परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के देह से बचपन में प्रक्षेपित होनेवाली चैतन्य की अनुभूति

पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, इस उक्ति के अनुसार अवतारी देह में से बचपन से ही चैतन्य का प्रक्षेपण हो रहा है ।