युद्ध काल में सैनिकों की रक्षा के लिए देवताओं की उपासना से भारित धागे उपलब्ध करनेवाले कंबोडिया के राजा !

राष्ट्ररक्षा के लिए उस समय के राजा देवताओं की उपासना कर अपने सेना को तंत्र-मंत्र द्वारा आध्यात्मिक कवच प्रदान करते थे । वे राजा सेना और राष्ट्र की आध्यात्मिकदृष्टि से ध्यान रखते थे, यही इससे दिखाई देता है ।

कंबोडिया में एक समय पर अस्तित्व में होनेवाली हिन्दुओं की वैभवशाली संस्कृति के पतन का कारण और वर्तमान स्थिति !

७ वीं शताब्दी से लेकर १५ वीं शताब्दी तक जिन्होंने कंबोडिया पर राज्य किया, उस साम्राज्य को खमेर साम्राज्य कहते हैं । इस खमेर साम्राज्य के राजा स्वयं को चक्रवर्ती अर्थात ‘पृथ्वी के राजा’ समझते थे ।

मंदिर के निकट श्रीविष्णु की विशाल मूर्ति का लुटेरों द्वारा तोडा गया सिर दैवी संचार होनेवाले व्यक्ति के बताने पर पूर्ववत बनानेवाली कंबोडिया सरकार !

‘अंकोर वाट’ मंदिर के पश्चिम द्वार के मुख्य प्रवेशद्वार के ३ गोपुरों में से दाईं ओर के गोपुर में आज भी श्रीविष्णु की विशाल अष्टभुजा मूर्ति है ।

वर्तमान बौद्ध राष्ट्र होते हुए भी भगवान श्रीविष्णु पर श्रद्धा दर्शानेवाले महाभारत और रामायण की घटनाआें पर आधारित कंबोडिया का पारंपरिक ‘अप्सरा नृत्य’ !

कंबोडिया ‘बौद्ध’ राष्ट्र होते हुए भी वहां के लोगों की भगवान श्रीविष्णु और भगवान शिव पर श्रद्धा है । कंबोडिया के लोग मानते है कि भगवान श्रीविष्णु उनके रक्षक हैं । इससे यह ध्यान में आया कि उन्हें गरुड, वासुकी, समुद्रमंथन, सुमेरू पर्वत, रामायण, महाभारत आदि हिन्दू धर्म से संबंधित नाम और उनका महत्त्व उन्हें ज्ञात है ।

कंबोडिया के सीम रीप नगर में स्थित एशिया पारंपरिक वस्रों का संग्रहालय !

महाभारत में जिस भूभाग का उल्लेख कंभोज देश किया गया है, वह भूभाग है आज का कंबोडिया देश ! यहां १५वीं शताब्दीतक हिन्दू रहते थे । वर्ष ८०२ से लेकर १४२१ की अवधि में वहां खमेर नामक हिन्दू साम्राज्य था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था ।

कंबोडिया के ‘नोम देई’ गांव में भगवान शिव का ‘बंते सराई’ मंदिर !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ ।

कंबोडिया में समराई नामक समुदाय के लिए निर्मित भगवान शिवजी का बंते समराई मंदिर !

हिन्दू साम्राज्य खमेर के समय समराई नामक एक समुदाय था । यह समुदाय परिश्रम के काम करता था । इस समुदाय के लोग मंदिर, राजमहल, नगर की विविध वास्तूएं, सेतू आदि के निर्माण के लिए आवश्यक पत्थरों को महेंद्र पर्वत की तलहटी के पास जाकर लाते थे ।

१२ वें शतक के अंत में जयवर्मन राजा (सांतवे) द्वारा मां के लिए निर्मित ता-फ्रोम् मंदिर !

बापून मंदिर में जाने के पश्चात हम थाम मंदिर के परिसर के पूर्व की ओर जगप्रसिद्ध ता-फ्रोम् मंदिर गए । ऐसा कहा जाता है कि १२ वें शतक के अंत में जयवर्मन राजा (सांतवे) ने अपनी मां के लिए इस मंदिर का निर्माण किया होगा । वैसे तो यह मंदिर बौद्ध राजविहार है ।

कंबोडिया के ‘अंकोर थाम’ परिसर में बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रतीक स्वरूप निर्मित ‘बॅयान मंदिर’ !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ ।

कंबोडिया के महेंद्र पर्वतपर उगम होनेवाली कुलेन नदी को तत्कालनी हिन्दू राजाआें द्वारा पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की जाना तथा प्रजा को गंगा नदी की भांति पवित्र जल मिले तथा भूमि उपजाऊ होने के लिए पानी में १ सहस्र शिवलिंग अंकित किए जाना

वास्तव में कंभोज प्रदेश कौंडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था । ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कंभोज देश के राजा ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । नागलोक होने के कारण यह एक शिवक्षेत्र भी है ।