आद्याशक्ति

महाकाली ‘काल’ तत्त्व का, महासरस्वती ‘गति’ तत्त्व का एवं महालक्ष्मी ‘दिक्’ (दिशा) तत्त्व का प्रतीक है । काल के प्रवाह में सर्व पदार्थों का विनाश होता है ।

श्री गणेशजी का कार्य, विशेषताएं एवं उनका परिवार

विभिन्न साधनामार्गों के संत विभिन्न देवताओं के उपासक होते हैं, फिर भी सब संतों ने श्री गणेश की शरण जाकर याचना की है, उनका भावपूर्ण स्तवन किया है । सर्व संतों के लिए श्री गणेश अति पूजनीय देवता रहे ।

श्री गणपति के कुछ अन्य नाम

पार्वती द्वारा निर्मित गणेशजी महागणपति के अवतार हैं । उन्होंने मिट्टी से आकार बनाया तथा उसमें गणपति का आवाहन किया । जगदुत्पत्ति से पूर्व महत्त्व निर्गुण तथा आत्मस्वरूप में होने के कारण उसे ‘महागणपति’ भी कहते हैं ।

भगवतभक्ति का अनुपमेय उदाहरण अर्थात् संतश्रेष्ठ नामदेव महाराज !

८४ लक्ष योनियों के पश्‍चात् जीव को मनुष्य जन्म प्राप्त होता है, किंतु उस समय यदि अधिक मात्रा में चुकाएं हुई, तो पुनः फेरा करना पडता है । अतः इस जन्म में ही आत्माराम से (ईश्‍वर से) पहचान करें !

श्रद्धा एवं भक्ति का उत्कट दर्शन करानेवाली जगन्नाथ रथयात्रा !

विश्‍वविख्यात पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा अर्थात् भगवान श्री जगन्नाथ (विश्‍वउद्धारक भगवान श्रीकृष्ण) के भक्तों के लिए एक महान आैचित्त्य है ! पुरी का मंदिर कलियुग के चार धामों में से एक है । यह विश्‍व की सबसे महान यात्रा है । लक्षावधी विष्णुभक्त यहां इकठ्ठा होते हैं । इस स्थान की विशेषता यह है कि,…

‘हिन्दु’ इस नाम से परिचय देते समय मुझे अभिमान प्रतीत होता है ! – स्वामी विवेकानंद

पाश्चात्त्य सिद्धांतों के अनुसार पाश्चात्त्य मनुष्य स्वयं के संबंध में कहते समय प्रथम अपने शरीर को प्राधान्य देता है तथा तत्पश्चात् आत्मा को । अपने सिद्धांतों के अनुसार मनुष्य प्रथम आत्मा है तथा तत्पश्चात् उसे एक देह भी है । इन दो सिद्धांतों का परीक्षण करने के पश्चात् आप के ध्यान में यह बात आएगी कि, भारतीय तथा पाश्चात्त्य … Read more

चैतन्यस्फूर्ति से लडनेवाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की स्मृतियां संजोनेवाले छायाचित्र

राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए झंझावाती प्रवास जहां आरंभ हुई, वह स्थान !               झांसी, उत्तरप्रदेश में किला   झांसी, उत्तरप्रदेश में यह किला राजा वीरसिंह जुदेव बुंदेल ने वर्ष १६१३ में बनाया था । राजा बुंदेल के राज्य की यह राजधानी थी । यह किला १५ … Read more

खगोलशास्त्र और फलज्योतिषविज्ञान में अद्भुत शोध करनेवाले आचार्य वराहमिहिर के जन्मस्थान के प्रति मध्यप्रदेश सरकार की घोर उपेक्षा !

बताया जाता है कि आचार्य वराहमिहिर का जन्म ५ वीं शताब्दी में हुआ था । जोधपुर के ज्योतिषाचार्य पं. रमेश भोजराज द्विवेदी की गणनानुसार वराहमिहिर का जन्म चैत्र शुक्ल दशमी को हुआ था । वराहमिहिर का घराना परंपरा से सूर्योपासक था ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य के प्रेरणास्रोत परमपूज्य भक्तराज महाराज !

प.पू. भक्तराज महाराज ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के कार्य के प्रेरणास्रोत हैं । इस संदर्भ में शब्दों में कुछ व्यक्त करना अत्यंत कठिन है । प.पू. बाबा का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति प्रेम तथा उनके कार्य को मिले प.पू. बाबा के आशीर्वाद सांसारिक अर्थों में समझ सकें, इसके लिए यहां दे रहे हैं ।