त्वचा के दाद-खाज संक्रमण पर (‘फंगल इन्फेक्शन’पर) आयुर्वेद के उपचार

जांघ, कांख, नितंब (कुल्हे) इत्यादि भागों पर जहां पसीने से त्वचा गीली रहती है, वहां कई बार खुजली होने लगती है । फिर छोटी-छोटी फुंसियां आ जाती हैं जो गोलाकार में फैलती जाती हैं और उससे चकत्ते चकंदळे निर्माण होते हैं । इन चकत्तों के किनार उभरे, लालिमा एवं फुंसियों से युक्त और केवल मध्यभाग में सफेद एवं रूसीयुक्त दिखाई देते हैं ।

आयुर्वेद के प्राथमिक उपचार

‘बद्धकोष्ठता के लिए ‘गंधर्व हरीतकी वटी’ की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें । इसके साथ ही भूख न लगना, भोजन न कर पाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण होने पर ‘लशुनादी वटी’ की १ – २ गोलियां दोनों बार के भोजन के १५ मिनट पहले चुभलाकर खाएं ।

वर्षा ऋतु में सर्दी, खांसी, ज्वर एवं कोरोना में उपयुक्त घरेलु औषधियां

औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्यों के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्यों के पास तुरंत ही जाने की स्थिति नहीं रहती । कई बार थोडी-बहुत औषधि लेने पर वैद्यों के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं पडती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में यहां कुछ आयुर्वेद की औषधियां दी हैं ।

चिकनगुनिया : लक्षण एवं उपचार !

‘चिकनगुनिया’ इस व्याधि का स्वरूप भले ही भयंकर है, तब भी यह प्राणघातक व्याधि नहीं है । वह ठीक हो जाती है और जोडों में वेदना भी ठीक हो सकती है । केवल योग्य समय पर वैद्य के पास जाना ओर उनसे पर्याप्त समय तक उपचार लेने की आवश्यकता है ।’

आम्लपित्त : आजकल की बडी समस्या एवं उस पर उपाय !

आम्लपित्त के कष्ट के पीछे के कारणों का तज्ञों की सहायता से शोध लेकर उनपर कायमस्वरूपी उपचार करना अत्यावश्यक है । इसके लिए जीवनशैली में परिवर्तन करने की तैयारी होनी चाहिए ।

शरीर का भार बढाने के आयुर्वेदिक उपचार

शरीर का भार बढाने के लिए प्रतिदिन तेल मालिश करें, व्यायाम करें और पौष्टिक आहार का सेवन करें । जिन्हें भूख नहीं लगती, वे भूख बढानेवाली औषधि लें ।

स्थूलता (मोटापा) घटाने के लिए आयुर्वेदिक उपचार

स्थूलता घटाने के लिए प्रतिदिन व्यायाम करें, औषधि से मर्दन (मालिश) करें, उचित आहार के साथ औषध का सेवन भी करें । ये सब प्रयत्न करने पर शरीर में जमा अनावश्यक मेद (चरबी) घटता है ।