विविध कलाओंके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें शोध

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सनातनके साधक-कलाकार अपनी-अपनी कलाके सात्त्विक प्रस्तुतीकरणके सन्दर्भमें सूक्ष्म-स्तरीय अध्ययन और शोध कर रहे हैं । इस शोधके अनुसार चित्रकला, मूर्तिकला आदि कलाक्षेत्रके साधक-कलाकार सात्त्विक कलाकृतियां भी बना रहे हैं ।

चित्रकला और मूर्तिकला

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें बनाए गए देवताओंके चित्रोंमें २७ से २९.२ प्रतिशत तथा गणेशमूर्तिमें २८.३ प्रतिशत सम्बन्धित देवताका तत्त्व आया है । (कलियुगमें देवताके चित्र अथवा मूर्ति में अधिकाधिक ३० प्रतिशततक सम्बन्धित देवताका तत्त्व आ सकता है । वर्तमानमें (मार्च २०१७) परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें मारक तत्त्वयुक्त श्री दुर्गादेवीकी मूर्ति बनाई जा रही है ।
(श्री गणेशमूर्तिके सम्बन्धमें विस्तृत विवेचन लघुग्रन्थ श्री गणेशमूर्ति धर्मशास्त्रानुसार हो ! में किया है ।)

 

अक्षर और अंकोंका लेखन

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें बनाए गए देवनागरी अक्षरों और अंकों में ३१ प्रतिशत सात्त्विकता है । (कलियुगमें अक्षर अथवा अंकोंमें अधिकतम ३० प्रतिशत सात्त्विकता आ सकती है ।) बालक अक्षर और अंक उचित ढंगसे लिख सकें, इसलिए सनातनने सात्त्विक देवनागरी अक्षर और अंक लिखनेकी पद्धति, यह ग्रन्थ प्रकाशित किया है ।

 

सात्त्विक रंगोलियां

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सनातनकी साधिकाओंने विविध देवताओंके तत्त्व और आनन्द, शान्ति आदि स्पन्दन आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली अनेक कलाकृतियां बनाई हैं । ये कलाकृतियां सात्त्विक रंगोलियां (२ भाग), इस ग्रन्थमें प्रकाशित की गई हैं । इन रंगोलियोंमें लगभग ३ से ४ प्रतिशत देवताका तत्त्व और स्पन्दन आए हैं तथा श्री गणेशजीकी एक रंगोली में १० प्रतिशत गणेशतत्त्व आया है । रंगोलियोंमें अधिक से अधिक १० प्रतिशत देवतातत्त्व और स्पन्दन लाए जा सकते हैं । रंगोलियां बनानेवाले साधकका भाव और आध्यात्मिक स्तर जैसे-जैसे बढता है, वैसे-वैसे यह मात्रा बढती जाती है ।

 

सात्त्विक मेहंदी

परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सनातनकी साधिकाओंने विविध देवताओंके न्यूनतम २ प्रतिशत तत्त्वसे युक्त मेहंदीकी कलाकृतियां बनाई है । (कलियुगमें मेहंदीकी कलाकृतिमें अधिकसे अधिक ५ प्रतिशत देवतातत्त्व आ सकता है ।) इस सम्बन्धमें अधिक विवेचन मेंहदीकी सात्त्विक कलाकृतियोंके प्रकार और सात्त्विक मेहंदी ग्रन्थमें किया है ।

 

संगीत और नृत्यकला

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीने विविध देवताओंके नामजपोंके साथ उस देवताका तत्त्व और भाव जागृत करनेवाली लय जोडी है तथा क्षात्रगीतोंमें क्षात्रवृत्ति जागृत करनेवाली लय जोडी है । [इसका विस्तृत विवेचन देवताओंका नामजप और उपासनाशास्त्र (३ भाग) और क्षात्रगीत इन श्रव्य-चक्रिकाओंमें (ऑडियो सीडीमें) किया है ।]

अभी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टके कारण होनेवाले विकारोंपर संगीतसे उपचार करने तथा अक्षरोंके उचित उच्चारणके सम्बन्धमें शोध चल रहा है । नृत्यकी विविध शारीरिक स्थितियों और मुद्राके सम्बन्धमें भी आध्यात्मिक शोध चल रहा है ।

 

ज्योतिषशास्त्रके विविध प्रकारोंसे आध्यात्मिक शोध

फलज्योतिषशास्त्र

इसमें उच्च लोकोंसे पृथ्वीपर जन्मे जीव, सनातनके सन्त, आध्यात्मिक कष्टसे पीडित व्यक्ति आदि की जन्मकुण्डली देखकर उनके जीवनमें आनेवाले विशेष योगका अध्ययन करना, देशभरमें होनेवाली विविध आध्यात्मिक घटनाओंका ज्योतिषशास्त्रीय विश्‍लेषण आदि शोधकार्य चल रहे हैं ।

हस्तसामुद्रिक और पादसामुद्रिक शास्त्र

हस्तसामुद्रिक शास्त्रमें हथेली तथा पादसामुद्रिक शास्त्रमें पैरके तलवोंकी रेखाएं, उभार और अन्य चिन्होंका अध्ययन किया जाता है । इन शास्त्रोंद्वारा साधक, सन्त आदि की रेखाओं और चिन्हों में कालानुसार होनेवाले परिवर्तन आदि के सम्बन्धमें शोध चल रहा है ।

नाडीज्योतिषशास्त्र

शिव-पार्वतीके मध्य अखिल मानवजातिके सन्दर्भमें हुआ संवाद सप्तर्षि और महर्षि ने सुना । उन्होंने वह संवाद मानवजातिके कल्याण और जीवोंकी शीघ्र आध्यात्मिक उन्नतिके लिए लिखकर रखा । नाडीपट्टियोंपर (विशिष्ट पट्टियोंपर) लिखा हुआ यह भविष्य नाडीज्योतिषशास्त्र कहलाता है । दो भिन्न नाडीपट्टियोंमें लिखे एक ही व्यक्तिके भविष्यका तुलनात्मक अध्ययन, नाडीभविष्यमें बताए आध्यात्मिक उपचारोंके लाभ आदि के सम्बन्धमें परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें शोध किया जा रहा है ।

 

प्राणी और वनस्पतियों का सात्त्विकताकी दृष्टिसे अध्ययन

मुर्गा, गाय, घोडा आदि प्राणी तथा तुलसी, कुरुक्षेत्र स्थित अक्षयवट, शुक्रताल (उत्तरप्रदेश) स्थित वटवृक्ष, भालकातीर्थ (सौराष्ट्र, गुजरात) स्थित पीपल और देहू (महाराष्ट्र) स्थित नांदुरकी आदि वृक्षोंका सात्त्विकताकी दृष्टिसे आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणोंद्वारा अध्ययन किया जा रहा है ।

 

पृथ्वीपर जन्मे दैवी बालकोंकी पहचान और उनके सम्बन्धमें शोध

वर्ष २०२३ में स्थापित होनेवाले हिन्दू राष्ट्रके (सनातन धर्म राज्य) संचालनके लिए ईश्‍वरने उच्च लोक के अनेक जीवोंको पृथ्वीपर जन्म दिया है । मार्च २०१७ तक महर्लोकके ९५ जीव तथा उच्च स्वर्गलोकके ४६९ जीव सनातन परिवारमें जन्मे हैं तथा परात्पर गुरु डॉक्टरजीने उन्हें दैवी बालक घोषित किया है । ऐसे बालकोंके विशिष्ट आयुमें आध्यात्मिक स्तरके प्रगल्भ विचार और आचरण सबको पता चले, इसके लिए उन्होंने उनमेंसे कुछ बालकोंके लघु चलचित्र (वीडियोे) बनाए हैं । ये लघु चलचित्र www.youtube.com/balsanskar इस मार्गिका पर दैवी बालक (Divine Children) नामक प्लेलिस्ट (Playlist) में उपलब्ध हैं ।

अभी बालककी गुण-विशेषताओंके आधारपर वह बालक किस उच्च लोकसे पृथ्वी पर जन्मा है ? उचित मार्गदर्शन मिलनेपर वह किस आयुमें सन्त बन सकता है ?, इस सम्बन्धमें शोध चल रहा है ।

सन्दर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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