कश्मीर का विविधांगी महत्त्व

अ. भौगोलिक दृष्टि से

कश्मीर का उल्लेख हिन्दू धर्म के अनेक प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में पाया जाता है । शक्ती-संगमतंत्र इस ग्रंथ में कश्मीर की व्याप्ति आगे दिए अनुसार है ।

शारदामठमारभ्य कुडःकुमाद्रितटान्तकम् ।
तावत्काश्मीरदेशः स्यात् पन्चाशद्योजानात्मकः ॥

अर्थ : शारदा मठ से केसर के पर्वत तक ५० योजन (१ योजन = ४ कोस) विस्तृत प्रदेश, कश्मीर देश है ।
महाभारत में इसका उल्लेख कश्मीर मंडल किया गया है । (भीष्म. ९.५३)

 

आ. ऐतिहासिक दृष्टि से

शंकराचार्य मंदिर
हिमालय पर्वत

१. भगवान कृष्ण और भगवान बुद्ध, इन दो महात्माआें ने कश्मीर की मिट्टी को पदस्पर्श से पावन किया, इसका उल्लेख है । युधिष्ठिर के राज्याभिषेक में कश्मीर का राजा गोनंद उपस्थित था ।

इससे कश्मीर हिन्दू संस्कृति से एकरूप है, यह सहज ध्यान में आता है ।

२. इ.स. पूर्व २७३-२३२ इस काल में सम्राट अशोक ने श्रीनगरी राजधानी की स्थापना की थी । यही है श्रीनगर ! आज जहां श्रीनगर का विमानतल है, उसके पास सम्राट अशोक के पोते दामोदर का भव्य प्रासाद था ।

कश्मीर के सर्व स्थानों के नाम परिवर्तित किए गए अथवा उनका इस्लामीकरण किया गया; परंतु आज भी श्रीनगर का नाम परिवर्तित नहीं कर पाए, यह सत्य ध्यान में रखें ! जिस कश्मीर की राजधानी ही श्रीनगर है, वह राज्य अपना हिन्दुत्व कैसे छुपा सकता है ?

३. ईसा के जन्म के ३००० वर्ष पूर्व कश्मीर का अस्तित्व था, ऐसा पुरातत्वीय आधार बताते हैं । उस समय इस्लाम के किसी प्रतिनिधि का अस्तित्व नहीं था; परंतु ओमर का कोई पूर्वज उस समय निश्‍चित ही कश्मीर में रहता होगा । उससे पूछते, तो वह कहेगा कि कश्मीर भारत में बहुत पहले ही विलीन हो चुका है ।

 

इ. धार्मिक दृष्टि से

१. हिन्दू संस्कृति में १६ संस्कारों का विशेष महत्त्व है । उपनयन संस्कार के उपरांत बच्चे को सात पग उत्तर की दिशा में, अर्थात कश्मीर की दिशा में चलने के लिए कहा जाता है ।

इससे कश्मीर का हिन्दू संस्कारों की दृष्टि से महत्त्व ध्यान में आएगा ।

२. पूरी कश्मीर घाटी किसी समय भव्य-दिव्य एवं ऐश्‍वर्यशाली मंदिरों के लिए सुप्रसिद्ध थी । इस्लामी वक्रदृष्टि पडने के कारण, आज सर्वत्र इन मंदिरों के खंडहर पाए जाते हैं । कश्मीर के गरूरा नामक गांव में ‘झियान मातन’ नामक दैवी सरोवर था । इसके किनारे ६०० वर्ष पूर्व के ७ मंदिर थे । सिकंदर भूशिकन नामक कश्मीर के मुसलमान राजा ने इनमें से ६ मंदिर गिरा दिए थे । सातवां मंदिर गिराने जा रहा था, तब इस सरोवर से रक्त बहने लगा । यह देख सिकंदर भूशिकन अचंभित हो गया और घबराकर वहां से भाग गया । इस प्रकार सातवां मंदिर उस क्रूरकर्मा के चंगुल से बच गया । वह आज भी है ।

वह मंदिर आज वहां क्यों है ? कश्मीर हिन्दू संस्कृति है, यह साक्षी देने के लिए ही !

