माघी श्री गणेश जयंती (Ganesh Jayanti 2024)

गणेशलहरी जिस दिन प्रथम पृथ्वी पर आई, अर्थात जिस दिन गणेशजन्म हुआ, वह दिन था माघ शुद्ध चतुर्थी । तब से गणपति का और चतुर्थी का संबंध जोड दिया गया । माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी ‘श्री गणेश जयंती’ के रूप में मनाई जाती है ।

चतुर्थी तिथि का महत्त्व तथा गणेशजी के विविध अवतारों के नाम एवं उनका कार्य

‘चतुर्थी’ तिथि के देवता श्री गणेशजी हैं; क्योंकि वे विघ्न दूर करनेवाले हैं । हमारी संस्कृति में श्रीगणेश एवं श्रीसरस्वती, इन दोनों देवताओं का बुद्धिदाता देवता के रूप में वर्णन है; परंतु इन दोनों देवताओं के कार्य भिन्न हैं ।

कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिए श्री गणेशजी की उपासना करते समय पठने आवश्यक मंत्र !

‘हमारे जीवन में कहीं तो न्यूनता है अथवा हमारी इच्छा अपूर्ण है’, ऐसा लगना, इसे उच्छिष्ट कहा जाता है ।

गणेशभक्तों, भावभक्ति एवं धर्मपालन को जीवन में पहला और प्रमुखता से स्थान देना आवश्यक !

बाढग्रस्त प्रदेशों में जिन हिन्दुओं को आर्थिक समस्या के कारण श्री गणेशमूर्ति की प्रतिष्ठापना करना संभव नहीं है, वे गणेशोत्सव के समय में भावभक्ति के साथ श्रीगणेशजी की उपासना करें ।

श्रीगणेशजी को अडहुल के पुष्प अर्पण करें

देवताओंको पुष्प अर्पित करनेका मुख्य उद्देश्य : देवताओंसे प्रक्षेपित स्पंदन मुख्यतः निर्गुण तत्त्वसे संबंधित होते हैं । देवताओंको अर्पित पुष्प तत्त्व ग्रहण कर पूजकको प्रदान करते हैं, जिससे पुष्पमें आकर्षित स्पंदन भी पूजकको मिलते हैं । 

गणेशपूजनमें दूर्वाका विशेष महत्त्व

दुः + अवम्, इन शब्दोंसे दूर्वा शब्द बना है । ‘दुः’ अर्थात दूरस्थ एवं ‘अवम्’ अर्थात वह जो पास लाता है । दूर्वा वह है, जो श्री गणेशके दूरस्थ पवित्रकोंको पास लाती है ।

मयूरेशस्तोत्रम्

यह स्तोत्र साक्षात् ब्रह्माजी ने ही कहा है । इसकी फलश्रुति का वर्णन गणेश भगवान ने इसप्रकार किया है – ‘इससे कारागृह के निरपराध कैदी ७ दिनों में मुक्त हो जाते हैं । स्तोत्र भावपूर्ण कहने से फलनिष्पति मिलती है ।

श्री गणपति अथर्वशीर्ष

‘गणपति अथर्वशीर्ष’ यह श्री गणेश का दूसरा सर्वपरिचित स्तोत्र है । ‘अथर्वशीर्ष’ का ‘थर्व’ अर्थात ‘उष्ण.’ अथर्व अर्थात शांति’ एवं ‘शीर्ष’ अर्थात ‘मस्तक’ । जिसके पुरश्‍चरण से शांति मिलती है, वह है ‘अथर्वशीर्ष’ ।

स्वयंभू गणेशमूर्ति

श्री विघ्नेश्‍वर, श्री गिरिजात्मज एवं श्री वरदविनायक की मूर्तियां स्वयंभू हैं । बनाई गईं श्री गणेशमूर्ति की तुलना में स्वयंभू गणेशमूर्ति में चैतन्य अधिक होता है । स्वयंभू गणेशमूर्ति द्वारा वातावरणशुद्धी का कार्य अनंत गुना अधिक होता है ।