देवी की आरती कैसे करें ?

देवी का पूजन होने के उपरांत अंत में आरती की जाती है । ऐसा नहीं है कि आरती गाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आरती की चाल, उस समय कौन-से वाद्य बजाने चाहिए इत्यादि की जानकारी हो ही, इसलिए ये गलतियां कैसे टाली जा सकती हैं, इस लेख द्वारा हम उसे समझने का प्रयास करेंगे ।

ईश्वर की कृपा संपादन करने का सुलभ मार्ग है ‘प्रार्थना’ !

‘भगवान अथवा गुरु की शरण जाकर याचना करके मनोवांछित फल मांगना, अर्थात प्रार्थना । मन से की गई प्रार्थना के कारण भगवान एवं गुरु का कृपाशीर्वाद निरंतर मिलता है ।

देवालय की सात्त्विकता एवं भावपूर्ण दर्शन का महत्त्व

देवता के दर्शन भावपूर्ण करने से ईश्‍वर की अनुभूति होती हैं । देवालय की सात्त्विकता दर्शन हेतु पोषक होती है ।

देवताके प्रत्यक्ष दर्शन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

देवताके दर्शन करते समय उनके चरणोंमें लीन होनेका भाव रखें । कोई भी वस्तु देवताके सामने रखी थालीमें रखें; परंतु देवताके शरीरपर न फेंकें ।

देवालयमें शिवजीके दर्शन कैसे करें ?

नंदीकी बाईं ओर साष्टांग नमस्कार करनेसे व्यक्तिमें शरणागतभाव जागृत होता है तथा देवालयमें विद्यमान चैतन्य तरंगें उसके देहमें प्रवाहित होने लगती हैं ।

देवालय के प्रांगणमें एवं सभामंडपमें कौनसे कृत्य करें ?

सभामंडपके निकट सीढियां हों, तो चढनेसे पहले दाएं हाथकी उंगलियोंसे प्रथम सीढीको स्पर्श कर नमन करें एवं उन उंगलियोंसे आज्ञा-चक्रको स्पर्श करें ।

पूजनमें तुलसी का महत्त्व

भगवान श्रीकृष्णजीको तुलसी प्रिय है । तुलसीमें ५० प्रतिशत कृष्णतत्त्व होता है । जीवको इन तरंगोंका व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरोंपर लाभ होता है ।

देवालयमें प्रवेश करनेसे पूर्व पुरुषोंद्वारा अंगरखा अर्थात शर्ट उतारकर रखनेकी पद्धति हो, तो उसक

व्यावहारिक रूपसे भलेही यह उचित न लगे; परंतु देवालयकी सात्त्विकता बनाए रखनेके लिए कुछ स्थानोंपर ऐसी पद्धति है ।

दर्शनार्थियोंको देवालयकी सात्त्विकताका लाभ क्यों नहीं होता ?

सात्त्विक तरंगोंको अवरुद्ध करनेवाली चमडेकी वस्तुएं, जैसे कमरका पट्टा अर्थात बेल्ट इत्यादि धारण कर देवालयमें प्रवेश नहीं करना चाहिए । इसलिए ऐसी वस्तुएं द्वारपर ही उतार दें ।

जन्मदिन तिथिके अनुसार ही क्‍यों मनाए?

जिस तिथिपर हमारा जन्म होता है, उस तिथिके स्पंदन हमारे स्पंदनोंसे सर्वाधिक मेल खाते हैं । इसलिए उस तिथिपर परिजनों एवं हितचिंतकोंद्वारा हमें दी गई शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद सर्वाधिक फलित होते हैं ।