 

ई. आध्यात्मिक दृष्टि से

१. श्रीविष्णु-लक्ष्मी और शारदादेवी एकत्र कभी भी नहीं रहते, ऐसा कहा जाता है; परंतु केवल कश्मीर में ही लक्ष्मी और शारदादेवी एकत्रित रहते हैं । यहां एक स्थान पर शारदादेवी का और दूसरे स्थान पर श्री लक्ष्मी का स्थान है ।

२. कश्मीर की नागपूजक संस्कृति : नागपूजन हिन्दू धर्म का अविभाज्य अंग है । कश्मीर में प्राचीन काल से नागपूजा प्रचलित है । इसलिए अनेक सरोवरों और झीलों को नागदेवता के नाम मिले हैं । उदा. नीलनाग, अनंतनाग, वासुकीनाग, तक्षकनाग इत्यादि । नाग उनके संरक्षकदेवता थे । श्रीविष्णु ने वासुकीनाग को यहां सपरिवार रहने की आज्ञा दी थी और यहां कोई उसे नहीं मारेगा, ऐसा अभय भी दिया था ।

आप बताइए, क्या अरबस्तान में नागपूजन होता है ? वहां तो मूर्तिपूजा भी नहीं होती; तो नाग की आकृतियां उकेरने की तो बात ही नहीं?

 

उ. सांस्कृतिक दृष्टि से

प्राचीन काल से कश्मीर में उच्च संस्कृति का संरक्षण किया गया । विद्या-कला का उत्कर्ष यहां दो सहस्र वर्ष से चल रहा है ।

१. संस्कृत भाषा हिन्दू संस्कृति का सार है । इस देववाणी में सर्व धार्मिक विधियों की रचना हुई है । ये सभी धार्मिक विधियां कश्मीर से केरल तक केवल संस्कृत भाषा में की जाती हैं । इससे कश्मीर का केवल केरल के साथ ही नहीं, पूरे भारतवर्ष से बना भाषा, संस्कृति एवं धर्म से संबंध ध्यान में आएगा ।

२. क्षेमेंद्र, मम्मट, अभिनवगुप्त, रुद्रट, कल्हण जैसे पंडितों ने अनेक विद्वत्तापूर्ण संस्कृत ग्रंथ निर्माण किए । पंचतंत्र  नामक सुबोध देनेवाला हिन्दू संस्कृति का ग्रंथ कश्मीर में लिखा गया, यह कितने लोगों को ज्ञात है ?

३. कुछ सहस्र वर्ष तक कश्मीर संस्कृत भाषा और विद्या का सबसे बडा और श्रेष्ठ अध्ययन केंद्र था । दसवीं शताब्दी तक भारत के सर्व भागों से विद्यार्थी वहां अध्ययन करने जाते थे । तत्त्वज्ञान, धर्म, चिकित्सा, ज्योतिषशास्त्र, शिल्प, अभियांत्रिकी, चित्रकला, संगीत, नृत्य इत्यादि अनेक विषयों में कश्मीर निष्णात था ।

हिन्दुआें के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में उनका अभिमान के साथ उल्लेख है; परंतु आज इस गौरवशाली इतिहास को भीषण वर्तमान ने मिटा दिया है । हमें इस परिस्थिति में परिवर्तन लाना है ।

४. कश्मीरी क्रियापद में भारतीय आर्य विशेषताएं स्पष्ट रूप से पाई जाती हैं । कश्मीरी साहित्य का जो विकास हुआ है, वह भी उसकी भारतीय आर्य परंपरा का द्योतक है । यह भाषा अरबी अथवा जंगली उर्दू शैली की नहीं, देववाणी संस्कृत की कन्या है, यह ध्यान में रखें!

 

ऊ. प्राकृतिक दृष्टि से

सर वाल्टर लारेन्स ने कहा है कि किसी समय कश्मीर में इतनी सुदृढता और निरामयता थी कि वहां की स्त्रियां सृजनशीलता में मानो भूमि से स्पर्धा करती थीं । भूमि जैसे विपुल अन्नसंपदा देती है, वैसी सुदृढ संतति को वे जन्म देती थीं ।

पर आज क्या हो रहा है ? इसी कश्मीर घाटी में ३० वर्ष की आयु में इन महिलाआें का मासिक धर्म बंद हो रहा है । यह सभी दुर्भाग्यपूर्ण है !

स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात

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