आध्यात्मिक उपचारोंकी अभिनव पद्धतियों के जनक !

आध्यात्मिक उपचारोंकी अभिनव पद्धतियोंकी खोज

१. देवताआेंकी सात्त्विक नामजप-पट्टियोंके उपचार

देवताकी सात्त्विक नामजप-पट्टीसे उस देवताकी शक्ति प्रक्षेपित होती है । इस शक्तिसे आध्यात्मिक उपचार होते हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजीने नामजप-पट्टियोंके उपयोगके सन्दर्भमें विभिन्न प्रयोग किए तथा नामजप-पट्टियोंकी सहायतासे आध्यात्मिक कष्ट दूर करनेकी निम्नांकित पद्धतियां खोजीं ।

अ. अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंसे सुरक्षित रहनेके लिए रातको सोनेसे पूर्व अपने चारों ओर नामजप-पट्टियोंका मंडल बनाना (अधिक विवेचन हेतु पढें ग्रन्थ शान्त निद्राके लिए क्या करें ?)

आ. वास्तुशुद्धिके लिए वास्तुमें नामजप-पट्टियोंकी छत बनाना

इ. वाहनशुद्धिके लिए दोपहिया वाहनके आगे और पीछे नामजप-पट्टियां लगाना तथा चारपहिया वाहनमें चारों ओर तथा छतपर नामजप-पट्टियां लगाकर कवच बनाना
(सनातनके स्थानीय वितरकोंके पास वास्तुशुद्धि और वाहनशुद्धि के लिए आवश्यक नामजप-पट्टियोंका संच तथा लगानेकी पद्धतिसे सम्बन्धित पत्रक उपलब्ध है ।)

२. कुण्डलिनीचक्रोंपर देवताआें के सात्त्विक चित्र अथवा नामजप-पट्टियां लगाना

ब्रह्माण्डमें स्थित प्राणशक्ति मनुष्यकी देहमें कुण्डलिनीचक्रके माध्यमसे प्रक्षेपित होती है । किसी व्यक्तिके कुण्डलिनीचक्रकी प्राणशक्तिके प्रक्षेपणमें अवरोध उत्पन्न हो जाए, तो उस कुण्डलिनीचक्रसे सम्बन्धित अवयवमें विकार उत्पन्न होता है । इसलिए कुण्डलिनीचक्रोंपर उपचार करनेसे व्यक्तिका कष्ट शीघ्र घटनेमें सहायता मिलती है । कुण्डलिनीचक्रोंपर देवताआेंके सात्त्विक चित्र अथवा नामजप-पट्टियां लगानेसे उपचार होते हैं, इसकी खोज परात्पर गुरु डॉक्टरजीने की ।

३. सात्त्विक गणेशमूर्ति की परिक्रमा

सनातन-निर्मित सात्त्विक गणेशमूर्तिकी परिक्रमा (प्रदक्षिणा) करना

४. संतो के वास्तु अथवा कक्षमें बैठकर नामजप करना

सन्तोंने जिस वास्तु अथवा कक्षमें अधिक समयतक निवास किया है, उसमें बैठकर नामजप आदि उपचार करना

 ५. सन्तोंद्वारा उपयोग की गई वस्तुआेंका उपयोग

आध्यात्मिक उपचारोंके लिए सन्तोंद्वारा लम्बे समयतक उपयोग की गई वस्तुआेंका उपयोग करना

६. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के नेत्रों के छायाचित्र तथा उनके कक्ष के कपाटों के छायाचित्रोंका उपयोग

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके नेत्रोंके छायाचित्र तथा उनके कक्षके कपाटोंके छायाचित्रोंका उपयोग उपचारोंके लिए करना

७. पंचतत्त्वोंके अनुसार उपचार

मानव शरीर पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश, इन पंचतत्त्वोंसे (महाभूतोंसे) बना है । विशिष्ट तत्त्वके (महाभूतके)स्तरपर उपचार करनेसे उस तत्त्वसे सम्बन्धित कष्ट दूर होनेमें सहायता मिलती है। पंचतत्त्वोंके स्तरपर उपचारोंके सम्बन्धमें परात्पर गुरु डॉक्टरजीने आगे दिए अनुसार विविध प्रयोग किए ।

७ अ. पृथ्वीतत्त्वके उपचार

माथेपर सात्त्विक कुमकुम लगाना, इत्रकी सुगन्ध लेना इत्यादि

७ आ. आपतत्त्वके उपचार

तीर्थ प्राशन करना, साबुत नमकके जलमें १५ मिनट दोनों पैर डुबोकर रखना इत्यादि

७ इ. तेजतत्त्वके उपचार

विभूति लगाना, घीके दीपककी ज्योतिको कुछ समय एकटक देखना इत्यादि

७ ई. वायुतत्त्वके उपचार

सात्त्विक वस्तुसे (उदा. मोरपंखसे) व्यक्तिपर आया कष्टदायक आवरण हटाना इत्यादि

७ उ. आकाशतत्त्वके उपचार

७ उ १. निरभ्र आकाशकी ओर देखना, निरभ्र आकाशके नीचे बैठकर नामजप आदि उपचार करना

७ उ २. प.पू. भक्तराज महाराज अथवा अन्य सन्तोंकी वाणीमें भजन सुनना

७ उ ३. रिक्त गत्तेके बक्सोंसे उपचार करना : सूत्र ११ उ २ देखें ।

 

