कंबोडिया के ‘अंकोर थाम’ परिसर में बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रतीक स्वरूप निर्मित ‘बॅयान मंदिर’ !

कंबोडिया के बॅयान मंदिर में युद्ध के प्रसंगों के खुदे शिल्प आज भी अस्तित्व में !

सद्गुरु (श्रीमति) अंजली गाडगीळ

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ । कंभोज देश ‘नागलोक’ था जिस कारण यह ‘शिवक्षेत्र’ है । यहां के महेंद्र पर्वत पर श्रीविष्णू का वाहन गरुड है, ऐसा बताया जाता है । इसलिए यह ‘विष्णुक्षेत्र’ भी है । इस प्रकार हरिहर क्षेत्र अर्थात कंभोज देश में महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमति) अंजली गाडगीळ और उनके साथ ४ साधक-विद्यार्थियों के अध्ययन दौरे की कुछ क्षणिकाएं यहां दे रहे हैं ।

१. जयवर्मन राजा (सांतवे) द्वारा हिंदुओं के मंदिर के पीछे ‘जयगिरी’ नगरी की स्थापना करना
और उसके मध्यभाग में बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रतीक स्वरूप ‘बॅयान मंदिर’ का निर्माण करना

‘हम २८ मार्च को ‘अंकोर वाट’ मंदिर के पीछे की ओर स्थित ‘अंकोर थाम’ मंदिर के परिसर में गए थे । ‘अंकोर थाम’ मंदिर छोटा होने पर भी उसका परिसर ‘अंकोर वाट’ मंदिर की अपेक्षा ९ गुना बड़ा है । जयवर्मन राजा (सांतवे) ने १२ वें शतक के अंत में इस मंदिर के निर्माण का कार्य आरंभ किया और १३ वें शतक के आरंभ में जयवर्मन राजा (आंठवे) ने उसे पूर्ण किया । जयवर्मन राजा (सांतवे) ने बौद्ध राजकुमारी से विवाह किया था । उसने ‘अंकोर वाट’ इस हिन्दू मंदिर के पीछे एक बड़ी नगरी की स्थापना कर उसे ‘जयगिरी’ नाम दिया । जयगिरीनगरी के मध्यभाग में राजा ने बौद्ध और हिन्दू धर्मों के प्रतीक स्वरूप एक मंदिर का निर्माण किया । उसे ‘बॅयान मंदिर’ संबोधित किया जाता है ।

२. ‘बॅयान’ का अर्थ ‘बोधि’ होता है और मंदिर में बुद्ध के ४९ चेहरे होना

मंदिर के ऊपर की ओर बुद्ध के चेहरेवाले पत्थर के बड़े शिल्प ! इनमें एक चेहरा गोलाकार में बताया है !

‘बॅयान’ अर्थात ‘बोधि’ । बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे ४९ वें दिन ज्ञानोदय हुआ । इसलिए इस मंदिर में बुद्ध के कुल ४९ चेहरे हैं । हमारे ‘गाईड’ ने बताया कि पहले बुद्ध के चेहरे में ३ प्रकार के चेहरे थे । मंदिर को ५ शिखर थे । उन सभी को बुद्ध के चेहरे थे । इसलिए ‘बुद्ध के कुल ५४ चेहरे थे’, ऐसा बताया जाता है । समुद्रमंथन के समय कुल ५४ देवता और ५४ असुर एक ही समय मंथन करते । ऐसा कहा जाता है कि उसके प्रतीक स्वरूप ‘यहां बुद्ध के ५४ चेहरे हो सकते हैं’ अथवा ‘बुद्ध ने (बोधीसत्त्व से) ५४ अवतार लिए’ थे । इसलिए उसका भी यह प्रतीक हो सकता है ।

३. मंदिर गोलाकार में है और मंदिर के ऊपर कि ओर बुद्ध के
चेहरेवाले पत्थर के बड़े शिल्प चारों दिशाओं को देख रहे हैं ऐसा प्रतीत होना

वर्तमान में यह मंदिर भग्नावस्था में होने के कारण उसे पत्थर से पुनः निर्मित किया गया है । हमारे ‘गाईड’ ने हमे बताया कि ‘मंदिर के भीतर दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा में दक्षिण ग्रंथालय और पूर्वोत्तर दिशा में उत्तर ग्रंथालय था’ । मंदिर के बाहर के प्रांगण में कुछ शिल्प खुदे हुए हैं । मंदिर में जाने पर मुख्य गर्भगृह कि ओर जाने के लिए कुछ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं । वहां एक शिव मंदिर है । संपूर्ण मंदिर गोलाकार में है । मंदिर के ऊपर कि ओर ‘बुद्ध के चेहरेवाले पत्थर के बड़े शिल्प चारों दिशाओं को देख रहे हैं’, ऐसा प्रतीत होता है । (छायाचित्र देखें) कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ‘बॅयान मंदिर’ का वास्तूशिल्प ‘श्रीयंत्र’ पर आधारित हो सकता है ।

४. युद्ध के समय सैनिकों की रक्षा के लिए देवताओं की उपासना
से भारित किए हुए धागे उन्हें उपलब्ध करवानेवाले कंबोडिया के राजा !

