

१ ए. लक्षण : नाक से गाढा पीला स्राव आना, गंध और स्वाद न होना, प्यास न लगना, भूख अल्प होना और जीभपर मोटी श्‍वेत स्तर (कोटिंग) आना

१ ए १. औषधि : ‘पल्सेटिला’ ३०

१ ऐ. लक्षण : ठंड सहन न होना, दरवाजे-खिडकियां बंद कर आग के पास बैठना और ठंड में इन लक्षणों का बढना

१ ऐ १. औषधि : ‘हेपार सल्फ’ ३० अथवा २००

१ ओ. लक्षण : वर्षा में भीगने से सर्दी लगना

१ ओ १. औषधि : ‘रसटॉक्स’ २००

 

२. बाराक्षार औषधियां

यह भी एक होमियोपैथी की भांति एक चिकित्सा पद्धति है । होमियोपैथी में ४ सहस्र औषधियां हैं; परंतु बाराक्षार में केवल १२ औषधियां हैं ।

२ अ. लक्षण : प्राथमिक अवस्था – सूखी सर्दी, नाक बंद होना, बदनदर्द, थोडा बुखार होना और सर्दी सहित खांसी होना

२ अ १. औषधि : ‘फेरम फॉस’

२ आ. लक्षण : फोरमफॉस के पश्‍चात ‘काली मूर’ उपयुक्त औषधि है । पकी हुई सरदी, स्राव श्‍वेत, चिकना और नाक भरा होना, स्राव चुभनवाला व पीपमिश्रित, गाढा और चिकना होना, जीभ श्‍वेत अथवा राख के रंग की होना और भूख न लगना

२ आ १. औषधि : ‘काली मूर’

२ इ. लक्षण : सुबह की ठंडी हवा में छींके आना, खुली हवा में सर्दी और छींकों में वृद्धि होना, नाक का अग्र और हथेली ठंडी होना, स्राव को दुर्गंध आना और नाक में पीडा होना

२ इ १. औषधि : ‘कल्केरिया फॉस’

२ ई. लक्षण : नाक की हड्डी के बढने से लगनेवाली सर्दी, नाक बंद अथवा सूखी सर्दी होना, स्राव हरा-सा और गाढा, ‘अब छींके आएंगी’, ऐसा लगना; परंतु वास्तव में एक भी छींक न आना और ठंडी हवा में कष्ट बढना

२ ई. १. औषधि : ‘कल्केरिया फ्लोर’

२ उ. लक्षण : नाक से गाढा पीला स्राव बहना, स्राव जलनवाला, पीपमिश्रित और गाढा होना, बहुत छींके आना, स्रा को गंध न होना (सिलिशिया – स्राव को गंध होती है ।) और खुली हवा में सर्दी  का खुल जाना

२ उ १. औषधि : ‘कल्केरिया सल्फ’

२ ऊ. लक्षण : नाक से गाढा पीला अथवा हरा-सा स्राव बहना, स्राव और सांस को दुर्गंध आती है, मध्यरात्रि में बहुत जोर से छींके आती हैं और रात में नाक बंद हो जाती है ।

२ ऊ १. औषधि : ‘काली फॉस’

२ ए. लक्षण : नाक में पतला स्राव, पीला, चुभनेवाला और दुर्गंधयुक्त होना, गर्म स्थान, बंद कक्ष और सायंकाल में नाक बंद हो जाना; खुली हवा में जाने से स्राव खुल जाना और बाईं ओर के नथुने में सरदी लगना

२ ए १. औषधि : ‘काली सल्फ’ ६ X पोटन्सी (पॉवर वाली) प्रति ३ घंटे पश्‍चात लेना

(६X का अर्थ अर्थात l क्षमतावाली । यह शक्ति g h &.इस क्रम में गिनी जाती है । – डॉ. मेहता)

२ ऐ. लक्षण : स्राव पानी जैसा पतला, पारदर्शी और नमकीन होना, नाक और आंखों से निरंतर पानी रिसना, स्राव बहुत चुभनेवाला और सुबह छींके आना, बाहर से घर आनेपर छींके आना, सर्दी के कारण गंध न आना और जीभ को स्वाद न होना

२ ऐ १. : औषधि : ‘नाईट्रम मूर’

२ ओ. लक्षण : यह वर्षाऋतु में अथवा दलदली क्षेत्र में होनेवाली सरदी का कष्ट है । नाक से आनेवाला स्राव हरासा अथवा हरा-पीलासा होता है ।

२ ओ १. औषधि : ‘नाईट्रम सल्फ’

२ औ. लक्षण : नाकापुटियां कभी गीली सी, तो कभी सूखी होना और गंध न आना

२ औ १. औषधि : ‘मैग फॉस’

२ अं लक्षण : पुरानी सर्दी, श्‍वांस में दुर्गंध, स्राव भारी और पीला होना, बहुत छींके आना, नाक सूख जाना, सुबह नाक का बंद होना और दिन में बहना, नाक में पीडा होना, गंध न आना और सिर में पसीना आना

२ अं १. औषधि : ‘सिलिशिया’

 

३. होमियोपैथी और बाराक्षार इन दोनों औषधियों के लिए पथ्य

कर्पूर और इत्र से इन औषधियों को दूर रखना और प्याज, लहसून और कॉफी को वर्जित करना ।

(संदर्भ : सनातन का आगामी ग्रंथ ‘होमियोपैथी चिकित्सा’)
संकलक : आधुनिक वैद्य प्रवीण मेहता, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (१५.११.२०१९)

 

होमियोपैथी औषधियों की ‘पोटन्सी’के संदर्भ में जानकारी

१. ‘पोटन्सी’ शब्द का अर्थ

‘पोटन्सी’ शब्द का अर्थ ‘शक्ति’ है । घनावस्था की औषधि को दूध की चीनी (टिप्पणी) से मिलाने से, साथ ही प्रवाही तरल औषधि को अल्कोहोल के साथ बोतल में जोर से हिलाने से उस औषधि की शक्ति बढती है, जिसे ‘पोटन्सी’ कहते हैं ।

टिप्पणी : दूध की चीनी (शुगर ऑफ मिल्क) : दूध से विशिष्ट पद्धति से बनाई जानेवाली चीनी । इसका उपयोग घन औषधों की शक्ति बढाने हेतु किया जाता है ।

२. पोटन्सी के प्रकार

प्रवाही औषधियों की जो पोटन्सी प्रमाणित होती हैं, उन्हें ‘डाईल्यूशन्स’ कहते हैं । घनावस्था की औषधियों की जो पोटन्सी प्रमाणित होती हैं, उन्हें ‘ट्राईच्युरेशन्स’ अथवा ‘अटेन्युएशन्स’ कहते हैं । डाईल्यूशन्स अल्कोहोल के साथ की जाती है, तो ट्राईच्युरेशन्स को दूध की चीनी के साथ बनाया जाता है ।

२ अ. सेंटीसिमल पोटन्सी

मूल औषधि का एक भाग और अल्कोहोल अथवा दूध की चीनी के ९९ भाग की मात्रा में प्रमाणित की जानेवाली पोटन्सीज को सेंटीसिमल पोटन्सी कहा जाता है ।

होमियोपैथी के प्रवर्तक डॉ. हानेमान यह मात्रा लेकर औषधियां प्रमाणित करते थे । औषधियों के नाम के सामने यदि सी (C) अक्षर लिखा हो अथवा कोई अक्षर लिखा भी नहीं हो, तो वह औषधि सेंटीसिमल पोटन्सी का है, ऐसा समझना चाहिए । उदा. बेलाडोना ३० C ‘सेंटीसिमल पोटन्सी’के लिए ‘ सी’(C) अक्षर लिखा भी नहीं गया, तो भी चलता है; परंतु ‘डेसिमल पोटन्सी’ के लिए X’ अथवा ‘D’ इनमें से एक अक्षर लिखना ही पडता है । ‘एक ही प्रकार की पोटन्सी को २ अलग-अलग प्रकार से लिखा जाना, होमियोपैथिक के वैश्‍विक नियमों के अनुसार है ।

