कोरोना महामारी के कारण उत्‍पन्‍न आपातकालीन स्‍थिति में दीपावली कैसे मनाएं ?

कोरोना महामारी की पृष्‍ठभूमि पर लागू की गई संचार बंदी यद्यपि उठाई जा रही है तथा जनजीवन पूर्ववत हो रहा है, तथापि कुछ स्‍थानों पर सार्वजनिक प्रतिबंधों के कारण सदैव की भांति दीपावली मनाना संभव नहीं हो पा रहा है । ऐसे स्‍थानों पर दीपावली कैसे मनाएं, इससे संबंधित कुछ उपयुक्‍त सूत्र और दृष्‍टिकोण यहां दे रहे हैं ।

दीपावली का वैश्विक स्वरूप !

नौकरी-व्‍यवसाय के उपलक्ष्य में पूरे विश्‍व में फैले भारतीय लोगों ने दीपावली के त्‍योहार को पूरे विश्‍व में प्रसारित कर दिया है । अन्‍य राष्‍ट्रों में दीपावली का त्‍योहार कैसे मनाया जाता है और उसे मनाते समय भारत की अपेक्षा उनमें क्‍या अलग होता है, इस लेख से हम इसे जानेंगे ।

यमदीपदान करते समय १३ दीपक क्यों अर्पण करते हैं ?

दीपकों की संख्या १३ मानकर, पूजा की जाती है । इस दिन यमदेवता द्वारा प्रक्षेपित लहरें ठीक १३ पल नरक में निवास करती हैं । इसका प्रतीक मानकर यमदेवता को आवाहन करते हुए १३ दीपकों की पूजा कर, उन्हें यमदेवता को अर्पण किया जाता है ।

आकाशदीप

आकाशदीप का मूल आकार कलशसमान होता है । यह मुख्यतः चिकनी मिट्टी का बना होता है । इसके मध्य पर तथा ऊपरी भाग पर गोलाकार रेखा में एक-दो इंच के अंतर पर अनेक गोलाकार छेद होते हैं ।

आकाशदीप लगाने का अध्यात्मशास्त्र (सूक्ष्म विज्ञान)

दीपावली के दिनों में ब्रह्मांड में संचार करनेवाले अनिष्ट तत्त्वों का निर्मूलन करने के लिए श्रीलक्ष्मी-तत्त्व सक्रिय होता है । इसे प्राप्त करने के लिए, घर के बाहर ऊंचे स्थान पर आकाशदीप लगाया जाता है ।

भावपूर्ण दीपावली कैसे मनाएं ?

आइए, गुरुदेव द्वारा मन में प्रज्वलित राष्ट्र्र-धर्म के कार्य की ज्योति से अज्ञान के अंधकार में डूबे समाज को दिशा देने का कार्य करें !

विनाशकारी पटाखोंपर प्रतिबंध लगाएं !

अमावास्याका अंधेरा कान फाडनेवाले पटाखोंके कारण दूर नहीं होता; अपितु आंखोंके समक्ष जुगनूके समान चमककर सर्वत्र गहराता हुआ अंधकार होनेका ही भ्रम होता है ।

दीपावलीका पूर्वायोजन

दीपावली शब्दका अर्थ है, दीपोंकी पंक्ति । अपने घरमें सदैव लक्ष्मीका वास रहे, ज्ञानका प्रकाश रहे, इसलिए हरकोई बडे आनंदसे दीपोत्सव मनाता है । घर शुद्ध एवं सुशोभित कर दीपावली मनानेसे श्री लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा वहां स्थायीरूपसे निवास करती हैं ।

‘दीपावली’

वसुबारस अर्थात् गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभमें आती है । यह गोमाताका सवत्स अर्थात् उसके बछडेके साथ पूजन करनेका दिन है । शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशीके नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है ।