पूजनमें तुलसी का महत्त्व

सारणी

१. तुलसीका महत्त्व
२. तुलसीपत्रका सूक्ष्मचित्र
३. तुलसीदलका प्रयोग
४. तुलसी एवं बिल्वपत्र सदैव शुद्ध रहनेके कारण


१. तुलसीका महत्त्व

भगवान श्रीकृष्णजीको तुलसी प्रिय है । तुलसीमें ५० प्रतिशत कृष्णतत्त्व होता है । गहरे हरे रंगके पत्तोंवाली तुलसी अर्थात श्यामा तुलसी श्रीकृष्णजीके मारक तत्त्वका, तो हलके हरे रंगके पत्तोंवाली तुलसी अर्थात गौरी तुलसी श्रीकृष्णजीके तारक तत्त्वका प्रतीक है ।

 

२. तुलसीपत्रका सूक्ष्मचित्र

इस सूक्ष्म-चित्रसे स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्णपूजनमें तुलसीका उपयोग क्यों करते हैं । भगवान श्रीकृष्णजीको तुलसी प्रिय है । तुलसीमें ५० प्रतिशत कृष्णतत्त्व होता है । जीवको इन तरंगोंका व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरोंपर लाभ होता है । तुलसीदलसे प्रक्षेपित पवित्रकोंके कारण वातावरणमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंको कष्ट होता है । अनिष्ट शक्तियोंकी तमप्रधान काली शक्ति घटती है, अथवा नष्ट होती है । संक्षेपमें कहा जाए तो तुलसीदल श्रीकृष्णजीकी तत्त्वतरंगोंको प्रक्षेपित कर वातावरणमें विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंके साथ एक प्रकारसे युद्ध ही करता है । तुलसीदलके संपर्कमें अनिष्ट शक्तियोंसे पीडित व्यक्तिको उसकी सात्त्विकताके कारण कष्ट होने लगता है ।

३. तुलसीदलका प्रयोग

सनातन संस्कृतिमें बताई गई धार्मिक विधियां, उनमें किए जानेवाले प्रत्येक कृत्य तथा उनमें प्रयुक्त प्रत्येक घटक, इन सबके पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण है । श्रीकृष्णजीकी पूजाके उपयोगमें लाया जानेवाला तुलसीपत्र, यह हमारे लिए ईश्वरकी ओरसे मिली एक बडी देन है । यहां एक अन्य विशेषता बताना महत्त्वपूर्ण है । वह यह कि जो फूल देवताको चढाए जाते हैं, वे दूसरे दिन मुरझा जाते हैं एवं निर्माल्य कहलाते हैं । परंतु तुलसी एवं बिल्वपत्रके बारेमें ऐसा नहीं है । तुलसी एवं बिल्वपत्र सदैव शुद्ध रहते हैं ।

 

४. तुलसी एवं बिल्वपत्र सदैव शुद्ध रहनेके कारण

तुलसी में मूलतः ५० प्रतिशत श्रीविष्णुतत्त्व एवं बिल्वपत्र में ७० प्रतिशत शिवतत्त्व होता है । पूजा में तुलसी एवं बिल्वपत्र का प्रयोग करनेपर, उनमें विद्यमान देवता का तत्त्व २० प्रतिशत बढता है । वातावरण में रज-तम का प्रभाव प्रत्येक वस्तुपर पडता है । तुलसी एवं बिल्वपत्र में देवता के २० प्रतिशत बढे हुए तत्त्व का व्यय वातावरण के रज-तम से लडने में होता है । स्थूल स्तरपर इसका परिणाम यह होता है कि, तुलसी एवं बिल्वपत्र सूख जाते हैं अथवा जले हुए दिखाई देते हैं; परंतु मूलतः उनमें विद्यमान देवता के तत्त्व को वे सदैव प्रक्षेपित करते रहते हैं । इस कारण तुलसी के पत्ते एवं बिल्वपत्र सदैव शुद्ध होते हैं ।

तुलसी सदैव देवता का तत्त्व प्रक्षेपित कर, आसपास के वातावरण को पवित्र करती है । इसलिए जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वह घर पवित्र माना जाता है ।

१. तुलसी के पौधे में श्रीकृष्ण और श्रीविष्णुतत्त्व संयुक्तरीति से प्रगट रूप में विद्यमान होते हैं ।

२. तुलसी का पौधा ब्रह्मांड में विद्यमान श्रीकृष्णतत्त्व आकृष्ट कर, अपने पत्तोंद्वारा वायुमंडल में प्रक्षेपित करता है ।

३. तुलसी के पत्तों से पानी छिडकनेपर पत्तों से प्रक्षेपित होनेवाले तत्त्व उस पानी में आ जाते हैं, जिससे वायुमंडल एवं उपकरणों की शुद्धि होती है ।

४. तुलसी के पत्तों में जीव के लिए आवश्यक ऊर्जा अधिक मात्रा में होती है ।

इस कारण तुलसी के पत्ते खानेपर व्यक्ति को प्राणशक्ति प्राप्त होती है । (तुलसी का एक पत्ता खानेपर जीव को पांच घंटे तक शक्ति प्राप्त होती है ।)

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’

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