दिव्यत्व की प्रचिती का उर्जास्त्रोत्र है सनातन आश्रम ! – ह.भ.प. बाळासाहेब बडवे, भागवत कथाकार, पंढरपुर

‘यदि व्यक्ति के जीवन में धर्म नाम के चैतन्य का अभाव रहेगा, तो असुरी वृत्ति की एक प्रभावळ इस विश्व में निर्माण होगी । यह प्रभावळ देशविघातक सिद्ध होगी, उसके लिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की प्रेरणा से निर्माण हुए सनातन संस्था के समान एक विशाल कल्पवृक्ष की इस विश्व को अत्यंत आवश्यकता है ।

ईश्‍वर का दर्शन करने के लिए आनेवालों की संख्या में हुई प्रचंड वृद्धि और समस्या का उत्तर

सैकडों वर्ष पूर्व जब देवालयों का निर्माण किया गया, तब कुल जनसंख्या और दर्शन हेतु आनेवाले हिन्दुओं की संख्या मर्यादित थी । देवालय में दर्शन हेतु आनेवालों की संख्या को देखते हुए देवालय का आकार और रचना पूरक थी ।

समाज के उत्थान हेतु ‘साधना’ विषय पर प्रवचनों की ध्वनिफीतियों की निर्मिति के माध्यम से यज्ञ करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने सनातन संस्था के माध्यम से अध्यात्मप्रसार का कार्य आरंभ किया । इस कार्य-स्वरूप वर्ष १९९० से १९९६ की कालावधि में कुछ जनपद, तहसील तथा शहरों में प.पू. डॉक्टरजी अभ्यासवर्ग लेते थे ।

अनुसंधान में विद्यमान पू. श्रीकृष्ण आगवेकरजी !

मैं जब आगवेकरकाकाजी के घर गई, तब उन्होंने हंसकर विनम्रता से मुझे बैठने के लिए कहा । उनकी ओर देखते समय ‘मुझे चैतन्य मिल रहा है’, ऐसा प्रतीत होकर मेरी बहुत भावजागृति हुई ।

गुरुमंत्र किसे कहते हैं ? इससे आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र होती है ! ऐसा क्यों?

गुरुमंत्र में केवल अक्षर ही नहीं; अपितु ज्ञान, चैतन्य एवं आशीर्वाद भी होते हैं, इसलिए प्रगति शीघ्र होती है । उस चैतन्ययुक्त नाम को सबीजमंत्र अथवा दिव्यमंत्र कहते हैं । उस बीज से फलप्राप्ति हेतु ही साधना करनी आवश्यक है ।

गुरुसंबंधी आलोचना अथवा अनुचित विचार एवं उनका खंडन !

यदि हमें मनुष्य जन्म मिला है । इस जन्म का मुझे सार्थक करना है । आनंदमय जीवन यापन करना है । जीवन के प्रत्येक क्षण स्थिर रहना है, तो गुरु के बिना विकल्प नहीं है ।

गुरु के चरणोंपर कृतज्ञता से भरी भावसुमनांजली समर्पित करनेवाला गुुरुपूर्णिमा महोत्सव १०९ स्थानोंपर संपन्न !

कुछ नररत्न जैसे परमेश्वर का अवतारकार्य पूरा करने के लिए ही पृथ्वीपर जन्म लेते हैं ! सहस्रों वर्षों के कालपटलपर अपनी मुद्रा अंकित करनेवाले अवतारी सत्पुरुष परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी उन्हीं में से एक हैं !

सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से उत्तरप्रदेश तथा बिहार में मनाया गया गुरुपूर्णिमा महोत्सव

वाराणसी के साधक वेदप्रकाश गुप्ता ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर | उस समय सनातन के संत पू. नीलेश सिंगबाळ के हाथों श्री. गुप्ता का श्रीकृष्ण की प्रतिमा देकर आदर किया गया ।

गुरु का सांप्रतकालीन कर्तव्य क्या है ?

काल की आवश्यकता समझकर राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देना, यह गुरु का वर्तमान कर्तव्य है । जिस प्रकार साधकों को साधना बताना गुरु का धर्म है, उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु समाज को जागृत करना, यह भी गुरु का ही धर्म है ।

सनातन संस्थाके आस्थाकेंद्र ‘प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी’ – द्रष्टा धर्मगुरु एवं राष्ट्रसंत !

गुरु श्रीकृष्णने शिष्य अर्जुनको न केवल मोक्षप्राप्तिके लिए धर्म सिखाया; अपितु ‘धर्मरक्षाके लिए अधर्मियोंसे लडना चाहिए’, यह क्षात्रधर्म भी सिखाया । शिष्यको मोक्षप्राप्तिके लिए साधना बतानेवाले आज अनेक गुरु हैं; परंतु ‘राष्ट्र एवं धर्मरक्षा कालानुसार आवश्यक साधना है’, ऐसी सीख देनेवाले गुरु गिने-चुने ही हैं ।