गुरु का सांप्रतकालीन कर्तव्य क्या है ?

काल की आवश्यकता समझकर राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देना, यह गुरु का वर्तमान कर्तव्य है । जिस प्रकार साधकों को साधना बताना गुरु का धर्म है, उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु समाज को जागृत करना, यह भी गुरु का ही धर्म है ।

सनातन संस्थाके आस्थाकेंद्र ‘प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी’ – द्रष्टा धर्मगुरु एवं राष्ट्रसंत !

गुरु श्रीकृष्णने शिष्य अर्जुनको न केवल मोक्षप्राप्तिके लिए धर्म सिखाया; अपितु ‘धर्मरक्षाके लिए अधर्मियोंसे लडना चाहिए’, यह क्षात्रधर्म भी सिखाया । शिष्यको मोक्षप्राप्तिके लिए साधना बतानेवाले आज अनेक गुरु हैं; परंतु ‘राष्ट्र एवं धर्मरक्षा कालानुसार आवश्यक साधना है’, ऐसी सीख देनेवाले गुरु गिने-चुने ही हैं ।

गुरुमंत्र संबंधी भ्रांतिया

कई लोगोंके मनमें गुरुमंत्र संबंधी कुछ भ्रांतियां रहती हैं । आध्यात्मिक परिभाषा का ज्ञान न होने के कारण ये भ्रांतियां उत्पन्न हुई हैं ।

खरा ध्यान किसे कहते हैं और इसके लिए गुरु की आवश्यकता क्यों प्रतीत होती है ?

कभी-कभी ध्यानमार्ग का अनुसरण करनेवाले योगी ध्यान का आधार लेते हैं; परंतु जो आत्मप्रेरित है, सहज ही आरंभ होता है, वही खरा ध्यान है । यह सहजध्यान आरंभ करने हेतु गुरु की आवश्यकता प्रतीत होती है; क्योंकि केवल उन्हीं की अंतःस्थिति उच्च श्रेणी की होती है । गुरु के कारण आरंभ हुआ सहजध्यान ही अंत में योगी को पूर्णत्व की प्राप्ति करवा सकता है ।

गुरुकृपा किस प्रकार कार्य करती है ?

गुरु के किसी उद्देश्य के अथवा उनके द्वारा बताई गई किसी सेवा के कार्यकारणभाव को भली-भांति समझकर, कम से कम समय में एवं उचित ढंग से उसे पूर्णत्वतक ले जाना गुरु को अपेक्षित होता है । गुरु यदि कहें, ‘पूजा करो’ और शिष्य बुद्धि का प्रयोग कर अधिकाधिक अच्छे ढंगसे पूजा करे, तो यह अवज्ञा नहीं होती; अपितु गुरु इस बात से प्रसन्न होते हैं ।

शास्त्रमें बताए गुरुद्रोह

गुरु के विषय में परिहासपूर्ण बोलने से शिष्य की अधोगति होती है । हम जैसे अपने माता-पिता के विषय में परिहास नहीं करते, उसी प्रकार गुरु के विषय में भी न बोलें ।

वास्तविक गुरुके लक्षण क्या हैं ?

एक सर्वोत्तम शिक्षकके समान ही गुरुमें सर्व गुण विद्यमान होते हैं । गुरुका खरा गुण है आत्मानुभूति; परन्तु मात्र बुद्धिद्वारा उसका ज्ञान होना असंभव है ।

गुरु के प्रति व्यवहार कैसा हो ?

गुरु के समक्ष हाथ जोडकर खडे रहें, उनके ‘बैठो’ कहने पर बैठें । गुरु की तुलना में शिष्य का अन्न, वस्त्र एवं वेश निकृष्ट होना चाहिए ।

गुरुप्राप्ति पश्‍चात पूजाघर में क्या परिवर्तन करें ?

पूजाघर में गुरु का छायाचित्र अथवा मूर्ति रखनी चाहिए । उसे प्रतिदिन पोंछकर, देवताओं की पूजा करते समय जब अगरबत्ती दिखाते हैं, तो उन्हें भी अगरबत्ती दिखाएं तथा पूजा समाप्त होने पर जब नमस्कार करते हैं तो उन्हें भी नमस्कार करें ।

साधना में अति शीघ्र प्रगति का मार्ग कौन सा है ?

घर-द्वार का त्याग कर गुरुसान्निध्य में रहना साधना में अति शीघ्र प्रगति का मार्ग है । गुरु के प्रति खरे प्रेम की उत्पत्ति हेतु इस सान्निध्य की आवश्यकता है । गुरु के साथ रहने पर ही विषयों पर अंकुश रहता है ।