आद्याशक्ति

नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण कम करने के लिए तमोगुणी महाकाली की, दुसरे तीन दिन सत्त्वगुण बढाने के लिए रजोगुणी महालक्ष्मी की एवं अगले तीन दिन साधना तीव्र होने के लिए सत्त्वगुणी महासरस्वती की पूजा की जाती है । इन तीनोेंं शक्तियोेंं का समावेश करनेवाली आद्याशक्ति के विषय में इस लेख में जानकर लेंगे ।

१. अर्थ

महाकाली ‘काल’ तत्त्व का, महासरस्वती ‘गति’ तत्त्व का एवं महालक्ष्मी ‘दिक्’ (दिशा) तत्त्व का प्रतीक है । काल के प्रवाह में सर्व पदार्थों का विनाश होता है । जहां गति नहीं, वहां निर्मिति की प्रक्रिया ही थम जाती है । तब भी अष्टदिशांतर्गत जगत की निर्मिति, पालन-पोषण एवं संवर्धन हेतु एक प्रकार की शक्ति सदैव कार्यरत रहती है । यही आद्याशक्ति है । ऊपर दिए गए तीनोेंं तत्त्व इस महाशक्ति में अनुस्यूत (अखंड रुप से) हैं ।

 

२. कुछ अन्य नाम

आदिशक्ति, पराशक्ति, महामाया, काली, त्रिपुरसुंदरी एवं त्रिपुरा । इनमें से कुछ शक्तियों की विशिष्ट जानकारी आगे दी गई है ।

अ. काली

महानिर्वाणतंत्र के अनुसार काली (आद्याशक्ति) वस्तुत: अरुप हैं; परंतु गुण एवं क्रिया के अनुसार उनकी रुपकल्पना की जाती है । जब वे सृष्टिकर्म में निमग्न होती हैं, तब रजोगुणी एवं रक्तवर्णी होती हैं; जब वे विश्वस्थिति हेतु कार्यरत रहती हैं, तब सत्त्वगुणी एवं गौर होती हैं और जब संहारक्रिया मेेंं मग्न रहती हैं, तब वे तमोगुणी एवं काली होती हैं ।

आ. त्रिपुरा

त्रिपुरा शब्द की परिभाषा इस प्रकार है –
‘त्रीन् धर्मार्थकामान् पुरति पुरतो ददातीति ।’ – शब्दकल्पद्रुम

अर्थ : धर्म, अर्थ एवं काम, इन तीन पुरुषार्थों को, जो साध्य करवाती हैं, वे त्रिपुरा हैं ।

त्रिपुरा के अनेक रुप हैं । प्राचीन काल में उन सबकी उपासना होती थी । त्रिपुरा प्रथम कुमारी के रुप में अवतीर्ण हुर्इं और तत्पश्चात उन्होेंंने त्रिपुराबाला, त्रिपुरभैरवी एवं त्रिपुरासुंदरी अथवा त्रिपुरसुंदरी, इन तीन रुपों में अपना विभाजन किया ।

इ. त्रिपुरसुंदरी

त्रिपुरसुंदरी को शाक्तोेंं ने ‘पराशक्ति’ कहा है । उपासक त्रिपुरसुंदरी की उपासना चंद्ररुप में करते हैं । चंद्र की सोलह कलाएं हैं । एक से पंद्रह तक की कलाओं का उदय एवं अस्त होता है; परंतु षोडशी कला नित्य होती है । उसे ‘नित्यषोडशिका’ कहते हैं । यह षोडशी ही सौंदर्य एवं आनंद का परमधाम अर्थात् ‘महात्रिपुरसुंदरी’ है ।

त्रिपुरसुंदरी

३. तीन मुख्य रूप

आद्याशक्ति द्वारा कार्य के अनुरुप धारण किए गए रूप एवं उनकी विशेषताओं की जानकारी निम्नांकित सारणी में दी गई है ।

अनु क्र. नाम एक विचारधारा अनुसार गुण वर्ण संबंधित देवता किन दैत्यों का वध किया ?
१. महाकाली तम कृष्ण (काला) रुद्रशिव मधु एवं कैटभ
२.  महालक्ष्मी सत्त्व गौर (गोरा) श्रीविष्णु महिषासुर
३. महासरस्वती रज रक्त (लाल) ब्रह्मा शुंभ-निशुंभ

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – ‘शक्ति का परिचयात्मक विवेचन’

Leave a Comment