विकार-निर्मूलन हेतु उपयुक्त उपचार-पद्धतियोंकी खोज

१. स्पर्शरहित बिन्दुदाब (एक्यूप्रेशर)

शारीरिक और मानसिक विकार दूर करनेके लिए शरीरपर दबाव डालकर बिन्दुदाब करनेकी पद्धति प्रचलित है । वर्ष २००७ में परात्पर गुरु डॉक्टरजीने आध्यात्मिक कष्टोंपर उपयुक्त सिद्ध होनेवाली स्पर्शरहित बिन्दुदाब (एक्यूप्रेशर) पद्धतिकी खोज की । (इस सम्बन्धमें विवेचन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टोंके निवारण हेतु बिन्दुदाब ग्रन्थमें किया है ।)

२. रिक्त गत्तेके बक्सोंसे उपचार

खाली गत्तेके बक्सोंमें रिक्ति होती है तथा रिक्तिमें आकाशतत्त्व होता है । परात्पर गुरु डॉक्टरजीने गत्तेके बक्सोंमें स्थित आकाशतत्त्वसे होनेवाले आध्यात्मिक उपचारोंके सन्दर्भमें स्वयं प्रयोग किए और साधकोंसे भी प्रयोग करवा लिए । इस शोधके आधारपर उन्होंने रिक्त गत्तेके बक्सोंसे उपचारकी पद्धतिका शोध किया । (इस सम्बन्धमें विस्तृत विवेचन ग्रन्थ विकार-निर्मूलन हेतु रिक्त गत्तेके बक्सोंसे उपचार (२ भाग) में किया है ।)

३. नामजप-उपचार

विविध प्रकारके नामजप करनेसे विविध प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होनेमें सहायता मिलती है । इस सन्दर्भमें परात्पर गुरु डॉक्टरजीने अनेक प्रयोग किए तथा आगे दी बातें खोज निकालीं

३ अ. नामजपकी प्रयोग-पद्धति

उच्च देवताआेंके नामजपोंका प्रयोग कर उनमेंसे अपने कष्ट दूर करनेके लिए आवश्यक नामजप ढूंढना

३ आ. उपचारोंके लिए उपयुक्त नामजप

निर्गुणवाचक शब्द – शून्य, महाशून्य, निर्गुण और ॐ के जप; ० से ९ तक के अंकोंके जप और पंचमहाभूतोंके जप (उदा. श्री वायुदेवताय नमः)

३ इ. नामजपकी प्रभावकारिता बढानेवाली पद्धतियां

नामजपके प्रारम्भ और / अथवा अन्तमें १ अथवा २ ॐ लगाना, बारी-बारीसे नामजप करना (पहले एक नामका तत्पश्‍चात दूसरे नामका, तत्पश्‍चात पुनः पहले नामका इस पद्धतिसे नामजप करना)
(इस सम्बन्धमें विस्तृत विवेचन विकार-निर्मूलन हेतु नामजप (३ भाग) इस ग्रन्थमें किया है ।)

४. प्राणशक्ति प्रणालीके उपचार

मानवकी स्थूलदेहमें रक्तसंचार, श्‍वसन, पाचन, तन्त्रिका इत्यादि विविध तन्त्र कार्यरत होते हैं । उन्हें कार्य करनेके लिए जिस शक्तिकी आवश्यकता होती है, वह शक्ति प्राणशक्ति प्रणाली उपलब्ध कराती है । इसमें किसी स्थानपर अवरोध उत्पन्न होनेसे सम्बन्धित शरीर तन्त्रकी (अथवा इन्द्रियकी) कार्यक्षमता अल्प होती है और विकार उत्पन्न होते हैं । प्राणशक्ति प्रणालीमें उत्पन्न अवरोध ढूंढने तथा दूर करनेके लिए किए जानेवाले नामजप, मुद्रा और न्यास इत्यादि के सम्बन्धमें परात्पर गुरु डॉक्टरजीने स्वयं अपनेआपपर विविध प्रयोग किए और उपचार-पद्धतियोंके परिणामोंको अनुभव किया । इस खोजसे प्राणशक्ति प्रणालीकी उपचार-पद्धतिका उदय हुआ । इस उपचार-पद्धतिका उपयोग कर आज सनातनके अनेक साधक स्वयं अपनेआपपर उपचार करनेमें सक्षम बने हैं ।

