कुछ अटल चूकें और उनके लिए विविध प्रायश्‍चित

अधिकांशत: सदैव होनेवाली भूल के लिए प्रायश्‍चित कर्म है नित्यनैमित्तिक कर्म अर्थात दैनिक पूजा-अर्चना, स्नान-संध्या, व्रत इत्यादि । (इन कर्मों के सन्दर्भ में विस्तृत विवरण सनातन के ग्रंथ कर्म का महत्त्व, विशेषताएं व प्रकार में दिया है ।

पाप-पुण्य लगने के नियम

कौनसा कर्म पाप अथवा पुण्य निर्माण करता है, यह बताने का अधिकार मात्र धर्मशास्त्र का है; क्योंकि कौनसा कर्म अच्छा है अथवा बुरा, यह निर्धारित करने के लिए अपनी बुद्धि अल्प सिद्ध होती है ।

यमदीपदान करते समय १३ दीपक क्यों अर्पण करते हैं ?

दीपकों की संख्या १३ मानकर, पूजा की जाती है । इस दिन यमदेवता द्वारा प्रक्षेपित लहरें ठीक १३ पल नरक में निवास करती हैं । इसका प्रतीक मानकर यमदेवता को आवाहन करते हुए १३ दीपकों की पूजा कर, उन्हें यमदेवता को अर्पण किया जाता है ।

कृतज्ञताभाव

‘ईश्वर की सृष्टि में एक दाना बोने से उसके सहस्रों दानें मिलेंगे । विश्व की कौनसी बैंक अथवा ऋणको इतना ब्याज देता है ? इसलिए इतना ब्याज देनेवाले ईश्वर का थोडासा तो स्मरण कीजिए । इतनी तो कृतज्ञता होनी दीजिए ।’

आत्मनिवेदन भक्ति

साधना में आत्मनिवेदन का विशेष महत्त्व है; क्योंकि इसी माध्यम से हम अद्वैत की भी अनुभूति कर सकते हैं ।

साधिका द्वारा भावजागृति हेतु किए गए प्रयास

‘स्वयं में भाव उत्पन्न होना ईश्वरप्राप्ति की तडप, अंतकरण में ईश्वर के प्रति बना केंद्र और प्रत्यक्षरूप से साधना, इन घटकोंपर निर्भर होता है । कृती बदलने से विचार बदलते हैं और विचारों को बदलने से कृती बदलती है’, इस तत्त्व के अनुसार मन एवं बुद्धि के स्तरपर निरंतर कृती करते रहने से भाव शीघ्र होने में सहायता मिलती है ।

साधना कर पुण्य बढाने का महत्त्व

व्यक्तिने अपने पूर्वजन्मों में जो कुछ अच्छे कर्म, परोपकार एवं दानधर्म किए होंगे, उसका फल पुण्य के रूप में एकत्र होता है और वह आपको अगले जन्म में सुख के रूप में मिलता है ।

कर्मयोग के संदर्भ में शंकानिरसन

चाकरी में (नौकरी में) घूस लेना पडता है । न लेने पर ऊपर के एवं नीचे के लोग (वरिष्ठ एवं कनिष्ठ श्रेणी के लोग) बहुत कष्ट देते हैं । ऐसे में मन को बहुत कष्ट होता है । इसके लिए क्या करें ?