कंबोडिया के महेंद्र पर्वतपर उगम होनेवाली कुलेन नदी को तत्कालनी हिन्दू राजाआें द्वारा पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की जाना तथा प्रजा को गंगा नदी की भांति पवित्र जल मिले तथा भूमि उपजाऊ होने के लिए पानी में १ सहस्र शिवलिंग अंकित किए जाना

महाभारत में जिस भूभाग को कंभोज देश कहा गया है, वह है अभी का कंबोडिया देश ! यहां १५वीं शताब्दीतक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है कि वर्ष ८०२ से १४२१ की अवधि में यहां खमेर नामक हिन्दू साम्राज्य था । वास्तव में कंभोज प्रदेश कौंडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था । ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कंभोज देश के राजा ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । नागलोक होने के कारण यह एक शिवक्षेत्र भी है । यहां के महेंद्र पर्वतपर श्रीविष्णुजी का वाहन गरुड होने का बताया जाता है । अतः यह एक विष्णुक्षेत्र भी है । इस प्रकार हरिहर क्षेत्र कंभोज देश में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा उनके साथ ४ छात्र-साधकों द्वारा की गई अध्ययन यात्रा की कुछ क्षणिकाएं यहां दे रहे हैं ।

 

पहले छायाचित्र में शालुंका के साथ शिवलिंग, तो दूसरे छायाचित्र में अनेक शिवलिंग दिखाई दे रहे हैं ! हम इन शिवलिंगों का भावपूर्ण दर्शन करते हैं !

 

कुलेन नदी के जल को रोककर उसके नदीक्षेत्र में पत्थरोंपर अंकित शिवलिंग !

१. पहले कंभोजन देश की राजधानी का महेंद्र पर्वतपर होना, हिन्दू
राजाआें द्वारा स्थापित पर्वत पर स्थित नगर के अवशेष अब मिलना
तथा पर्वतपर उगम होनेवाली नदी को पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की जाना

कंभोज देश की उत्तर में महेंद्र पर्वत तथा उत्तर से दक्षिण की ओर बहनेवाली मेकांग नदी है, साथ में दक्षिण में समुद्र है । विशाल कंभोज देश की राजधानी महेंद्र पर्वतपर थी । हिन्दू राजाआें ने उस समय इस पर्वतपर जिस नगर की स्थापना की थी, उसके अवशेष अब मिल रहे हैं । इस पर्वत को अब स्थानीय भाषा में कुलेन पर्वत कहा जाता है । १० वीं शताब्दीतक यहां के हिन्दू राजा महेंद्र पर्वत से ही अपना राज्य चलाते थे । उस समय उन्होंने इस पर्वतपर उदित होनेवाली कुलेन नदी को पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की ।

२. कुलेन नदी को गंगा नदी की भांति पवित्र बनाने के लिए राजा जयवर्मन (दूसरा)
द्वारा नदी का पानी रोका जाना, कुछ मास में नदी में १ सहस्र से भी अधिक शिवलिंग, साथ ही शेषशायी
श्रीविष्णु तथा श्री महालक्ष्मी के शिल्प अंकित कर उसके पश्‍चात नदी के पानी को पुनर्प्रवाहित किया जाना

८वीं शताब्दी में राजा जयवर्मन (दूसरा) ने कुलेन नदी को गंगा नदी की भांति पवित्र बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं ?, ऐसा विचार कर योजना बनाई । उस समय उसके मन में यह विचार आया कि गंगानदी भगवान शिवजी की जटा से उदित होती है; इसलिए वह पवित्र है । उसके अनुसार कुलेन नदी यदि भगवान शिवजी के मस्तक से बही अर्थात इस नदी के जल को यदि भगवान शिवजी का स्पर्श हुआ, तो वह भी पवित्र बन जाएगी और केवल इतना ही नहीं, ,अपितु यह नदी जहांतक बहती जाएगी, तो वहां की भूमि भी उपजाऊ बनेगी । इसलिए राजा ने कुलेन नदी के पानी को रोका और उसके पश्‍चात उसने कुछ मासों की अवधि में कुलेन नदी में १ सहस्र से भी अधिक शिवलिंग अंकित किए, साथ ही शेषनागपर लेटे हुए श्रीविष्णुजी तथा उनके चरणों के पास बैठी श्री महालक्ष्मीदेवी के अनेक छोटे-छोटे शिल्प तथा एक बडा शिल्प अंकित किया । इस काम के पूर्ण होते ही राजा ने इस नदी के पानी को पुनर्प्रवाहित किया । ८वीं शताब्दी में अंकित इन शिवलिंगों का आज भी अस्तित्व है तथा सभी के लिए उनके दर्शन करना संभव है । नदी में, साथ ही नदी के बाजू से उत्तर की ओर २०० मीटरतक पैदल चलते जाने से यह शिल्प दिखाई पडते हैं । नदी का पानी जब धीमी गति से बहता है, तब यह दृश्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है ।

३. खमेर साम्राज्य के अधिकांश मंदिर तथा वास्तुआें के निर्माण
के लिए महेंद्र पर्वतपर मिलनेवाले खडक का उपयोग किया जाना

इतिहास विशेषज्ञों का यह मानना है कि महेंद्र पर्वत रेत के खडकों से बना पर्वत है । उसके कारण खमेर साम्राज्य में स्थित अधिकांश मंदिर तथा वास्तुआें के निर्माण में उपयोग किए गए रेत के खडक महेंंद्र पर्वत से लाए गए होंगे । महेंद्र पर्वतपर १ छोटा तथा १ बडा, ऐसे कुल मिलाकर २ प्रपात (झरने) हैं । पर्वत देखने आनेवाले अधिकांश पर्यटक तथा श्रद्धालु इन झरनों का भी अवलोकन करते हैं ।

– श्री. विनायक शानभाग, कंबोडिया

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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