माघ स्नान (Magh Snan 2024)

माघ स्नान अर्थात माघ माह में पवित्र तीर्थक्षेत्रों के स्थान पर जलस्त्रोतों में किया स्नान । ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य एवं अन्य सर्व देवता माघ माह में विविध तीर्थक्षेत्रों में आकर वहां स्नान करते हैं । इसलिए इस काल में माघ स्नान करने के लिए कहा है ।

सीतामाता के वास्तव्य से पावन हुई श्रीलंका का ‘सीता कोटुवा’ !

रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहते हैं, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णु ने श्रीरामावतार धारण किया एवं लंकापुरी में जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । युगों-युगों से इस स्थान पर हिन्दू संस्कृति ही थी । २ सहस्र ३०० वर्षों पूर्व राजा अशोक की कन्या संघमित्रा के कारण श्रीलंका में बौद्ध पंथ आया । अब वहां के ७० प्रतिशत लोग बौद्ध हैं ।

पानी की शक्ति और सकारात्मकता

पानी अर्थात जीवन । पानी में स्वयं की विशिष्ट एक स्मरणशक्ति होती है । पानी पीते समय जिसप्रकार के अपने विचार होते हैं अथवा जिस मानसिक स्थिति में हम पानी पीते हैं, उसका भारी परिणाम पानी पर और हम पर होता है ।

चीन पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव

बहुत प्राचीन समय से चीन, तिब्बत और भारत के सांस्कृतिक संबंध थे । तिब्बत को त्रिविष्टप अर्थात स्वर्ग’ कहा गया है । मनु ने चीन का उल्लेख किया है (ई.स.पू. ८०००) । रेशम चीन से आता है; इसलिए पाणिनि ने (ई.स.पू. २१०० वर्ष) उसे चीनांशुक’ कहा है ।

प्राचीन भारतीय नौकाशास्त्र में मत्स्ययंत्र के अलौकिक तंत्र

वेद से लेकर अनेक भारतीय पौराणिक ग्रंथों में महासागर, समुद्र और नदियों से जुडी ऐसी अनेकानेक घटनाओं का उल्लेख है, जिससे यह पता चलता है कि भारतीयों को नौकायान का ज्ञान आदिकाल से ही रहा है । भारतीय साहित्यकला, मूर्तिकला, चित्रकला और पुरातत्व-विज्ञान से प्राप्त अनेक साक्ष्यों से भारत की समुद्री परंपराओं का अस्तित्व प्रमाणित … Read more

भारतीय संस्कृति को संजोकर रखनेवाला नेपाल !

भारतीय रुपया जैसा उस पर महात्मा गांधी अथवा किसी नेपाली राजनेता का चित्र नहीं, अपितु इस नोट पर हिमालय का चित्र है ।

क्या गुरु द्वारा बताई साधना करना ही आवश्यक है ?

मन का कार्य ही है विचार करना । इस कारण मन में सदैव संकल्प और विकल्प आते रहते हैं । इस कारण जब तक साधना करके मनोलय की स्थिति नहीं आती, तब तक मन में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है ।

क्या गुरु बदल सकते हैं ?

कुछ लोगों की मोहमाया की इच्छाएं तृप्त ही नहीं होतीं । वे गुरु के पास सतत कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं । वे लोग भूल जाते हैं कि मन की इच्छा नष्ट कर मनोलय करवाना ही गुरु का खरा कार्य है ।