सत्ययुग में सभी आनंदी थे।

‘सत्ययुग में नियतकालिक, दूरचित्रवाहिनियां, जालस्थल आदि की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि बुरे समाचार नहीं होते थे और सभी ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में होने के कारण आनंदी थे।’
-(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

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