मंदिर की दीवारों पर युद्ध के प्रसंग खुदे हुए हैं । इस छायाचित्र में खमेर सैनिक और चंपा सैनिकों में हुए युद्ध के दृश्य खुदे हुए हैं ।

 

युद्ध के समय सैनिकों के शरीर पर तंत्र-मंत्र से भारित मोटे धागे छायाचित्र में दिखाई दे रहे हैं ! यह धागे अर्थात सैनिकों का सुरक्षाकवच है !

 

मंदिर के प्रवेशद्वार पर वासुकी और तक्षक नागों की मूर्तियां हैं । छायाचित्र में प्रवेशद्वार पर वासुकी नाग की प्रतिमा दिखाई दे रही है !

 बॅयान मंदिर के बाहर के प्रांगण में दीवार पर खमेर सैनिक
(कंबोडिया) और चंपा सैनिकों (विएतनाम) में हुए युद्ध के दृश्य खुदे होना

श्री. विनायक शानभाग

मंदिर के बाहर के प्रांगण में दीवारों पर अनेक शिल्प हैं । उनमें मुख्य प्रवेशद्वार के बाईं ओर और दाहिनी ओर युद्ध के दृश्य खुदे हैं । इसमें खमेर सैनिक (कंबोडिया) और चंपा सैनिकों (विएतनाम) में हुए युद्ध के दृश्य (छायाचित्र क्रमांक १ देखें) खमेर सैनिकों की सहायता के लिए आए चीनी सैनिक, ऐसे अनेक दृश्यों का समावेश है । इसमें सैनिकों की युद्ध के समय की वेशभूषा आश्‍चर्यकारक है । सैनिकों के शरीर पर तंत्र-मंत्र से भारित मोटे धागे बंधे हुए दिखाई देते हैं । यह धागे अर्थात सैनिकों का सुरक्षाकवच है । उनकी ऐसी श्रद्धा थी कि देवताओं की उपासना से भारित ऐसे धागे बांधने के कारण सैनिकों की रक्षा होती है । इससे यह ध्यान में आता है कि उस समय के सैनिकों ने प्रत्येक बात का आध्यात्मिक स्तर पर कितना विचार किया होगा । (छायाचित्र क्रमांक २ देखें) मंदिर के प्रवेशद्वार पर वासुकी और तक्षक नागों की मूर्तियां हैं । (छायाचित्र क्रमांक ३ देखें) और कहीं विष्णुवाहन गरुड भी दिखाई देते हैं । कुछ दीवारों पर रामायण और महाभारत के कुछ प्रसंगों के दृश्य के शिल्प भी दिखाई देते हैं ।

– श्री. विनायक शानभाग, कंबोडिया

राष्ट्ररक्षा के लिए कंबोडिया के तत्कालीन राजा का अपने सैनिकों को आध्यात्मिक कवच प्रदान
करना; परंतु यह बात भारत के अबतक के राजयकर्ताओं की ध्यान में न आना, यह लज्जास्पद है !

श्री. दिवाकर आगावणे

राष्ट्ररक्षा के लिए उस समय के राजा देवताओं की उपासना कर अपनि सेना को तंत्र-मंत्र द्वारा आध्यात्मिक कवच प्रदान करते थे । इससे यह दिखाई देता कई कि तब के राजा सेना और राष्ट्र का आध्यात्मिक दृष्टि से ध्यान रखते थे । स्वयं राजा ने और इस कारण प्रजा ने धर्माचरण करने से उनका राज्य तथा राज्य कि जनता आनंदी और संपन्न दिखाई देती है । सहस्त्रो वर्षों पूर्व भी उनके विचार कितने आध्यात्मिक थे और उनकी कृति कैसे अध्यात्म को जोडकर थी, यही दिखाई देता है । भारत के राजकीय नेताओं को यह बात निश्‍चित ही सीखने जैसी है । ईश्‍वरीय अधिष्ठान के बिना प्रजा और राष्ट्र की उन्नति असंभव है, इसका यह एक जगप्रसिद्ध उदाहरण है । अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसे धर्मविरोधी संगठनों के मुंह पर यह एक तमाचा है ।

– श्री. दिवाकर आगावणे, कंबोडिया

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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