कुंभमेलेका धार्मिक महत्त्व

करोडोंके जनसमूहकी उपस्थितिमें संपन्न होनेवाले कुंभक्षेत्रके मेले हिंदुओंका विश्वका सबसे बडा धार्मिक मेला है । पवित्र तीर्थक्षेत्रोंमें स्नान कर पाप-क्षालन हो, इस हेतु अनेक श्रद्धालु कुंभपर्वमें कुंभक्षेत्रमें स्नान करते हैं ।

कुंभपर्व, कुंभपर्व उत्पत्तिकी कथा एवं उनका माहात्म्य

प्रयाग (इलाहाबाद) उत्तरप्रदेशमें गंगा, यमुना एवं सरस्वतीके पवित्र ‘त्रिवेणी संगम’पर बसा तीर्थस्थान है । गंगा एवं यमुना नदी दिखाई देती हैं; परंतु सरस्वती नदी अदृश्य है । इस पवित्र संगमके कारण ही इसे ‘प्रयागराज’ अथवा ‘तीर्थराज’ कहा जाता है ।

ॐ नम: शिवाय

१. शिवजी के नामजप का महत्त्व     ‘नमः शिवाय ।’ यह शिवजी का पंचाक्षरी नामजप है । इस मंत्र का प्रत्येक अक्षर शिव की विशेषताओंका निदर्शक है । जहां गुण हैं वहां सगुण साकार रूप है । ‘नमः शिवाय ।’ इस पंचाक्षरी नामजप को निर्गुण ब्रह्म का निदर्शक ‘ॐ’कार जोडकर ‘ॐ नमः शिवाय’ यह … Read more

श्री गणेशोपासना एवं उससे संबंधित महत्वपूर्ण सूत्र

श्री गणेशजीकी उपासनामें नामजप जैसे विविध कृत्योंका अंतर्भाव होता है । पूजनमें दूर्वा, शमी एवं मदार की पत्तियां, लाल एवं सिंदूरी रंगकी वस्तुएं; उपयोगमें लाए जाते हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण

१. व्युत्पत्ति एवं अर्थ अ. ‘(आ)कर्षणम् करोति इति ।’, अर्थात आकर्षित करनेवाला । ‘कर्षति आकर्षति इति कृष्णः ।’ अर्थात, जो खींचता है, आकर्षित कर लेता है, वह श्रीकृष्ण । आ. लौकिक अर्थसे श्रीकृष्ण अर्थात काला । कृष्णविवर (Blackhole) में प्रकाश है, इसका शोध आधुनिक विज्ञानने अब किया है ! कृष्णविवर ग्रह, तारे इत्यादि सबको अपनेमें खींचकर नष्ट कर … Read more

आरोग्यदाता भगवान श्रीधन्वंतरीदेवता जयंती

हमारे सबसे मंगलमय तथा संपूर्ण भारतवर्षमें बडे हर्षोल्लासके साथ मनाया जानेवाला त्यौहार है, ‘दीपावली’ । इस मंगलपर्वका एक विशेषदिन जो शंख, चक्र, अमृत-कलश एवं औषधि लेकर कमलपर आसनस्थ श्रीधन्वंतरीदेवताके पृथ्वीपर अवतरणके उपलक्ष्यमें मनाया जाता है ।

श्रीरामजीके उपासनाकी सामान्य कृतियां एवं उपासनाके विविध प्रकार

देवताके तत्त्वका निरंतर लाभ मिलता रहे, इस हेतु उनकी उपासना भी निरंतर होनी चाहिए और ऐसी एकमात्र उपासना है नामजप । कलियुगके लिए नामजप ही सरल एवं सर्वोत्तम उपासना है ।

दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों के कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?

कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक (मृत्युलोक)में फंस जाती है । मृत्युलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है