१२ वें शतक के अंत में जयवर्मन राजा (सांतवे) द्वारा मां के लिए निर्मित ता-फ्रोम् मंदिर !

बापून मंदिर में जाने के पश्चात हम थाम मंदिर के परिसर के पूर्व की ओर जगप्रसिद्ध ता-फ्रोम् मंदिर गए । ऐसा कहा जाता है कि १२ वें शतक के अंत में जयवर्मन राजा (सांतवे) ने अपनी मां के लिए इस मंदिर का निर्माण किया होगा । वैसे तो यह मंदिर बौद्ध राजविहार है ।

धन से नहीं, तो धन के त्याग से शांति प्राप्त होती है ! – पू. अशोक पात्रीकर

ईश्वरप्राप्ती के लिए साधना करते समय तन, मन तथा धन का त्याग करना आवश्यक है । हमें तन एवं मन का त्याग करना सहज रहता है; किन्तु धन का त्याग करना कठीन है । शांति धन से नहीं, तो धन के त्याग से प्राप्त होती है।

ब्रह्मांड में गंगा नदी की उत्पत्ति एवं भूलोक में उनका अवतरण

पुण्यसलिला गंगा की महिमा अपरंपार है ! भौगोलिक दृष्टि से गंगा नदी भारतवर्ष की हृदयरेखा है ! इतिहास की दृष्टि से प्राचीन काल से अर्वाचीनकाल तक तथा गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा की कथा हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति की अमृतगाथा है ।

कंबोडिया के ‘अंकोर थाम’ परिसर में बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रतीक स्वरूप निर्मित ‘बॅयान मंदिर’ !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ ।

धर्माचरण का महत्त्व

इस लेख से हम धर्माचरण का असाधारण महत्त्व समझने का प्रयत्न करेंगे । इसी प्रकार, धर्माचरण नहीं करने पर क्या होता है, धर्माचरण किन बातों पर आधारित है तथा खरा धर्माचरण क्या है, यह भी जानने का प्रयत्न करेंगे ।

संत ज्ञानेश्‍वर महाराजजी द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी के अनमोल ज्ञानमोती !

संत ज्ञानेश्‍वर महाराजजी द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी के कुछ अनमोल ज्ञानमोती इस लेख में प्रसिद्ध कर रहे हैं !

प्राचीन भारतीय ज्ञानपीठोंका गौरवशाली इतिहास !

विद्यापीठ’ का विचार सर्वप्रथम भारत ने ही जगत को दिया । आज वही भारत पश्‍चिमी मैकॉले की निरुपयोगी शिक्षापद्धति के चंगुल में जकडे हुआ है । यह देखकर, प्रत्येक भारतीय मन अस्वस्थ हो जाता है । प्राचीन भारतीय शिक्षापद्धति को वास्तविक अर्थों में गतवैभव प्राप्त करवाना हो, तो हिन्दू राष्ट्र का कोई विकल्प नहीं !

कंबोडिया के महेंद्र पर्वतपर उगम होनेवाली कुलेन नदी को तत्कालनी हिन्दू राजाआें द्वारा पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की जाना तथा प्रजा को गंगा नदी की भांति पवित्र जल मिले तथा भूमि उपजाऊ होने के लिए पानी में १ सहस्र शिवलिंग अंकित किए जाना

वास्तव में कंभोज प्रदेश कौंडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था । ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कंभोज देश के राजा ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । नागलोक होने के कारण यह एक शिवक्षेत्र भी है ।

दुष्टों के निर्दालन के लिए ब्राह्म तथा क्षात्र तेज का उत्तम उपयोग करनेवाले योद्धावतार भगवान परशुराम ! 

सत्ययुग में मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह तथा वामन ये श्रीविष्णु के ५ अवतार हुए । त्रेतायुग के प्रारंभ में महर्षि भृगु के गोत्र में जामदग्नेय कुल में महर्षि जमदग्नी तथा रेणुकामाता के घर श्रीविष्णु ने अपना छठा अवतार लिया ।

११ वे शतक में यशोधरपुरा के राजे उदयादित्यवर्मन (दूसरे) द्वारा निर्माणकार्य किया गया बापून मंदिर !

अंकोर थाम परिसर के बॅयान मंदिर से कुछ दूरी पर हमें पिरॅमिड के आकार में अब भग्न हुआ एक महान मंदिर दिखाई देता है । इसे ही बापून मंदिर कहा जाता है । ११ वे शतक के यशोधरपुरा के राजे उदयादित्यवर्मन (दूसरे) शिवभक्त थे ।