संत ज्ञानेश्‍वर की कालावधि में ‘सांपसीढी’ का खेल ‘मोक्षपट’ के रूप में पहचाना जाता था : प्रा. जेकॉब, डेन्मार्क

मोक्षपट के दोनों ही पट २० x २० इंच आकार के हैं एवं उसमें ५० चौकोन हैं। उसमें प्रथम घर ‘जनम’ का जब कि अंतिम घर ‘मोक्ष’ का है जिसकेद्वारा मनुष्य के जीवन की यात्रा दर्शाई गई है। मोक्षपट खेलने हेतु सांपसीढी के समान ही ६ कौडियों का उपयोग किया गया है।

हिंदुत्व एक सामर्थ्यशाली संस्कृती है : डेविड फ्रॉली, अमेरिकी वैदिक शिक्षक

पद्म भूषण से सम्मानित अमेरिकी वैदिक टीचर डेविड फ्रॉली भारत में पंडित वामदेव शास्त्री के नाम से भी जाने जाते हैं। उनके पास योग और वैदिक विज्ञान में डी-लिट की उपाधि है। वह वेद, हिंदुत्व, योग, आयुर्वेद और वैदिक ज्योतिषी पर कई पुस्तके लिख चुके हैं।

अनिष्ट शक्तीयों से बचना है तो स्वयं पर गौमूत्र छिडके : गुजरात गौ सेवा बोर्ड

गुजरात सरकारद्वारा बनाए गए गौसेवा और गौचर विकास बोर्डद्वारा गाय के फायदे बताते हुए कहा गया है कि, गौमूत्र ‘शैतान और ड्रेकुला’ जैसे अनिष्ट शक्तीयों से बचाने के लिए काम आता है।

अर्धनारीश्वर शिवलिंग : शिवलिंग के दोनों भागों के बीच अपनेआप घटती-बढती हैं दूरियां

इसे विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है, जहां शिवलिंग दो भागों में बंटा हुअा है। मां पार्वती और भगवान शिवजी के दो विभिन्न रूपों में बंटे शिवलिंग में ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तन के अनुसार इनके दोनों भागों के मध्य का अंतर घटता-बढता रहता है।

जगन्नाथ पुरी मंदिर की आश्चर्यचकित करनेवाली कुछ खास बातें !

कहा जाता है कि मंदिर में बनने वाला प्रसाद ७ बर्तनों में बनता है, यह खाना एक के ऊपर दूसरे बर्तन को रखकर बनाया जाता है। अाश्चर्य की बात यह है कि सबसे पहले खाना सबसे ऊपर रखे बर्तन में बनता है और उसके बाद यह क्रम नीचे की आेर चलता है।

पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने वाला जैसलमेर स्थित मां घंटीयाली का मंदिर…

जैसलमैर से १२० किलोमीटर दूर और माता तनोट मंदिर से ५ किलोमीटर पहले माता घंटीयाली का दरबार है। माता घंटीयाली और माता तनोट की पूजा बीएसएफ के सिपाही ही करते हैं। १९६५ की जंग में माता का ऐसा चमत्कार दिखा कि पाकिस्तानी सेना वहीं ढेर हो गई।

भगवान श्रीकृष्ण की विशेषताएं एवं कार्य

श्रीकृष्ण द्वारा बताया हुआ तत्त्वज्ञान गीता में दिया है । उन्होंने अपने तत्त्वज्ञान में प्रवृत्ति (सांसारिक विषयों के प्रति आसक्ति) एवं निवृत्ति (सांसारिक विषयों के प्रति विरक्ति) के बीच योग्य संयोजन दर्शाया है ।

गुरुकृपा होने के लिए गुरु पर पूर्ण श्रद्धा होना आवश्यक !

यदि किसी में लगन हो, तो उसे गुरु की कृपा अपनेआप मिलती है । गुरु को उसके लिए कुछ करना नहीं पडता । केवल संपूर्ण श्रद्धा होना आवश्यक है । गुरु ही उसे उसके लिए पात्र बनाते हैं ।

गुरुके कौन-कौनसे प्रकार हैं ?

८.१०.१९९५ के दिन इंदौरमें मैंने (डॉ. जयंत आठवलेने) बाबासे (प.पू. भक्तराज महाराजजीसे) कहा, ‘‘जब आप बीमार होते हैं, तो आपके पास रहकर आपकी सेवा करनेके विचारकी अपेक्षा ग्रन्थ लिखनेके विचार अधिक आते हैं । सगुण देहकी सेवा मनसे नहीं होती ।’’ इसपर बाबा बोले, ‘‘तुम्हें लगता है कि ग्रन्थ लिखना चाहिए, वही ठीक है । वह ईश्‍वरीय कार्य है ।

शिष्य के जीवन में गुरुका अनन्यसाधारण महत्त्व !

गुरु का महत्त्व ज्ञात होने पर नर से नारायण बनने में अधिक समय नहीं लगता; क्योंकि गुरु देवता का प्रत्यक्ष सगुण रूप ही होते हैं, इसलिए जिसे गुरु स्वीकारते हैं उसे भगवान भी स्वीकारते हैं एवं उस जीव का अपनेआप ही कल्याण होता है ।