२ आ. डेसिमल पोटन्सी

मूल औषधि का एक भाग और अल्कोहोल अथवा दूध की चीनी के ९ भाग की मात्रा रखकर प्रमाणित किए जानेवाले पोटन्सियों को डेसिमल पोटन्सी कहा जाता है । डॉ. हेरिंग ने यह पद्धति आरंभ की । औषधि के नाम के सामने ‘डी’ (D) अक्षर लिखा हो अथवा वहां ‘X’ का चिन्ह हो, तो वह औषधि डेसिमल पोटन्सी की है, यह समझना चाहिए, उदा. बेलाडोना ३० X अथवा बेलाडोना ३० D

२ इ. प्रवाहित पोटन्सी

१. औषधि के मूल अर्क का १ भाग लेकर उसमें ९ भाग अल्कोहोल मिलाकर उस मिश्रण को बोतल में १० बार विशिष्ट पद्धति से हिलानेपर उस मूल औषधि में जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे १ (पहली) पोटन्सी कहते हैं ।

२. इस १ (पहली) पोटन्सी का १ भाग लेकर उसमें ९ भाग अल्कोहोल मिलाकर उस मिश्रण को एक बोतल में १० बार विशिष्ट पद्धति से धक्के (Succession) देनेपर उस औषधि की बढी हुई शक्ति को ‘२ (दूसरी)’ पोटन्सी कहते हैं । इसी प्रकार से बार-बार कर अगली-अगली पोटन्सी बनाई जाती है । इसी पद्धति से ३०, २००, १ M (१ सहस्र), १० M (१० सहस्र),  CM (१ लाख) ये पोटन्सियां बनाई जाती हैं ।

३. प्रवाहित पोटन्सी बनाते समय बोतल में मूल अर्क और अल्कोहोल डालने पर बोतल की ३/४ स्थान को खाली रखना पडता है । उसके पश्‍चात बाटली को ढक्कन लगाकर उसे अंगूठे से दबाकर रखकर बोतल को विशिष्ट पद्धति से झटककर, बोतल को धक्के दिए जाते हैं ।

२ ई. घन पोटन्सी

१. घन अवस्था की औषधि के मूल चूर्ण का १ भाग और ९ भाग दूध की चीनी लेकर उसे १ घंटेतक विशिष्ट पद्धति से एक जैसा खलनेपर ‘१ X (पहली) पोटन्सी बनती है । ‘खलना’ का अर्थ औषधि और दूध की चीनी को मिट्टी के खल में डालकर उसे बत्ते से कूटना ।

२. इस पहली पोटन्सी की औषधि का १ भाग लेकर उसमें ९ भाग दूध की चीनी मिलाकर १ घंटेतक विशिष्ट पद्धति से एक जैसा कूटनेपर ‘२X (दूसरी) पोटन्सी बनती है । इसी प्रकार से ३ X, ६ X, १२ X जैसी पोटन्सियां बनती हैं ।

३. कूटते समय उसमें सभी चीनी एक ही समयपर न डालकर उस चीनी के ४ भाग करें । उनमें से १ भाग कूट में डालकर पहले १५ मिनट कूटें । उसके पश्‍चात दूसरा भाग डालकर पुनः १५ मिनटतक कूटें । उसके पश्‍चात शेष २ भाग डालकर आधा घंटा कूटें । कूटने की क्रिया एक जैसा (समान) बल देकर और धीरे-धीरे करें ।

(संदर्भ : सनातन का आगामी ग्रंथ ‘होमियोपैथी चिकित्सा’)
संकलक : आधुनिक वैद्य डॉ. प्रवीण मेहता, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल

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