दर्शनार्थियोंको देवालयकी सात्त्विकताका लाभ क्यों नहीं होता ?

सारणी

१. देवालयमें प्रवेश करनेसे पूर्व अपने शरीरपर धारण की हुई चमडेकी वस्तुएं क्यों उतार देनी चाहिए ?

२. देवालयमें जूते-चप्पल पहनकर देवताके दर्शन करनेसे होनेवाले सूक्ष्म परिणाम

३. सात्त्विक वातावरणमें जूते-चप्पल पहनकर जानेसे दर्शनार्थीपर सूक्ष्म स्तरपर होनेवाले परिणाम

४. जूते-चप्पल पहनकर देवताके दर्शन क्यों न करें इस संदर्भमें देवालयके नियमोंका पालन करना अत्यावश्यक है

५. दर्शनार्थियोंको देवालयकी सात्त्विकताका लाभ क्यों नहीं होता ?

६. जूते-चप्पल देवताकी दार्इं ओरही उतारनेके पीछे क्या शास्त्र है ?

७. देवालयमें जानेसे पूर्व पैर क्यों धोने चाहिए ?


 

१. देवालयमें प्रवेश करनेसे पूर्व अपने शरीरपर
धारण की हुई चमडेकी वस्तुएं क्यों उतार देनी चाहिए ?

१.अ. सात्त्विक तरंगोंको अवरुद्ध करनेवाली चमडेकी वस्तुएं, जैसे कमरका पट्टा अर्थात बेल्ट इत्यादि धारण कर देवालयमें प्रवेश नहीं करना चाहिए । इसलिए ऐसी वस्तुएं द्वारपर ही उतार दें । चर्मकी वस्तुओंसे तमोगुणी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । ये वस्तुएं धारण करनेसे जीवकी देहके चारों ओर तमोगुणी तरंगोंका कोष निर्माण होता है । परिणामस्वरूप देवालयमें व्याप्त सात्त्विकताका लाभ जीवको अल्प मात्रामें ही मिल पाता है; क्योंकि उसे ग्रहण करनेकी उसकी क्षमता न्यून हो जाती है ।

१.आ. देवालयके प्रांगणमें जूते-चप्पल पहनकर न जाएं; उन्हें देवालय क्षेत्रके बाहर ही उतारें । जूते-चप्पल प्रांगणमें उतारने ही पडें , तो देवताकी दार्इं ओर उतारें या देवालय व्यवस्थापनद्वारा निर्देशित उचित स्थानपरही उतारें ।

 

२. देवालयमें जूते-चप्पल पहनकर
देवताके दर्शन करनेसे होनेवाले सूक्ष्म परिणाम

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२.अ. देवताकी मूर्तिमें शक्ति, चैतन्य एवं शांति वलयोंके रूपमें विद्यमान रहती है ।

२.आ. देवालयमें विद्यमान देवताकी मूर्तिकी ओर ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह आकृष्ट होता है ।

२.इ. देवताकी मूर्तिके चारों ओर सगुण चैतन्य एवं चैतन्यके कण दीर्घकालतक कार्यरत रहते हैं ।

२.ई. देवालयकी भूमि भी चैतन्यसे संचारित रहती है ।

२.उ. चैतन्यके वलयोंद्वारा वातावरणमें चैतन्यके प्रवाहोंका प्रक्षेपण होता है । इससे वातावरण सात्त्विक बनता है ।

२.ऊ. जूते-चप्पल पहनकर देवताके दर्शन करनेवाले व्यक्तिमें मूलतः अहंकी मात्रा अधिक होती है । ऐसे दर्शनार्थीके कृत्य बाह्यत: सात्त्विक प्रतीत होते हैं; परंतु उनमें भाव नहीं होते ।

२.ए. ऐसे दर्शनार्थीकी देहके चारों ओर काला आवरण बना रह सकता हैं ।

 

३. सात्त्विक वातावरणमें जूते-चप्पल पहनकर
जानेसे दर्शनार्थीपर सूक्ष्म स्तरपर होनेवाले परिणाम।

३.अ. जूते-चप्पल तमोगुणी वस्तुसे बनाए जाते हैं; इसलिए उनमें मूलतः तमोगुणी स्पंदन रहते हैं।

३.आ. बाह्य वातावरणसे संपर्कके कारण उनमें सगुण-निर्गुण रूपमें अनिष्ट शक्तियोंका अस्तित्व व्याप्त रहता है।

३.इ. इसलिए जूते-चप्पलोंसे तमोगुणी प्रवाह एवं काले कण वातावरणमें प्रक्षेपित होते हैं।

३.ई. उसकी ओर वायुमंडलमें विद्यमान तमोगुणी काली तरंगें आकृष्ट होती हैं।

३.उ. जूते-चप्पल पहनकर देवताके दर्शन करनेके अयोग्य कृत्यके कारण दर्शनार्थीकी ओर देवताकी मारक शक्तिकी तरंगें प्रक्षेपित होती हैं। इनसे कष्ट होनेकी आशंका रहती है तथा दर्शनार्थीको देवताके दर्शनका लाभ नहीं मिल पाता ।

 

४. जूते-चप्पल पहनकर देवताके दर्शन क्यों न करें ?

इस संदर्भमें देवालयके नियमोंका पालन करना अत्यावश्यक है । देवालयके प्रांगणमें देवताओंकी तरंगें एवं गण, विशेषकर शिवालयमें शिवजीके गण उपस्थित रहते हैं । यहां जूते-चप्पल उतारनेसे किसी गणके क्रोधित होनेकी आशंका रहती है । दर्शनार्थीको उस गणका कोप सहना पड सकता है । कुछ मात्रामें उसकी आध्यात्मिक अधोगति भी हो सकती है ।

 

५. दर्शनार्थियोंको देवालयकी
सात्त्विकताका लाभ क्यों नहीं होता ?

जूते-चप्पलोंसे प्रक्षेपित रज-तमकी सूक्ष्म भीतसे अर्थात दीवारसे, देवालयसे प्रक्षेपित चैतन्य प्रतिबंधित होता है । यह चैतन्य केवल देवालयके भीतर ही प्रक्षेपित होता है; देवालयके बाहर नहीं । परिणामस्वरूप देवालयके बाहरके जीवको देवालयसे प्रक्षेपित चैतन्यका लाभ नहीं मिलता । जूते-चप्पलोंके रज-तमके कारण देवताकी मूर्तिसे प्रक्षेपित तरंगोंपर रज-तम कणोंका आवरण आता है तथा वहांकी सात्त्विकता घट जाती है । इससे दर्शनार्थियोंको देवालयकी सात्त्विकताका लाभ नहीं होता ।

 

६. जूते-चप्पल देवताकी दार्इं
ओरही उतारनेके पीछे क्या शास्त्र है ?

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दार्इं ओर देवताकी सूर्य नाडी कार्यरत होती है। इसलिए देवालयके दाएं भागमें उष्ण तरंगें रहती हैं । इन तरंगोंके कारण देवालयके बाहर उतारे गए जूते-चप्पलोंसे प्रक्षेपित रज-तमका विघटन होता है । देवालयमें पैर धोनेकी व्यवस्था हो, तो जूते-चप्पल उतारनेके उपरांत पैर धो लेना भी आवश्यक है ।

 

७. देवालयमें जानेसे पूर्व पैर क्यों धोने चाहिए ?

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पूर्वकालमें हिंदु, देवालयोंके बाहर बने जलाशयोंमें पैर धोकर देवालयमें प्रवेश करते थे । अब देवालयोंके बाहर जलाशय नहीं होते तथा अधिकांश लोग नहीं जानते कि पैर धोकर देवालयमें प्रवेश करना चाहिए अर्थात वे शास्त्राधारसे अनभिज्ञ रहते हैं । आजकल लोग पैर धोए बिना ही देवालयमें चले जाते है। देवालयोंकी सात्त्विकता अल्प होनेका यह भी एक प्रमुख कारण है ।

चलते समय हमारे पैरोंमें धूलके कण चिपक जाते हैं । पैर धोए बिना देवालयमें प्रवेश करनेसे, इन धूल के कणोंसे प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगोंके कारण जीवमें देवालयकी सात्त्विकता ग्रहण करनेकी क्षमता घट जाती है । इसके साथ ही, वातावरणमें उन रज-तम तरंगोंके प्रक्षेपणसे देवालयकी सात्त्विकता भी अल्प होती है । देवालयमें जानेसे पूर्व पैर धोनेसे, पैरोंमें लगे धूलकण धुल जाते हैं । इससे देवालयकी सात्त्विक तरंगें ग्रहण करनेमें बाधा नहीं आती । साथमें रज-तमात्मक तरंगोंका प्रक्षेपण अल्प मात्रामें होनेसे, देवालयकी सात्त्विकता भी बनी रहती है ।

परंतु, यदि देवालयमें पैर धोनेकी व्यवस्था न हो, तो देवतासे क्षमायाचना कर देवालयमें प्रवेश करें ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘देवालयमें दर्शन कैसे करें ?’

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