सर्दी, खांसी एवं होमियोपैथी औषधि

सर्दी, यह नाक एवं गले का सर्वसामान्य रोग है । सर्दी में नाक बहना, छींकें आना, नाक बंद होना, आंखों से पानी बहना, गले में खिचखिच और कभी-कभार बुखार आना, ये लक्षण सामान्यतः पाए जाते हैं । इन लक्षणों के अतिरिक्त अन्य कोई विशेष लक्षण हों, तो औषधि लें, इन औषधियों के नाम आगे दिए हैं ।

आंखों के रोग और उन पर होमियोपैथी की और बाराक्षार औषधि

  अनुक्रमणिका१. आंखों की देखभाल कैसे करें ?२. आंखों के लिए किए जानेवाले विशिष्ट व्यायाम बिस्तर पर लेटे-लेटे अथवा बैठकर या खडे होकर ये व्यायाम कर सकते हैं ।३. आंखों की बीमारी और उस पर होमियोपैथी की औषधियां३ अ. रूटा ३० अथवा २००३ आ. ॲकोनाइट ३०३ इ. अर्निका ३०३ ई. बेलाडोना ३०३ उ. आर्सेनिक आल्ब … Read more

ज्वर (बुखार) में उपयुक्त आयुर्वेद की कुछ औषधियां

ज्वर आने की संभावना होने पर अथवा जब ज्वर हो, तब २ – ३ दिन एक-एक गोली का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ दिन में २ – ३ बार लें । ३ वर्ष की कम आयु के बच्चों को एक चौथाई और ३ से १२ वर्ष की आयुवाले बच्चों को आधी, इस मात्रा में औषधि लें ।

आयुर्वेद की कुछ सुवर्णयुक्त औषधियां

आयुर्वेद की औषधियों में ‘सुवर्णयुक्त औषधियों (सुवर्णकल्प) की  उत्तम ‘रसायन’ में गणना होती है । ‘सुवर्ण’ अर्थात ‘सोने’ । सुवर्णयुक्त आयुर्वेद की औषधियों में साेने की भस्म होती है । इसलिए इस औषधि का मूल्य अधिक होता है ।

श्वसनसंस्था के विकारों में उपयुक्त आयुर्वेद की कुछ औषधियां

आयुर्वेद में राजयक्ष्मा (तपेदिक अर्थात टीबी) जैसी गंभीर बीमारियों में श्वसनसंस्था का दूषित कफ बाहर निकालना, शरीर की अग्नि का दीपन करना (पचनशक्ति सुधारना) और समस्त शरीर को बल देने के लिए इस औषधि का उपयोग होता है ।

हृदय एवं श्वसनसंस्था को बल देनेवाली आयुर्वेद की कुछ प्रसिद्ध औषधियां

श्वसनसंस्था और हृदय को बल देने के लिए इस औषधि का अच्छा उपयोग होता है । दम घुटने समान होना, बारंबार घबराहट होना, छाती तेजी से धडकना जैसे हृदय से संबंधित विशिष्ट लक्षणों में इस औषधि का उपयोग होता है ।

अधिक वर्षावाले प्रदेशों में निरोगी रहने के लिए दिनभर में केवल २ बार आहार लें !

वर्षा ऋतु में दिन में केवल २ बार आहार लेने की आदत डालने से एक बार लिया हुआ अन्न पूर्णरूप से पचने के पश्चात ही दूसरा अन्न जठर में आता है । इससे अन्नपचन ठीक होता है । शरीर को अतिरिक्त २ बार अन्न पचाने का श्रम नहीं होते । इसलिए बची हुई शक्ति अब बदले हुए वातावरण के अनुकूल बनने के लिए उपयोग में आती है ।

आम्लपित्त (Acidity) इस बीमारी पर होमिओपैथी औषधियों की जानकारी

पेट में आम्ल की (acid की) मात्रा अधिक होने से आम्लपित्त का कष्ट होता है । मुंह में खट्टा स्वाद आना, छाती में जलन, ग्रहण किया अन्न अथवा खट्टा पानी पेट से पुन: मुंह में आना, निगलने में कष्ट होना, अपचन होना, पेट के ऊपर के भाग में वेदना इत्यादि आम्लपित्त के लक्षण हैं ।

बद्धकोष्ठता (Constipation) इस बीमारी पर होमियोपैथी औषधि

सप्ताह में ३ से कम बार शौच होना, शौच शुष्क एवं कडक होना, शौच करने में कठिनाई होना, शौच करते समय वेदना होना, इसके साथ ही शौच अपूर्ण होने का भान होना, इसे ‘बद्धकोष्ठता’ कहते हैं । अयोग्य आहार की आदत, यह बद्धकोष्ठता का प्रमुख कारण हैं ।

उलटी (Vomiting) पर होमियोपैथी औषधियों की जानकारी

पेट में अन्न अपनेआप, जोर से मुख के रास्ते बाहर गिरना, इसे ‘उलटी होना’, कहते हैं । सामान्यतः पेट की क्षमता से अधिक अन्न ग्रहण करना, दूषित अन्न ग्रहण करना इत्यादि कारणों से उलटी होती है । उलटी शरीर के पेट के कष्टदायक घटक बाहर फेंक देने की प्राकृतिक प्रक्रिया है ।