गुरु के विविध प्रकारानुसार परम पूज्य डॉक्टरजी में दिखे विविध रूप !

प.पू. डॉक्टरजी द्वारा लिखित गुरुकृपायोगानुसार साधना, इस ग्रंथ में गुरु के विविध प्रकार प्रतिपादित किए हैं । भाव रखकर पढनेका प्रयत्न करने पर ध्यान में आता है कि, ग्रंथ में वर्णित गुरु के सर्व रूप प.पू. डॉक्टरजी में समाहित हैं । आगे दिए अनुसार यह विषय शब्दबद्ध करने का प्रयत्न इस लेख में किया है ।

स्व-भाषारक्षाके कार्य और उसके अलौकिक पहलुआेंके विषयमें शोध !

मराठी और हिन्दी भाषाआेंमें घुसे हुए अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि विदेशी भाषाके शब्दोंका प्रयोग न कर, स्वभाषाके संस्कृतनिष्ठ पर्यायी शब्दोंका उपयोग किया जाए, इसके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीने वीर सावरकरके पश्‍चात खण्डित हुआ भाषाशुद्धि अभियान पुनः आरम्भ किया ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवले इनका सूक्ष्म ज्ञान-सम्बन्धी कार्य

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वर्ष १९८२ से सूक्ष्म ज्ञानसम्बन्धी अध्ययन कर रहे हैं । उन्हें १५.७.१९८२ से, अर्थात साधना आरम्भ करनेके पहलेसे ही सूक्ष्मज्ञान अवगत होने लगा ।

आध्यात्मिक संग्रहालयके लिए आध्यात्मिक महत्त्वकी वस्तुआेंका संरक्षण कार्य !

अनेक प्रकारकी आध्यात्मिक महत्त्वकी वस्तुआेंका संरक्षण कर, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी आध्यात्मिक विश्‍वके इतिहासमें एक नया अध्याय ही लिख रहे हैं ।

विविध कलाओंके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें शोध

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सनातनके साधक-कलाकार अपनी-अपनी कलाके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें सूक्ष्म-स्तरीय अध्ययन और शोध कर रहे हैं ।

आध्यात्मिक उपचारोंकी अभिनव पद्धतियों के जनक !

देवताकी सात्त्विक नामजप-पट्टीसे उस देवताकी शक्ति प्रक्षेपित होती है । इस शक्तिसे आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।

सनातन पंचांग, संस्कार-बही और सनातन के सात्त्विक उत्पाद

समाज को धर्मशिक्षा मिले, समाज साधना करे, समाज में धर्म और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के विषय में जागृति हो आदि उद्देश्य सामने रखकर परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने वर्ष २००६ से वार्षिक सनातन पंचांग प्रकाशित करना आरम्भ किया । वर्ष २००६ से संस्कार-बही का उत्पादन आरम्भ हुआ है ।

धर्मशिक्षा देनेवाली और साधना-सम्बन्धी मार्गदर्शन करनेवाली श्रव्य चक्रिकाआें (ऑडिओ सीडी), दृश्य-श्रव्य चक्रिकाआें (वीसीडी) का निर्माण

परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में साधना, अध्यात्म-सम्बन्धी शंकासमाधान, देवताआें के नामजप की उचित पद्धति और उपासनाशास्त्र (३ भाग), आरती, क्षात्रगीत आदि विषयोंपर श्रव्य-चक्रिकाआें का निर्माण किया गया है ।

ग्रन्थ-निर्मिति का कार्य

अप्रैल २०१७ तक सनातन के २९९ ग्रन्थ-लघुग्रन्थों की १५ भाषाआें में ६८ लाख ५१ सहस्र से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित ग्रन्थों की कुछ अद्वितीय विशेषताएं देखते है ।

साधकोंकी आध्यात्मिक उन्नतिकी दृष्टिसे किया गया कार्य

शीघ्र गुरुप्राप्ति हो और गुरुकृपा निरन्तर होती रहे इसलिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने गुरुकृपायोग नामक सरल साधनामार्ग बताया है । साधकों की साधना की ओर व्यक्तिगत ध्यान देने हेतु व्यष्टि साधना और समष्टि साधना का ब्यौरा देने की पद्धति निर्माण की । साधना की दृष्टि से १४ विद्या एवं ६४ कलाआें की शिक्षा का बीजारोपण किया ।