रावणवध के उपरांत प्रभु श्रीरामचंद्रजी को अयोध्या पहुंचने में २१ दिन क्यों लगे ?

फेसबुक पर प्रसारित हुए इस संदेश में ‘श्रीराम ने रावण को दशहरा के दिन मारने के उपरांत २१ दिनों में वे पैदल चलते हुए अयोध्या पहुंचे थे । इसलिए दशहरे के २१ दिनों पश्चात दिवाली मनाई जाती है’, ऐसे आशय का संदेश प्रसारित किया जा रहा है । प्रभु श्रीरामचंद्र पुष्पक विमान से अयोध्या पहुंचे, ऐसा रामायण में उल्लेख है ।

‘ॐ नमः शिवाय ।’ नामजप करते समय एवं करने के उपरांत हुई विशेष अनुभूति

‘ॐ नमः शिवाय ।’ इस नामजप के कारण मन को शांति लगती है और आसपास एक रिक्ती है, ऐसा प्रतीत होने के साथ ही स्वयं भी रिक्ती होने से शिवजी ही सर्व कर रहे हैं, इसकी अनुभूति आना

‘कोटिश: कृतज्ञता’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?

साधारण मानव को परिवार का पालन करते समय भी परेशानी होती है । परमेश्वर तो सुनियोजित रूप से पूरे ब्रह्मांड का व्यापक कार्य संभाल रहे हैं । उनकी अपार क्षमता की हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! ऐसे इस महान परमेश्वर के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !

परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा सिखाई गई ‘भावजागृति के प्रयास’ की प्रक्रिया ही आपातकाल में जीवित रहने के लिए संजीवनी !

आपकी दृष्टि सुंदर होनी चाहिए । तब मार्ग पर स्थित पत्थरों, मिट्टी, पत्तों और फूलों में भी आपको भगवान दिखाई देंगे; क्योंकि प्रत्येक बात के निर्माता भगवान ही हैं । भगवान द्वारा निर्मित आनंद शाश्वत होता है; परंतु मानव-निर्मित प्रत्येक बात क्षणिक आनंद देनेवाली होती है । क्षणिक आनंद का नाम ‘सुख’ है ।

साधना कर गुरुकृपा से अल्प समय में समाधानी एवं आनंदी होनेवाले साधक !

सनातन संस्था में साधना करनेवाला साधक प.पू. डॉक्टरजी के कारण कितना भाग्यवान है, इसकी कल्पना आई; कारण सनातन संस्था के मार्गदर्शनानुसार साधना करनेवाले साधक को भी कुछ महीनों में ही उनके जीवन की सर्व समस्याओं के कारण एवं हमें क्या करना चाहिए, यह समझ में आता है ।

मनुष्यजन्म का महत्त्व ध्यान में लेकर मनःशांति पाएं !

अमेरिका अथवा पश्चिमी देश आर्थिकदृष्टि से भले ही कितने भी समृद्ध हो गए हों, तब भी उन देशों के लोगों को शांति है क्या ? उन देशों में चोरियां-डाके, धोखाधडी बंद हुई है क्या ? धनसंपन्नता का अर्थ शांति नहीं । क्या धनाढ्य व्यक्ति शांति से सो सकता है ?

पू. भगवंतकुमार मेनराय द्वारा श्वास सहित नामजप जोड पाएं, इस हेतु किया मार्गदर्शन

साधकों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उन्हें नामजप श्वास से जोडना है और श्वास नामजप से नहीं जोडना है, अर्थात नामजप की लय में श्वासोच्छ्वास नहीं करना है, अपितु श्वास की लय में नामजप करना है ।

वास्तुशास्त्र (भवननिर्माणशास्त्र)

विदेशी वास्तुशास्त्र में भवन के केवल टिकाऊपन पर बल दिया गया है; परंतु भारतीय वास्तुशास्त्र में टिकाऊपन के साथ-साथ उसमें रहनेवाले व्यक्ति, उसकी सोच और देवता के प्रति श्रद्धा का भी विचार किया गया है ।

भवन जिस विचार अथवा भाव से बनाया जाता है, उसमें वैसी विचार-तरंगें उत्पन्न होती हैं !

धनी लोगों को अपने धन का बहुत गर्व होता है । वे धन के बल पर ऊंचे-ऊंचे भवन बनवाते हैं । ये भवन देखनेयोग्य होते हैं । परंतु, वहां से जानेवाले कुछ लोगों को यह भवन अद्भुत लगता है, तो कुछ को इससे इर्ष्या होती है ।