स्वामी विवेकानंद

वर्तमान लेख में, हमने स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रदान की गई सेवा, गुरु के प्रति उनके दृष्टिकोण, गुरुकृपा के महत्व और गुरुकृपा और गुरुकृपा के कारण व्यक्तिगत लक्ष्य को कैसे पूरा किया, इस पर चर्चा की है।

स्वामी विवेकानंद के समाज को प्रबुद्ध करनेवाले वचन !

भयंकर दोष उत्पन्न करनेवाली आज की शिक्षा पद्धति की तुलना में मनुष्य का चारित्र बनानेवाली शिक्षा देना क्यों आवश्यक है, इसपर स्वामी विवेकानंद के अमूल्य विचार हम प्रस्तुत लेख में जानेंगे ।

युवावस्था में सन्यासाश्रम की दीक्षा लेकर हिन्दू धर्म का प्रचारक बने तेजस्वी और ध्येयवादी स्वामी विवेकानंद

धर्मप्रवर्तक, दार्शनिक, विचारक, वेदान्तमार्गी राष्ट्रसंत आदि विविध रूपों में विवेकानंद का नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध है । भरी युवावस्था में संन्यास की दीक्षा लेकर हिन्दू धर्म का प्रचारक बने तेजस्वी एवं ध्येयवादी व्यक्तित्त्व थे, स्वामी विवेकानंद ।

थियोसोफिस्टों के हिन्दुत्व विरोध पर बेधडक बोलनेवाले स्वामी विवेकानंद !

इंग्लैंड और अमेरिका में मेरे छोटे-से कार्य को ‘थियोसोफिस्ट’ लोगों ने सहायता की, यह समाचार सर्वत्र फैलाया जा रहा है । आपको यह स्पष्ट बताना चाहता हूं कि यह समाचार पूर्णत: असत्य है ।

धर्मांतरितों के शुद्धीकरण पर स्वामी विवेकानंद के विचार !

धर्मांतरित हिन्दुओं और मूलतः अहिन्दुओं के शुद्धीकरण पर ‘प्रबुद्ध भारत’ पत्रिका के प्रतिनिधि ने वर्ष १८९९ में स्वामी विवेकानंद से वार्तालाप किया था ।

स्वामी विवेकानंद के समान ज्वलंत धर्माभिमान धारण करें !

एक बार जब स्वामीजी अपने शिष्यों के साथ कश्मीर गए थे, तब उन्हें वहां क्षीर भवानी मंदिर के भग्नावशेष दिखाई दिए । उन्होंने बहुत दुखी होकर अपनेआप से पूछा, जब यह मंदिर भ्रष्ट और भग्न किया जा रहा था, तब लोगों ने प्राणों की बाजी लगाकर प्रतिकार क्यों नहीं किया ?

भावशक्ति के बल पर विदेश में धर्मजागृति का महान कार्य सफलतापूर्वक करनेवाले स्वामी विवेकानंद !

स्वामी विवेकानंद जब धर्मप्रसार के लिए, अर्थात् सनातन हिन्दू धर्म का तेज विदेशों में फैलाने के उद्देश्य से सर्वधर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो (अमेरिका) गए थे, तब उन्होंने उस धर्मसम्मेलन में श्रोताओं के मन जीतकर वहां ‘न भूतो न भविष्यति !’ ऐसा विलक्षण प्रभाव उत्पन्न किया ।

स्वामी विवेकानंदजी का उनके गुरु के प्रति उत्कट भाव !

वर्ष १८९६ में स्वामी विवेकानंद आगनांव से (जहाज से) नॅप्लस से कोलंबो की ओर आ रहे थे । उनके सहयात्रियों में दो ईसाई धर्मगुरु थे । अकारण वे हिन्दु धर्म तथा ईसाई पंथ में होनेवाले भेद इस विषय पर चर्चा विवाद करने लगे ।

‘हिन्दु’ इस नाम से परिचय देते समय मुझे अभिमान प्रतीत होता है ! – स्वामी विवेकानंद

पाश्चात्त्य सिद्धांतों के अनुसार पाश्चात्त्य मनुष्य स्वयं के संबंध में कहते समय प्रथम अपने शरीर को प्राधान्य देता है तथा तत्पश्चात् आत्मा को । अपने सिद्धांतों के अनुसार मनुष्य प्रथम आत्मा है तथा तत्पश्चात् उसे एक देह भी है । इन दो सिद्धांतों का परीक्षण करने के पश्चात् आप के ध्यान में यह बात आएगी कि, भारतीय तथा पाश्चात्त्य … Read more