स्वभावदोष एवं अहं

अ. (बुरी) आदतों को छोडने के लिए ईश्वर के सामने ध्येय रखकर कृति करने का प्रयत्न करना ।

आ. अपना निरीक्षण जागृत रहना चाहिए, तभ ही स्वयं में अहं के पहलू एवं त्रुटियां ध्यान में आती हैं ।

. जो अपनी चूकें बताता है एवं मान्य करता है, वही ईश्वर को प्रिय है एवं ईश्वर उसी की रक्षा करते हैं ।

ई. ‘हम जो भी करते हैं, वह अपनी शुद्धि के लिए है’, यह ध्यान में रखें ।

– सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे

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