१००० वर्ष पहले बने थे यहां २६ मंदिर, अब ऐसे वीरान पडे हैं ध्वंस अवशेष !

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भोपाल : ऐतिहासिक महत्व के इन मंदिरों की स्थिती जानने के उद्देश्य से डीबी स्टार समूह ने मौके पर जाकर पड़ताल की। इस दौरान समूह ने पाया कि यह सुंदर पर्यटन स्थल आशापुरी भोपाल से मात्र ३५ किमी दूर रायसेन जिले की गौहरगंज तहसील में स्थित है।

यहां एक हजार साल प्राचीन मंदिर और सुंदर तालाब है। भोजपुर मंदिर में तो शनिवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। समूह ने उनसे आसपास के अन्य पर्यटन स्थलों के बारे में पूछा तो उन्हें इस बारे में पता ही नहीं था। यहां घूमने आए अंकित श्रीवास्तव ने डीबी स्टार समूह की बात सुनकर देखने की इच्छा जाहिर की। अंकित और उनके छह साथी आशापुरी के लिए रवाना हो गए। यहां पहुंचे तो मुख्य द्वार बंद मिला और पर्यटन निगम द्वारा बनाए गए विश्राम गृह में भी ताला लगा था। इसके बाद वे पगडंडी के रास्ते भूतनाथ मंदिर तक पहुंचे। यहां का दृश्य देख पर्यटकों के मुंह से सहज ही निकल पड़ा कि काश वे पहले यहां आए होते।

 

३ किमी दायरे में १४ ऐसे स्थान मिले हैं

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वास्तव में मंदिर के बगल में एक तालाब है, जिसका पानी साफ है। इस स्थान पर अंकित और उनके साथी पर्याप्त देर रुके, परंतु इस दौरान उन्हें वहां ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जो यहां के बारे में जानकारी दे सके। गौरतलब है कि, अध्ययन के दौरान मंदिर के १०० वर्ग किमी के दायरे में ७० ऐसा दृश्य चिह्नित की गई हैं, जहां पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। ये पुरातत्व के हिसाब से पर्याप्त महत्वपूर्ण हैं। साथ ही मंदिर केे ३ किमी दायरे में १४ ऐसे स्थान मिले हैं, जिन्हें तत्काल संरक्षित करने की जरूरत है। स्कूल ऑफ प्लनिंग एंड आर्कीटेक्ट (एसपीए) भोपाल ने आशापुरी के २६ में से तीन मंदिरों का मूल बनावट भी तैयार कर लिया है। यह मंदिर पांच, बारह और सत्रह नंबर के हैं। हालांकि पत्थर नहीं मिलने के कारण बाकी मंदिरों का बनावट तैयार करना कठिन है।

 

इसलिए खास है आशापुरी

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आशापुरी स्थित मंदिर देखने में भले ही छोटे हों, परंतु इनको बनाने में २०० साल लगे हैं। इन ऐतिहासिक मंदिरों से जुड़ी जानकारी एसपीएस भोपाल और ब्रिटेन की कार्डिफ विश्वविद्यालय के वेल्स स्कूल ऑफ वास्तु-विद्या की समूह के अध्ययन में सामने आई है। इन मंदिरों को बनाने का काम प्रतिहार राजाओं के काल में ९वीं से १०वीं सदी के बीच शुरू हुआ था। इसके बाद परमार काल में १०वीं सदी के मध्य से लेकर ११वीं सदी के अंत तक लगातार बनते रहे। खास बात यह है कि इन मंदिरों के निर्माण में किसी भी प्रकार के मसालों का उपयोग नहीं किया गया, बल्कि पत्थर के ऊपर पत्थर रखकर मंदिर तैयार किए गए थे।

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पर्यटक संख्या बढ़ी है – आशापुरी संग्रहालय एवं मंदिर श्रृंखला

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पुरातत्व का काम अलग तरह का होता है। सबसे पहले तो संपदा को सुरक्षित रखना है और इसके बाद लोगों को इसके बारे में बताना हैं। चूंकि पर्यटन निगम के पास यह नहीं है, इसलिए हम अपने स्तर पर इस स्थान का प्रचार-प्रसार करते हैं। निगम ने एक विश्राम गृह बनाया था, वह भी हमें सौंप दिया है। बीते एक साल में यहां आने वालों की संख्या बढ़ी है।  

स्तोत्र : दैनिक भास्कर

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