साधना में ध्येय साध्य करते समय पुनः-पुनः विफलता मिले, तो क्या करें ?

१. प्रथम स्तर ‘ध्येय मेें से जो कुछ थोडा-बहुत भी साध्य हुआ हो, उस संदर्भ में संतोष रखें तथा गुरु एवं ईश्‍वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें । २. दूसरा स्तर विफलता के पीछे के कारणों को ढूंढना चाहिए । शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक में से वास्तविक कारण क्या है, इसका चिंतन करें । उन … Read more

ईश्वरप्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य की लज्जाजनक उदासीनता !

‘धनप्राप्ति, विवाह, रोग-व्याधि इत्यादि अनेक कारणों के लिए अनेक लोग उपाय पूछते हैं; परंतु ईश्वर प्राप्ति के लिए उपाय पूछने का कोई विचार भी नहीं करता !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

संसार की सर्वश्रेष्ठ पदवी !

‘संसार के अनेक विषयों में अनेक पदवियां हैं। ‘डॉक्टरेट’ जैसी अनेक उच्च स्तर की पदवियां हैं; परंतु उनसे भी सर्वश्रेष्ठ पदवी है, ‘सच्चे गुरु’ का ‘सच्चा शिष्य’ !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

जीवन के आरंभिक काल से साधना करने का महत्त्व !

‘अनेक पति-पत्नी जीवन भर लडते-झगडते रहते हैं और आगे बुढापे में उन्हें समझ में आता है कि ‘ कष्ट का उपाय केवल साधना करना ही है ।’ उस समय ‘जीवनभर साधना क्यों नहीं की’ इसका पश्चाताप करने के अतिरिक्त उनके पास कोई विकल्प नहीं होता ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले,

धर्मकार्य हेतु ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करें ?

‘हमने ईश्वरप्राप्ति के लिए प्रयास किए, तो ईश्वर का ध्यान हमारी ओर आकर्षित होता है और हमारे द्वारा किए जा रहे धर्मकार्य के लिए ईश्वर की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त होते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

ईश्वरीय कानून एवं जमा खर्च का महत्त्व !

‘पृथ्वी के कानून और जमा-खर्च आदि सब व्यर्थ हैं । अंत में प्रत्येक को ईश्वरीय कानून एवं जमा-खर्च इत्यादि का सामना करना पडता है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

सीखने की वृत्ति के लाभ !

‘प्रत्येक चूक से कुछ सीख पाएं, तो चूक के कारण दुख नहीं होता। सीखने का आनंद मिलता है।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले,

‘युवावस्था में ही साधना करने का महत्त्व !’

‘वृद्ध होने पर ही वृद्धावस्था का अनुभव होता है तथा तब लगता है कि वृद्धावस्था देनेवाला पुनर्जन्म न मिले; परंतु तब तक साधना कर पुनर्जन्म टालने का समय बीत चुका होता है । ऐसा न हो, इसलिए युवावस्था से ही साधना करें ।’ -सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

भक्ति योग का महत्त्व !

‘ज्ञानयोग के अनुसार साधना करने पर वह प्रमुख रूप से बुद्धि से होती है । कर्मयोग के अनुसार साधना करने पर, वह शरीर और बुद्धि से होती है; जबकि भक्तियोग के अनुसार साधना करने पर, वह मन, बुद्धि और शरीर से होती है।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले