काल के अनुसार ‘उत्तम कर्म’ ही ‘उत्तम ध्यान’

आज के समय में ‘काल के अनुसार ‘उत्तम कर्म’ करना ‘उत्तम ध्यान’ है । केवल ध्यान से प्रगति नहीं होती; क्योंकि हममें ध्यान लगने योग्य सात्त्विकता नहीं होती । उसे उत्तम कर्म कर प्राप्त करना पडता है । उत्तम आचरण, उत्तम विचार तथा भगवान के उत्तम सान्निध्य के कारण देह सात्त्विक होने लगती है । … Read more

स्वयं को अज्ञानी माननेवाले ज्ञानवंत को ज्ञान कैसे प्राप्त होता हैं ?

स्वयं को अज्ञानी माननेवाले ज्ञानवंत को ही भगवान की कृपा से ज्ञान का कृपा प्रसाद मिलता है ! – श्रीचित्‌शक्‍ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२८.४.२०२०)

भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रखने से प्रारब्ध पर मात की जा सकती है ।

प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है । श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

जीवन कैसे सरल सुंदर बनता है ?

‘सामने आनेवाला प्रत्येक मनुष्य को उस पल के लिए भगवान ने ही हमारे सामने भेजा है’, ऐसा विचार कर उसके लिए जितना कर पाएं, करना चाहिए । इससे जीवन सरल सुंदर बनता है । श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

वैराग्य किसे कहते हैं ?

सेवा करते समय व्यक्ति की अपेक्षा तत्त्व की ओर ध्यान देना, ही वैराग्य है । व्यक्तिनिष्ठता का त्याग कर तत्त्वनिष्ठता का पालन करना, अर्थात् वैराग्य अपने में अंकित करना । प्रत्येक बात में ईश्वर को देखना, ही वास्तव में वैराग्य है ! श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

सत्संग का महत्त्व

तुम कितने भी दैवी हो, किंतु माया के कारण तुम पर आवरण आकर तुम को तुम्हारे मूल वंश का विस्मरण होता है । अतः निरंतर सत्संग में रहना महत्त्वपूर्ण है । अधिकांश छोटे बालक दैवी बालक होते हैं; किंतु सत्संग के अभाव के कारण उनका जीवन सफल नहीं हो सकता । जब शेर का बछडा … Read more