कश्मीरी संस्कृति का भारतीयता !

कश्मीरी हिन्दू बलिदान दिवस के अवसर पर

१४ सितंबर

१. कश्मीर का महत्त्व !

१ अ. भारतवर्ष

पांचों खंडों और भूमंडल में पवित्रतम भूमि है, भारतवर्ष ! अनेक ऋषि-मुनियों, अवतारों और विद्वज्जनों के पावन स्पर्श ने इस भारतभूमि को गौरवशाली बनाया है । सभ्यता और श्रेष्ठता के लिए विश्‍व में सर्वाधिक विख्यात आर्य संस्कृति का विकास इसी देश में हुआ । ऐसा भारतदेश हमारी श्‍वास, तथा हिन्दू संस्कृति हमारी आत्मा है !

१ आ. कश्मीर

मानचित्र में दिखाई देनेवाला भारत, राष्ट्रपुरुष (भारतवर्ष) का शरीर है । उसमें स्थित जम्मू-कश्मीर प्रांत, इस राष्ट्रपुरुष का मस्तक है । यदि भारतवर्ष से कश्मीर को अलग कर दिया जाए, तो भारत की अवस्था मस्तकविहीन मानव-जैसी निरर्थक होगी !

२. शारदादेश का महत्त्व और हिन्दुआें का कर्तव्य !

कश्मीर, भारतवर्ष की बुद्धि (सिर) है । ऐसा होने का आध्यात्मिक कारण है, यहां स्थित मां सरस्वती का शारदापीठ ! ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की । पश्‍चात, उन्होंने मनुष्य को पृथ्वी पर भेजा । मानव ने ब्रह्मदेव से प्रार्थना की, ‘हे ब्रहदेव, आप हमारे उत्कर्ष और कल्याण के लिए अनेक देवताआें को पृथ्वी पर भेजिए ।’ उसके पश्‍चात विविध स्थानों पर देवताआें ने अपने-अपने स्थान बनाए । इसी क्रम में ज्ञान की देवी सरस्वती ने जो स्थान चुना, वह आज का कश्मीर है । इसीलिए कश्मीर का एक नाम ‘शारदादेश’ भी है ।

भारतीय संस्कृति को अपना माननेवाले हिन्दू प्रतिदिन शारदादेवी का श्‍लोक पढते हैं –

नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुरवासिनि ।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे ॥

अर्थ : हे कश्मीरवासिनी सरस्वती देवी, आपको मैं नमस्कार करता हूं । आपसे नित्य प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे विद्या प्रदान करें ।

कश्मीर का यह शारदापीठ अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है, क्या यह श्‍लोक पढनेवाले यह बात जानते हैं ? वहां हिन्दुआें के जाने पर पापस्थान (पाकिस्तान) सरकार का लगा प्रतिबंध, क्लेशदायक है ।

स्मरण रखिए, हम सरस्वती देवी अर्थात विद्या के उपासक हैं । हमें अपने शारदापीठ को पुनः भारतभूमि की सभी विद्याआें का मूल केंद्र बनाने के लिए अपना कर्तव्य निभाना है ।

३. कश्मीर में अधर्मियों के लिए स्थान नहीं !

३ अ. असुरों के विनाश हेतु कश्मीर की स्थापना करनेवाले कश्यप ऋषि !

कश्यप ऋषि के नाम पर इस भू-भाग का नाम ‘कश्मीर’ पडा । असुरों को नष्ट कर, सज्जनों को अभय देने के लिए उन्होंने कश्मीर की स्थापना की । सभ्य व विद्वान लोगों को यहां निवास करने के लिए निमंत्रण देकर कश्यप ऋषि ने यह प्रदेश बसाया है ।

३ आ. कश्मीरभूमि केवल शिवभक्तों की ! – भगवान श्रीकृष्ण 

महाभारत के युद्ध में सब राजाआें ने धर्मयुद्ध किया था । परंतु, कश्मीर के राजा गोकर्ण ने उस युद्ध में भाग नहीं लिया । तब श्रीकृष्ण नेे उस अधर्मी का वध किया और उसके स्थान पर उसकी पत्नी यशोमती का राज्याभिषेक किया । इस प्रकार, विश्‍व में पहली बार एक महिला को राज्य का शासक बनाया गया । उसका राज्याभिषेक करते समय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि कश्मीर की भूमि साक्षात पार्वती का रूप है । यहां केवल शिवतत्त्व को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नरत जनों को राज्य करने का अधिकार है । जो धर्मतत्व को प्राप्त करने हेतु प्रयत्न नहीं करता, उसे इस भूमि पर रहने का अधिकार नहीं है । कश्मीर में आजकल के अधर्मी अथवा असुर कौन हैं और शिवप्रेमी कौन हैं, बुद्धिवादियों को यह बात अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है !

४. कश्मीरी हिन्दुआें का अपनी भूमि से विस्थापित
होना, भारत के सभी हिन्दुआें के लिए संकट की चेतावनी !

४ अ. कश्मीरी हिन्दुआें का धर्म के लिए विलक्षण त्याग !

कश्मीर आज आतंकवादियों की कार्रवाईयों का क्षेत्र बना है । कश्मीर के वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक जीवन को देखें, तो ७० वर्ष तक स्वतंत्रता का उपभोग करनेवाले भारतीयों की दृष्टि से कश्मीर को आतंकवादियों का गढ बनने देना, भारत के माथे पर लगा एक बहुत बडा कलंक है ।

१९ जनवरी १९९० को संपूर्ण कश्मीर घाटी से हिन्दुआें को निकल जाने का आदेश दिया गया । समाचारपत्रों में इस प्रकार के विज्ञापन छपवाए गए । परिणामस्वरूप, वहां के हिन्दू समाज को कश्मीर छोडना पडा । वहां रहने के लिए उनके सामने तीन विकल्प रखे गए थे । पहला, धर्म बदलो; दूसरा, जिहाद में सम्मिलित हो जाओ और तीसरा, यहां से निकल जाओ । उन्होंने बहुत त्याग किया । अपना धर्म बचाने के लिए अपना घर, खेत, संगी-साथी, बचपन सब त्यागकर ये लोग देश के अन्य स्थानों में जाकर शरणार्थियों का जीवन जीने लगे ।

धर्म के लिए आज भी ऐसा विलक्षण त्याग करनेवाले हिन्दू अभी हैं, यह घटना अद्भुत और प्रेरणास्पद है । परंतु दूसरी दृष्टि से यह घटना हमारे लिए बडी क्लेशदायक है । अपनी ही जन्मभूमि से हमारे धर्मबंधुआें को पलायन करना पडा, इस बात से हमें दुःख होना चाहिए । जिस विश्‍व में ऐसी घटना हो, उसे हम सभ्य विश्‍व मानें अथवा असभ्य ? इतना बुरा समय हिन्दू राष्ट्र में भी हिन्दुआें पर क्यों आ रहा है?

४ आ. २३ वर्ष में कश्मीर हिन्दू-विहीन 

उस समय दिन दहाडे बडी संख्या में खुलकर अत्याचार होते थे और हम क्या करते रहे ? हम तक ये समाचार क्यों नहीं पहुंचे ? पहुंचे भी तो उनकी तीव्रता हम तक क्यों नहीं पहुंची ? इसका कारण एक ही था, जिन्हें इन घटनाआें की जानकारी थी, वे मौन नहीं । उन्होंने इन घटनाआें को देखकर भी, अनदेखा किया, सुनकर भी अनसुना किया और समझकर भी नासमझ बने रहे । वर्ष १९९० से आज भी देश उसका फल भुगत रहा है ।

४ इ. हिन्दू धर्म को जीवित रखने का दायित्व प्रकृति का नहीं

अनेक कश्मीरी हिन्दुआें ने मुझसे कहा, जब १९९० में यह घटना हुई, उससे पहले यदि मुझसे किसी ने कहा होता कि आपको २० वर्ष पश्‍चात यह सब छोडकर जाना पडेगा, तो मैंने उनकी बातों पर विश्‍वास नहीं किया होता । परंतु २० वर्ष पश्‍चात वह सच्चाई हमारी आंखों के सामने खडी थी । यदि हमने भी कुछ नहीं किया, तो कुछ वर्षों पश्‍चात यह स्थिति हमारी भी होगी, इस विषय में मेरे मन में कोई भी संदेह नहीं है । हम केवल अपना जीवन जीने में लगे रहेंगे और हिन्दू धर्म के लिए कुछ नहीं करेंगे, तो हिन्दू धर्म को जीवित रखने का कार्य प्रकृति नहीं करेगी । प्रकृति का नियम है कि जो अपनी जडें पक्की रखता है, वही टिकता है । जो ऐसा नहीं करता, उसे जीने का अधिकार नहीं है ।

५. हिन्दू धर्म, हिन्दू धर्मियों और राष्ट्र की रक्षा हेतु प्रतिज्ञा करो !

हमारे सामने खडा शत्रु शस्त्रसज्ज है । उसके पास आर्थिक बल है, प्रचारमाध्यम उसके पक्ष में हैं । इसलिए हमें थोडा-सा कार्य कर, संतुष्ट नहीं होना चाहिए । हमें सहस्रों हाथों से, सहस्रों मुखों से कार्य करना है । अभी यह कार्य करने का समय है । पूर्ण विचार और निश्‍चय के साथ हिन्दू धर्म, हिन्दू धर्मीयों और राष्ट्र की रक्षा करने हेतु प्रतिज्ञा करें !

कश्मीर की समस्या हो अथवा कश्मीरी हिन्दुआें का विस्थापन, हिन्दुआें की प्रत्येक सामाजिक, राष्ट्रीय और धार्मिक समस्या के निवारण का एकमात्र उपाय है, भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना !

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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