स्व-भाषारक्षाके कार्य और उसके अलौकिक पहलुआेंके विषयमें शोध !

स्व-भाषाभिमानके बिना राष्ट्र और धर्म के कार्य नहीं हो सकते यह ज्ञात होनेपर, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने स्व-भाषाभिमान और स्व-भाषारक्षाका महत्त्व बतानेवाली ग्रन्थमालाका संकलन किया । उन्होंने, स्वभाषारक्षा ग्रन्थमालामें विदेशी भाषाआेंकी अपेक्षा मराठी, हिन्दी और देवभाषा संस्कृत को आध्यात्मिक दृष्टिसे श्रेष्ठ बताया है ।

 

१.परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीका भाषाशुद्धि अभियान

मराठी और हिन्दी भाषाआेंमें घुसे हुए अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि विदेशी भाषाके शब्दोंका प्रयोग न कर, स्वभाषाके संस्कृतनिष्ठ पर्यायी शब्दोंका उपयोग किया जाए, इसके लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजीने वीर सावरकरके पश्‍चात खण्डित हुआ भाषाशुद्धि अभियान पुनः आरम्भ किया । उन्होंने स्व-भाषा शुद्धीकरण आन्दोलन आरम्भ करनेके साथ-साथ, नगरों (शहरों), भवनों आदि के नाम विदेशी आक्रमणकारियोंके नामपर न रखे जाएं, इसके लिए भी जनजागृति आरम्भ की । हस्ताक्षर अपनी भाषामें करें, दुकानोंके नामकी पट्टियां स्वभाषामें बनवाएं आदि विषयों में भी प्रबोधन आरम्भ किया ।

 

२.परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के भाषा-सम्बन्धी अलौकिक अंगोंके विषयमें शोध

१. परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें संस्कृतसे उपजी भारतीय भाषाआेंका और विदेशी अंग्रेजी भाषाका व्यक्ति, पक्षी, प्राणी आदि पर पडनेवाले प्रभाव तथा संस्कृत भाषासे होनेवाले आध्यात्मिक उपचार आदि भाषाके अलौकिक पहलुआेंपर शोध आरम्भ किया गया ।

२. परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें अंग्रेजी अक्षरोंकी तुलनामें देवनागरी (संस्कृत, हिन्दी एवं मराठी) अक्षर सात्त्विक हैं यह दर्शानेवाला वैज्ञानिक परीक्षण, पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी) प्रणालीकी सहायतासे किया गया ।

सन्दर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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