पाप एवं समष्टि पाप

१. समष्टि पाप और युद्ध तथा नैसर्गिक आपदा

उचित कर्म कर प्रारब्ध पर मात करने की एवं अपने साथ ही संपूर्ण सृष्टि को सुखी करने की क्षमता ईश्‍वर ने केवल मनुष्य को दी है । ऐसा होते हुए भी इस क्षमता का उपयोग अपना स्वार्थ साधने, निष्पाप जीवों पर अन्याय करने, अन्यों पर अधिकार जमाने इत्यादि अधर्माचरण करने से समाज का प्रारब्ध दूषित होता है । इसका प्रभाव संपूर्ण सृष्टि पर होकर, सृष्टिचक्र का संतुलन बिगडता है । इससे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकंप, युद्ध जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं ।

पुराण में कहा गया है कि हिन्दू धर्म के अनुसार कुलाचार पालन न करने से, उन विशिष्ठ देवताओंको वे विशिष्ठ उपचार नहीं पहुंचते और इस कारण नैवेद्य (भोग) भी नहीं पहुंचता । इसलिए वे भी संकट भेजते हैं ।

पृथ्वी पर इस प्रकार समष्टि प्रारब्ध का प्रकोप होता है, तब गेहूं के साथ घुन भी पिसता है इस उक्ति के अनुसार दुर्जनों के साथ सज्जनोंको भी इसके परिणाम भोगने पडते हैं ।

 

२. वृक्ष काटने संबंधित पाप

अ. सजीव वृक्ष काटनेवाला, उसका समर्थन करनेवाला, निकट रहकर सहमति देनेवाला, वृक्ष काटने के व्यापार से मुक्त न होनेवाला, ये सर्व समान पापी : (यद्यपि वृक्ष काटना पाप है; परन्तु धर्मकार्य के लिए वृक्ष काटना पाप नहीं है ।) वर्तमान में बुद्धिवादी, धर्मद्रोही संगठन तथा निधर्मी राज्यकर्ता ऐसा बवंडर खडा करते हैं कि होली में बडे वृक्ष काटे जाते हैं । वृक्ष काटकर होली मनाने की अपेक्षा बुरे विचारों की तथा कचरे की होली जलाएं, ऐसा वे जनता का आवाहन करते हैं; परन्तु ध्यान रखें कि होली पवित्र समष्टि यज्ञ है । होलिकादेवी का पूजन, इस भाव से होली मनाते समय यज्ञरूपी होली में लकडियां समर्पित करने से वातावरण में सात्त्विक स्पंदन प्रसारित होते हैं एवं वातावरण शुद्ध होता है तथा समाज को सात्त्विकता का लाभ होता है ।

(होली का विरोध करनेवाले संपूर्ण वर्ष निर्माण-कार्य, ईंधन, कारखाने इत्यादि के लिए काटे जानेवाले वृक्षों के विषय में कुछ नहीं कहते । इसकी तुलना में होली में काटे जानेवाले वृक्ष नगण्य होते हैं ! – संकलनकर्ता)

आ. वर्तमान में वृक्ष काटकर बनाए कागज का विनियोग पाखंड फैलाकर विश्‍व के सर्वनाश के लिए उत्तरदायी को पाप लगना तथा समाचार-पत्रों द्वारा राष्ट्ररक्षा व धर्मजागृति हेतु करने पर पाप न लगना : वृक्ष काटकर बनाए गए कागज का उपयोग बुरे समाचार, अश्‍लील पुस्तकें तथा चलचित्रों के विषय में जानकारी देनेवाले भित्तिपत्रक (पोस्टर) बनाने से पाप अधिक बढता है । वर्तमान में समाचार-पत्र बुरे समाचार छापते हैं । वृक्ष काटकर बनाए गए कागज का उपयोग अनुचित कृत्य के लिए करनेवाले व्यक्ति को जितना पाप लगता है, उतना ही पाप उस समाचार को पढनेवाले को भी लगता है ।

इसके विपरीत कागज का उपयोग राष्ट्ररक्षण एवं धर्मजागृति के लिए करने से पाप नहीं लगता । धर्मप्रसार करनेवाले समाचार-पत्र समाज की रुचिको महत्त्व नहीं देते । समाज के लिए क्या आवश्यक है इस पर वे बल देते हैं । वे धर्म का पालन करते हैं । कागज का उपयोग अयोग्य कार्यों के लिए करना अधर्म है । कागज बनानेवाला, छापनेवाला तथा पढनेवाला, ये सर्व इस अधर्म के (पाप के) भागीदार होते हैं । – गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (३)

 

पाप का महत्त्व

पापी मनुष्य पश्‍चाताप की अग्नि में जले, तो मुक्त हो सकता है । कारण, यह कि जिस मनुष्य को पश्‍चाताप होता है उसे अपनी अज्ञानता, अपने दोष, मोहमायामयी जीवन के दुष्परिणाम इत्यादि का बोध हो चुका होता है । इस कारण अपनी ओर तथा संसार की ओर देखने की उसकी दृष्टि में परिवर्तन हो जाता है । ऐसे मनुष्य में धर्मपरायण होने तथा साधना हेतु प्रवृत्त होने की संभावना अधिक होती है । इसके फलस्वरूप उसे मृत्यु के पश्‍चात सद्गति मिलती है । इस अर्थ से कहा गया है कि पश्‍चाताप की अग्नि में दग्ध व्यक्ति मुक्त हो सकता है । इसके विपरीत पुण्यवान मनुष्य मुक्त होगा ही ऐसा नहीं है, क्योंकि पुण्य से मिलनेवाले सुखोपभोग में वह अटक सकता है । पुण्यसंचय अधिक होने पर उसे मृत्यु के पश्‍चात स्वर्गप्राप्ति होती है; परंतु वहां भी सुख में रम जाने से उसके अटकने की संभावना अधिक होती है ।

 

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘पुण्य-पाप के प्रकार एवं उनके परिणाम’

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