रोगी कितना भी दूर हो, भले ही दूसरे देशमें हो, तब भी उच्च आध्यात्मिक स्तरका साधक अथवा दूसरेका कष्ट दूर होनेमें सहायता करनेकी इच्छा अर्थात समष्टिभाव रखनेवाला साधक, उस रोगीके लिए उपचार खोज सकता है । अर्थात उसे नामजप, मुद्रा और न्यास बता सकता है । ऐसा साधक अपने शरीरपर उपचार करे, तो रोगीपर भी उपचार हो सकते हैं । इस सन्दर्भमें भी परात्पर गुरु डॉक्टरजीने स्वयं अनेक प्रयोग किए हैं और इस पद्धतिकी सफलता ध्यानमें आनेपर साधकोंको भी यह पद्धति सिखाई ।

रोगी मन्त्रोपचार, रिक्त गत्तेके बक्सोंसे उपचार, आयुर्वेदिक औषधोपचार जैसी किसी भी उपचार-पद्धतिसे उपचार कर रहा हो; प्राणशक्ति प्रणालीसे खोजे उपचारोंसे उसे लाभ होता है ।
(इस सम्बन्धमें विस्तृत विवेचन प्राणशक्ति (चेतना) प्रणालीमें अवरोधोंके कारण होनेवाले विकारोंपर उपचार (२ भाग) ग्रन्थमें किया है ।)

आगामी भीषण आपातकालमें मानवको जीवित रहनेके लिए भी संघर्ष करना होगा । यह पहलेसे ही जानकर त्रिकालदर्शी परात्पर गुरु डॉक्टरजीने अपने लिए और अन्योंके लिए आध्यात्मिक स्तरके उपचार खोजनेका मार्ग सिखाकर मानवको आपातकालकी दृष्टिसे स्वावलम्बी बनाया है ।

 

अनिष्ट शक्तियोंके कारण हुए
कष्टदायक परिवर्तनोंके सम्बन्धमें तथा
अच्छी शक्तियोंके कारण हुए दैवी परिवर्तनोंके सम्बन्धमें शोध

सनातनके रामनाथी आश्रमकी वास्तु और आश्रमकी अनेक वस्तुआेंमें अनिष्ट शक्तियोंके आक्रमणोंके कारण कष्टदायक तथा अच्छी शक्तियोंके कारण अनेक दैवी परिवर्तन हुए हैं । ये परिवर्तन पंचमहाभूतोंके स्तरके हैं । वस्तुआेंसे दुर्गन्ध आना, उनके रंग देखने तथा उन्हें स्पर्श करनेकी इच्छा न होना, कष्टदायक नाद सुनाई देना आदि कष्टदायक परिवर्तनोंके कुछ उदाहरण हैं । वस्तुआेंसे सुगन्ध आना, उनके रंगोंमें सुखद परिवर्तन होना, उनका स्पर्श सुखद लगना, बिना भौतिक कारणके दैवी नाद सुनाई देना, दैवी कण दिखाई देना, वास्तुकी पटिया (टाइल्स) पारदर्शक होना आदि दैवी परिवर्तनके कुछ उदाहरण हैं । इस प्रकारके अनेक परिवर्तनोंसे युक्त असंख्य वस्तुएं अथवा उनके छायाचित्र परात्पर गुरु डॉक्टरजीके कहनेपर संग्रहित किए गए हैं । आध्यात्मिक शोधद्वारा ऐसे परिवर्तनोंका कार्यकारणभाव ढूंढा जा रहा है ।

 

हिन्दू धर्मके आचार, धार्मिक कृत्य आदि की उपयुक्तता सिद्ध करनेवाले शोध

धोती-कुर्ता अथवा साडी पहनना जैसे हिन्दू धर्मके आचार, दोनों हाथ जोडकर नमस्कार करना जैसे धार्मिक कृत्य आदि के कारण व्यक्तिपर आध्यात्मिक स्तरपर होनेवाले अच्छे परिणाम; यज्ञयागसे होनेवाली चैतन्यकी प्राप्ति आदि के सम्बन्धमें परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें आध्यात्मिक शोध किए गए हैं ।

 

प्रार्थना, नामजप, विविध योगमार्ग आदि से होनेवाले लाभके सम्बन्धमें शोध

प्रार्थना, नामजप, मन्त्रजप, प्राणायाम, आसन, बन्ध, मुद्रा, न्यास, आध्यात्मिक यन्त्र (उदा. श्रीयन्त्र), कुण्डलिनीचक्र तथा विविध योगमार्गोंके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्ट तथा आध्यात्मिक उन्नतिके सन्दर्भमें क्या लाभ होता है, इसका भी परात्पर गुरु डॉक्टरजीके मार्गदर्शनमें सैकडों व्यक्तियोंपर शोध किया जा रहा है ।

सन्दर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीके सर्वांगीण कार्यका संक्षिप्त परिचय’

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