अरेयूरु (कर्नाटक) के श्री वैद्यनाथेश्वर शिव के दर्शन लेने के उपरांत श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को हुई अनुभूतियां !

आपातकाल आरंभ होने से साधकों को वैद्यनाथ शिवजी का आशीर्वाद आवश्यक है; इसलिए सप्तर्षियों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को गुरुपूर्णिमा के दिन श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर भेजा है’, ऐसा मुझे लगा ।

मानसरोवर का महत्त्व

प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त पर सप्तर्षि और देवता ज्योति के रूप में मानसरोवर में स्नान करने हेतु आते हैं और सूर्योदय से पूर्व ये ज्योतियां कैलास पर्वत की ओर शिवजी के दर्शन करने चली जाती हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से हम सबको इन दिव्य ज्योतियों के रात २.३० से तडके ५ बजे तक दर्शन हुए । यह सब गुरुदेवजी की कृपा है ।

धायरी, पुणे के स्वयंभू देवस्थान श्री धारेश्‍वर !

धायरी गांव में स्थित धारेश्वरजी का मंदिर के दर्शन का अनुपम आनंद है । गर्भगृह में स्वयंभू प्रसन्न शिवलिंग को देखते ही हाथ अपनेआप जुड जाते हैं । चैत्र वद्य चतुर्थी को श्री धारेश्वर में बडा मेला लगता है ।

कोकण की काशी : श्री देव कुणकेश्‍वर

सिंधुदुर्ग जिले के देवगड तालुका में श्रीक्षेत्र कुणकेश्वर को कोकण की काशी संबोधित करते हैं । काशी में १०८ शिवलिंग हैं, तो कुणकेश्वर में १०७ शिवलिंग हैं । कोकण के अन्य प्रसिद्ध भगवान शंकर के स्थानों में इसकी गणना होती है ।

शिव-पार्वती, ३३ करोड देवी-देवता, सप्तर्षि और कामधेनु के वास्तव्य से पावन जम्मू  की ‘शिवखोरी’ गुफा  !

भगवान शिव कैलास छोडकर कभी कहीं नहीं जाते हैं । इस अवसर पर कैलास छोडकर शिवजी को पार्वती और नंदी के साथ एक गुफा में रहने जाना पडा । वह गुफा है शिवखोरी की गुफा ।

श्रीलंका के पंच ईश्‍वर मंदिरों में से केतीश्‍वरम मंदिर !

श्रीलंका के पंचशिव क्षेत्रों में ‘केतीशवरम’ विख्यात है । यह उत्तर श्रीलंका के मन्नार जनपद के मन्नार नगर से १० कि. मी. की दूरी पर है ।

श्रीलंका के हिन्दुओं के सबसे बडे मुन्नीश्‍वरम मंदिर का शिवलिंग एवं मानावरी में बालु से बना शिवलिंग !

मुन्नीश्वरम ग्राम श्रीलंका के पुत्तलम जनपद में है । तमिल में ‘मुन्न’ अर्थात ‘आदि’, तथा ‘ईश्वर’ अर्थात ‘शिव’ ।

ओतूर (पुणे) के श्री कपार्दिकेश्‍वर मंदिर के मेले की विशेषता !

ओतूर में श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है । इस दिन सुबह गांव के सभी घरों से चावल इकट्ठा कर उसे ओतूर की मांडवी नदी में धो लिया जाता है और मंदिर के गर्भगृह में उस चावल से ५ घडों का पिंड बनाया जाता है ।

गुजरात के सारंगपुर के कष्टभंजन मंदिर, वेरावल का भालका तीर्थ एवं सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग के करें दर्शन !

गुजरात के स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरु स्वामी गोपालानंद सारंगपुर जब गांव में आए थे, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि उस क्षेत्र में अनेक वर्षों से वर्षा होने से यह क्षेत्र वीरान हो गया है । तब उन्होंने हनुमानजी से प्रार्थना की और उनकी प्रेरणा से वहां हनुमानजी की स्थापना की । हनुमानजी के कारण संकट दूर होने से उस मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर नाम पडा ।